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Showing posts from June, 2014

केदारनाथ को 49वां ज्ञानपीठ पुरस्कार दिये जाने का निर्णय

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उत्तर प्रदेश की बलिया की धरती में जन्मे केदारनाथ सिंह ने अपने साहित्य सृजन से एक बार फिर उत्तर प्रदेश का मान देश में बढ़ाया है। केदारनाथ जी को मिले ज्ञानपीठ पुरस्कार ने यह साबित कर दिया कि साहित्य की जो धारा पंत, दिनकर और वर्मा जी ने प्रस्फुटित की थी, वह आज भी उत्तर प्रदेश में विद्यमान है। केदारनाथ को मिले ज्ञानपीठ पुरस्कार से न केवल साहित्य जगत वरन हर समाज का व्यक्ति अपने को गर्वान्वित महसूस कर रहा है। हिन्दी की आधुनिक पीढ़ी के रचनाकार केदारनाथ सिंह को वर्ष 2013 के लिए देश का सर्वोच्च साहित्य सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। वह यह पुरस्कार पाने वाले हिन्दी के 10वें लेखक हैं। सीताकांत महापात्रा की अध्यक्षता में हुई चयन समिति की बैठक में हिन्दी के जाने माने कवि केदारनाथ सिंह को वर्ष 2013 का 49वां ज्ञानपीठ पुरस्कार दिये जाने का निर्णय किया गया। केदारनाथ सिंह इस पुरस्कार को हासिल करने वाले हिन्दी के 10वें रचनाकार है। इससे पहले हिन्दी साहित्य के जाने माने हस्ताक्षर सुमित्रनंदन पंत, रामधारी सिंह दिनकर, सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन अज्ञेय, महादेवी वर्मा, नरेश मेहता, निर्मल वर्मा,

स्विस बैंकों में भारतीयों की जमा दौलत में 40 फीसद का इजाफा

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तमाम कोशिशों के बावजूद काले धन पर अंकुश लगता नहीं दिख रहा। आंकड़े इसकी गवाही देते हैं। काले धन की पनाहगाह स्विस बैंकों में भारतीयों की जमा दौलत में 40 फीसद का इजाफा हुआ है। यह धन बढ़कर दो अरब स्विस फ्रैंक यानी करीब 14 हजार करोड़ रुपये से ऊपर पहुंच गया है। स्विटजरलैंड के केंद्रीय बैंक स्विस नेशनल बैंक (एसएनबी) ने गुरुवार को अपने बैंकों में जमा धन पर आंकड़े जारी किए। ताजा आंकड़ों के अनुसार, 2012 में स्विस बैंकों में भारतीयों का करीब नौ हजार करोड़ रुपये जमा था। 2013 के दौरान इसमें बड़ा इजाफा हुआ। इसके उलट दुनिया के अन्य देशों से इन बैंकों में जमा होने वाली कुल दौलत में रिकॉर्ड गिरावट आई। यह न्यूनतम स्तर 13 खरब 20 अरब स्विस फै्रंक (करीब 90 लाख करोड़ रुपये) रहा। एक स्विस फ्रैंक की विनिमय दर करीब 70 रुपये है। 2012 के दौरान स्विस बैंकों में जमा भारतीयों का धन एक तिहाई से अधिक गिरावट के साथ न्यूनतम स्तर पर था। स्विस बैंकों में जमा भारतीयों के कुल दो अरब स्विस फ्रैंक में 1.95 अरब स्विस फ्रैंक व्यक्तियों और संस्थाओं के खातों में है। वहीं, सात करोड़ 73 लाख स्विस फ्रैंक फंड मैनेजरों के जरिये लगाए गए हैं

उत्तर प्रदेश में कलंकित हुई ‘खाकी’

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पुलिस एक ऐसा महकमा है, जिस पर हर असहाय, गारीब और समाज के वंचित तबके का फख्र है। उसे विश्वास है कि अगर किसी ने उसे आंख दिखाई, उसके अस्मत के साथ खिलवाड़ किया तो वह थाने जाकर पुलिस में प्राथमिकी दर्ज करा देगा। शायद विश्वास की इसी कड़ी ने पुलिस महकमे को प्रशासन का सबसे महत्वपूर्ण दर्जा समाज ने प्रदान कर रखा है। पर उत्तर प्रदेश में पिछले एक पखवारे से जिस तरह की घटनाएं सामने आ रही हैं, उससे खाकी कलंकित हो रही है। समाज में खाकी के प्रति घृणा का माहौल पैदा हो रहा है। अगर ऐसा ही रहा तो शायद ही अच्छे परिवार के लोग सिपही के पद पर भर्ती होने के लिए इच्छा जाहिर करें। इतना ही नहीं पुलिस महकमे के बड़ ओहदे पर बैठे अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल उठना शुरू हो गया है। हम जिक्र करते हैं कुछ घटनाओें का, जिससे आप खुद समझ जाएंगे कि पुलिस की इन करतूतों से समाज में उसका क्या स्थान बन रहा होगा। इलाहाबाद के शिवकुटी क्षेत्र में दो सिपाहियों समेत चार लोगों पर एक युवती ने दुराचार का आरोप लगाया है। सोनभद्र में सिपाहियों ने महिला के साथ दुराचार का प्रयास किया। सिपाहियों को लाइन हाजिर तो कर दिया गया, लेकिन मामले में

