इंसाफ का है इंतजार

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के तमाम गांवों की तरह आज तक बिजली, पानी और सड़क जैसी आम दुशवारियों से जूझ रहा बदायूं का कटरा शहादतगंज गांव आज अचानक देश और दुनिया में सुर्खियों में आ गया है। इसकी वजह है वह विभत्स वारदात जिसने न सिर्फ गांव और गांव के लोगों के चेहरों पर दहशत लिख दी है बल्कि राज्य सरकार की नाकामी और असलियत भी उजागर कर दी है। बदायूं से 25 किलोमीटर दूर बसे इस गांव में 28 मई  2014 को दो नाबालिग लड़कियों की लाश एक पेड़ से टंगी मिली। लड़कियों के साथ बलात्कार करने के बाद गला दबाकर उनकी हत्या की गई। स्थानीय और राष्ट्रीय मीडिया का पूरा फोकस इस घटना पर है। लेकिन यहां के स्थानीय निवासियों का फोकस सिर्फ यह एक घटना नहीं है। खासतौर से महिलाओं का। इस गांव का मुआयना किया तो हर इनसान के चेहरे पर डर और दहशत साफ लिखी दिखी।
दादी की बिलखती चीखें तो दोनों मांओं की आंखों में वीरानी
करीब 20 से 25 औरतें मिलकर एक बेहद बूढ़ी औरत को चुप करा रही हैं..औरत हादसे का शिकार हुई दोनों लड़कियों की दादी है। वह बिलख-बिलख कर रो रही है। उसकी भाषा समझना मुश्किल है मगर जो कुछ भी कह रही है उसमें दोनों लड़कियों के नाम साफ तौर से सुनाई दे रहे हैं। पास छोटी लड़की की ब्याहता बहन बैठी है। दोनों लड़कियों की मांएं गले तक घूंघट काढ़े हैं। बहुत कहने पर एक घूंघट हटाकर बात करती है। आंखों समेत पूरे चेहरे पर सूजन है। उसे मारा गया था… वह अस्पताल में भर्ती थी… गंभीर चोटें लगी थीं… बार-बार याद दिलाने पर भी उसे कुछ याद नहीं आता। हर सवाल के जवाब में एक ही बात कहती है … पुलिस पास गए थे। पुलिस बोली थी जाओ दो घंटे में बिटिया आ जाएगी। दो घंटे इंतजार किए … इन्होंने (शायद पति ने) कहा रुको हम गाड़ी का इंतजाम कर लें तो बदायूं जाकर शिकायत लिखवाते हैं। हमने कहा एक बार और पुलिस से पूछ लो … पूछने गए तो पुलिस वाले गालियां देने लगे। किराए की गाड़ी से बदायूं जा रहे थे तब कोई बोला कि पेड़ से लटकी हैं तुम्हार बिटिया। इस परिवार की जान पहचान में जिस औरत ने सबसे पहले लड़कियों को पेड़ से टंगा देखा था वह पास के गांव में रहती है। उस दिन सुबह दूध लेने घर से निकली थी। वह रोज एक बार उस पेड़ के पास जाती है। उसे देखती है। साथ बैठी तमाम औरतें एक साथ पुलिस वालों और गांव की एक विशेष जाति के आदमियों को गरियाती हैं। एक-एक करके वे एक ही बात करती हैं कि अपराधी पकड़े जाएं।
उन्हें सख्त से सख्त सजा मिले। घर में करीब 40 से आदमी भी हैं। मगर वे रो नहीं रहे। कोई मीडिया को संभाल रहा है तो कोई बाहर से आने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं से बात कर रहा है। सबको उम्मीद है कि कि बस जल्द से जल्द इंसाफ हो।
सबसे ज्यादा तंग पुलिस से हैं…
बात सिर्फ महिला अपराधों की नहीं है… किसी भैंस गुम जाए या किसी का बच्चा खो जाए… पुलिस के बाबत गांव के हर नागरिक की एक ही शिकायत है कि साहब! पुलिस रिपोर्ट नहीं लिखती। पेशे से व्यवसायी अली हसन आरोप लगाते हैं कि अगर पुलिस वालों की अपनी जाति-बिरादरी का कोई आ जाए तो और बात वरना पुलिस कागज कलम से कोई बात नहीं करती। गांव में ही रहने वाली कुसुम लता कहती हैं कि उल्टे डराती है कि लोग मार कर फेंक देंगे तुमको तब कौन बचाने आएगा? कुसुम की ही बात को राम दयाल आगे बढ़ाते हैं कि यहां के लोग सबसे ज्यादा तंग तो पुलिस से ही हैं। जो बात सुन लेगी… आश्वासन दे देगी मगर एफआईआर नहीं करेगी। क्या दलित… क्या पिछली जाति क्या मुसलमान किसी की रिपोर्ट चौकी वाले नहीं लिखते न ही बात थाने तक पहुंचाते हैं।

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