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Showing posts from November, 2013

मारिए लंगी बढ़िए आगे

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वक्त केसाथ लोगों की जीवनशैली बदली है. लोगों का सोच बदला है. ठीक उसी तरह से अपने को किसी पेशे में स्थापित करने, सफलता का पैमाना भी बदला है. इस तरीके से सिद्ध पुरुषों को लंगीमार कहते हैं. इन दिनों लंगीमार साधक हर क्षेत्र में सक्रिय हैं. लंगीमार साधक के बारे में जानने से पहले हम जान लें कि आखिर लंगीमार साधक की पहचान कैसे होगी. गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागंपांव, जैसी कोई दुविधा नहीं है. मामला बिल्कुल सरल है. व्यक्ति कितना बड़ा लंगीमार साधक है, इसकी परख के लिए छोटा-सा टेस्ट है. मसलन वह काम करता है या केवल काम की चर्चा करता है. वह काम की चर्चा ही करता है या केवल काम की फिक्र करता है. अगर बंदा केवल काम की चर्चा कर रहा है, तो समझिए अभी लंगीमारक  पंथ का एप्रेटिंस है. अगर वह काम की फिक्र कर रहा है, तो वह इस पंथ का मास्टर हो चुका है.  लंगीमार साधक आपको कभी भी, कहीं भी मिल जायेंगे. आइए अब मैं आपको लंगीमार साधक के गुण-दोष से अवगत कराता हूं. कैसे और कब लंगी का उपयोग करना है ताकि अगला केवल पटकनी ही नहीं गुलाटी खाने लगे. इनका सबसे खास गुण होता है. रेखा अगर लंबी खिंच गयी है, तो उसे

अपनों की भीड़ में उदास मनगढ़

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सर्द रात धीरे-धीरे अंतिम सोपान में थी। सूरज निकलने को बेताब था। जगद्गुरु के प्रिय मनगढ़ में सत्संगियों की चहल कदमी बढ़ रही थी। उनके बारे में चर्चा छिड़ी थी। हर ओर अपने ही भरे थे, लेकिन मनगढ़ फिर भी उदास था।यह प्रतापगढ़ जिले का वही मनगढ़ था, जहां कृपालु जी जन्मे थे। सात समुंदर पार कर यहां पहुंचे नाथन की पहचान अब गौर हरी है। वह सुबह के सात बजे साधक निवास की सीढि़यों पर बैठकर पत्थरों के बीच प्रेम के बीज बोने वाले कृपालु जी के ध्यान में खोए हुए थे। उनको कोई भी चहल कदमी अपनी ओर नहीं मोड़ पा रही थी। आस्ट्रेलिया की लीनीया ने लम्बा चंदन लगा रखा था। वह बोली गुरुजी ने जीवन का अर्थ समझाया, अब जीने में सुख मिलता है।टैक्सास की कारलस की पहचान गुरु जी के साथ जुड़ने पर वृंदा हो गई है। वह इस पहचान को गुरुजी की कृपा मानकर प्रेम बांटने में लगी है। साध्वी बन चुकी मरेसा कहती है कि इंडिया में जो खासियत है वह जगद्गुरु के सानिध्य में आने के बाद महसूस की है। अब तो यह जीवन ही उनकी यादों को समर्पित है। इसी तरह देशी विदेशी सत्संगी मनगढ़ में जुटे थे।उनको किसी पीएम, सीएम या फिर डीएम का इंतजार नहीं था। व

पांच बरस, लेकिन सबक सिफर

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अगस्त , 2006 के बाद अमेरिकी खुफिया एजेंसी ने रॉ और आइबी को कई अलर्ट भेज कर मुंबई के फाइव स्टार होटल पर आतंकी हमले की साजिश की चेतावनी दी थी . एक अमेरिकी अलर्ट में तो ताज होटल और ट्राइडेंट का जिक्र भी था . मुंबई पर पाकिस्तानी आतंकवादियों के हमले के पांच बरस बीत गये . जीवित पकड़े गये आतंकवादी कसाब को लंबी कानूनी लड़ाई के बाद फांसी पर लटका दिया गया . क्या इन पांच सालों में हमने कोई सबक सीखा है ? क्या हम दावे के साथ कह सकते हैं कि हमारी समुद्री सीमा सुरक्षित है ? क्या आज हमारी खुफिया एजेंसियां पहले से ज्यादा सतर्क हैं ? क्या हम पाकिस्तान को आतंकवाद के मसले पर घेरने और अलग - थलग करने में नाकाम रहे हैं ? क्या हम अन्य पश्चिमी देशों में मिल रही खुफिया सूचनाओं को गंभीरता से लेते हुए आसन्न खतरे का आकलन कर पा रहे हैं ? क्या हमारी सुरक्षा एजेंसियां और पुलिस बल उस तरह के आतंकवादी हमले से निबटने के लिए तैयार हैं ? क्या हमारे राजनेताओं में आतंक