आखिर हादसे का जिम्मेदार कौन ?

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भिलाई इस्पात संयंत्र में गैस रिसाव हादसे में 6 की मौत हो चुकी है। इनमें डीजीएम, एजीएम स्तर के अधिकारी सहित मजदूर शामिल हैं। इससे पहले भी भिलाई स्टील प्लांट में 1986 में एक बड़ा हादसा हुआ था जिसमें 6 लोग मारे गये थे। खबर है कि उसके बाद भी कई ठेका मजदूर मारे जाते रहें हैं तथा हादसों का शिकार होते रहें हैं। बाल्कों में 2009 में चिमनी हादसे में भी 41 कर्मचारियों की मौत हुई थी, जिसके जिम्मेवार आजाद घूम रहे हैं। आए दिन निजी उद्योगों में इसी तरह के हादसे होते रहते हैं। सवाल उठता है कि इन हादसों की जिम्मेदारी किसकी है? क्या ऐसे हादसों को टाला जा सकता है? सवाल कठिन तो नहीं है परन्तु इसका जवाब भिलाई स्टील प्लांट के ब्लास्ट फर्नेस नंबर 2 में हुए गैस रिसाव की घटना स्वमेय दे देती है। इस ब्लास्ट फर्नेस नंबर 2 में पाइप से जहरीली गैस कार्बन मोनोक्साइड का रिसाव पहले से ही हो रहा था। जिसे सुधारने का काम जारी था तथा इसी के निरीक्षण करने के लिये डीजीएम तथा एजीएम स्तर के अधिकारी पहुंचे थे। हैरत की बात यह है कि जब वहां पर रह रहे कबूतर मर कर गिरे तब जाकर पता चल पाया कि जहरीली गैस का रिसाव तेज

भगवान शंकर का स्थायी निवास कैलाश मानसरोवर

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12 जून 2014 से कैलाश मानसरोवर यात्रा शुरू हो रही है  कैलाश मानसरोवर को शिव-पार्वती का घर माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मानसरोवर के पास स्थित कैलाश पर्वत पर शिव-शंभू का धाम है। यही वह पावन जगह है, जहां शिव-शंभू विराजते हैं। पुराणों के अनुसार यहां शिवजी का स्थायी निवास होने के कारण इस स्थान को 12 ज्येतिर्लिगों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। कैलाश बर्फ से आच्छादित 22,028 फुट ऊंचे शिखर और उससे लगे मानसरोवर को कैलाश मानसरोवर तीर्थ कहते हैं और इस प्रदेश को मानस खंड कहते हैं। हर साल कैलाश-मानसरोवर की यात्रा करने, शिव-शंभू की आराधना करने, हजारों साधु-संत, श्रद्धालु, दार्शनिक यहां एकत्रित होते हैं, जिससे इस स्थान की पवित्रता और महत्ता काफी बढ़ जाती है। कैलाश-मानसरोवर उतना ही प्राचीन है, जितनी प्राचीन हमारी सृष्टि है। इस अलौकिक जगह पर प्रकाश तरंगों और ध्वनि तरंगों का समागम होता है। इस पावन स्थल को भारतीय दर्शन के हृदय की उपमा दी जाती है, जिसमें भारतीय सभ्यता की झलक प्रतिबिंबित होती है। परम पावन कैलाश पर्वत हिंदू धर्म में अपना विशिष्ट स्थान रखता है। हिंदू धर्म के अनुसार य

भारतीय मानस की धर्म-प्राण है देवनदी गंगा

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मान्यता है कि गंगा में अवगाहन हमारे दस दोषों को दूर कर देता है, लेकिन यह तभी होगा, जब गंगा निर्मल और शुद्ध रहेंगी। जैसा प्रयास भगीरथ ने इस देवनदी को पृथ्वी पर लाने को किया था, वैसा ही 'भगीरथ प्रयास' उसके शुद्धीकरण के लिए भी करना होगा। हिमालय के गोमुख से चलकर बंगाल में गंगा-सागर तक की विशद यात्रा करने वाली गंगा भारत की वस्तुत: जीवन-धारा है। विराट भू-भाग को सिंचित कर अन्न का विशाल भंडार संभव-साकार करने वाली यह नदी इस तरह करोड़ों लोगों की क्षुधा-तृप्ति का आधार तो गढ़ती ही है, धर्म-प्राण भारतीय मानस की अपराजेय श्रद्धा-भावनाओं को भिगोती हुई लगातार असंख्य लोगों की आत्मा और आस्था को भी संतृप्त करती चल रही है। इसके तटवर्ती नगरों-महानगरों की समृद्धि भी सबके सामने है। इस तरह सभी रूपों में यह हमारे देश-समाज की प्राण-धारा है। इतना कुछ होने के बावजूद यह महान नदी यदि आज अपने अस्तित्व-संकट से जूझने को विवश है, तो यह हमारे समय की एक बड़ी विडंबना है। इससे बड़ा दुर्भाग्य भला दूसरा क्या हो सकता है कि गंगा की महत्ता को जानते-समझते हुए भी हम इसे प्रदूषण की मार से मिटते देखने को बाध

पर्यावरण के संकटों पर विचार की जरूरत

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महात्मा गांधी ने कहा था कि धरती हर एक व्यक्ति की जरूरत को पूरा कर सकती है, लेकिन किसी एक के भी लालच को नहीं. आज विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर पूरी दुनिया को पर्यावरण के संकटों पर विचार की जरूरत है, क्योंकि यह मसला किसी एक देश का नहीं है. अगर जलवायु परिवर्तन एवं वैश्विक उष्मा में बढ़ोतरी से ध्रुवीय प्रदेशों में ग्लेशियरों के पिघलने में अस्वाभाविक तेजी आती है, तो दूर-दराज के समुद्र तटीय इलाकों के डूबने का खतरा बढ़ जायेगा. इस बढ़ती गर्मी का कारण विकसित देशों में जीवाश्म ईंधनों की भारी खपत भी हो सकता है और भारत या चीन में खेतों में अधिक पानी का इस्तेमाल भी. निश्चित रूप से विकसित देशों को इस मामले में बढ़-चढ़कर पहल करनी होगी, लेकिन भारत जैसे देशों को भी अपनी जिम्मेवारी निभाने से पीछे नहीं हटना चाहिए. 1972 से हर साल 5 जून को मनाये जा रहे विश्व पर्यावरण दिवस की कड़ी में 2014 को छोटे द्वीपीय देशों का अंतरराष्ट्रीय वर्ष घोषित किया गया है. कारण यह है कि समुद्री जलस्तर के बढ़ने से अनेक द्वीपों के डूबने का खतरा आसन्न है. हमारे देश में भी मॉनसून की अनियमितता, बाढ़ व सूखे का संकट, भ

इंसाफ का है इंतजार

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पश्चिमी उत्तर प्रदेश के तमाम गांवों की तरह आज तक बिजली, पानी और सड़क जैसी आम दुशवारियों से जूझ रहा बदायूं का कटरा शहादतगंज गांव आज अचानक देश और दुनिया में सुर्खियों में आ गया है। इसकी वजह है वह विभत्स वारदात जिसने न सिर्फ गांव और गांव के लोगों के चेहरों पर दहशत लिख दी है बल्कि राज्य सरकार की नाकामी और असलियत भी उजागर कर दी है। बदायूं से 25 किलोमीटर दूर बसे इस गांव में 28 मई  2014 को दो नाबालिग लड़कियों की लाश एक पेड़ से टंगी मिली। लड़कियों के साथ बलात्कार करने के बाद गला दबाकर उनकी हत्या की गई। स्थानीय और राष्ट्रीय मीडिया का पूरा फोकस इस घटना पर है। लेकिन यहां के स्थानीय निवासियों का फोकस सिर्फ यह एक घटना नहीं है। खासतौर से महिलाओं का। इस गांव का मुआयना किया तो हर इनसान के चेहरे पर डर और दहशत साफ लिखी दिखी। दादी की बिलखती चीखें तो दोनों मांओं की आंखों में वीरानी करीब 20 से 25 औरतें मिलकर एक बेहद बूढ़ी औरत को चुप करा रही हैं..औरत हादसे का शिकार हुई दोनों लड़कियों की दादी है। वह बिलख-बिलख कर रो रही है। उसकी भाषा समझना मुश्किल है मगर जो कुछ भी कह रही है उसमें दोनों