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Showing posts from July, 2014

उत्तर प्रदेश में महिलाओं को कब मिलेगा न्याय

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उत्तर प्रदेश में आधी आबादी जरा भी महफूज नहीं है। यहां महिलाओं के लिए बनाए गए कानून बेमानी साबित हो रहे हैं। लोगों की समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर इस प्रदेश में महिलाओं को कब न्याया मिल पाएगा। सूबे में शायद ही कोई ऐसा दिन हो जब महिला, किशोरी तथा बच्चियों के साथ दुष्कर्म की घटना को अंजाम न दिया जाये। हम केवल एक दिन 25 जुलाई 2014 की कुछ प्रमुख घटनाओं को देखें तो पाते हैं कि बस्ती में दुष्कर्मी ने सात वर्षीय बालिका से दुष्कर्म किया। इलाहाबाद में भी एक महिला से दुष्कर्म की बात सामने आई। शिकायतकर्ता महिला को पुलिस ने भगा दिया। फरुर्खाबाद में दुष्कर्म के प्रयास मं नव विवाहिता की हत्या कर दी गई। अमेठी में दबंगो ने मां बेटी की जमकर पिटाई की गई जिसमें बेटी की मौत हो गई। बस्ती में सात वर्षीय एक बच्ची को गांव के ही एक युवक ने हवस का शिकार बनाया। घटना के समय बालिका अपने दस वर्षीय भाई के साथ घर में खेल रही थी। तभी गांव का युवक सुधाकर उसके घर पर पहुंचा और बच्ची के साथ दुष्कर्म किया। घर में मौजूद जब दस वर्षीय भाई की नजर पड़ी तो वह शोर मचाने लगा। जिसके बाद भीड़ जुट गई। पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर ली है।

कोली की फांसी पर फिर मुहर से ‘तसल्ली’

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निश्चित रुप से सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति के निर्णय से उन मृत मासूमों की आत्मा को शांति मिली होगी, जो इंसानी शक्ल में हैवान बने सुरेन्द्र कोली की बर्बरता का शिकार बने थे। यह तारीख देश के इतिहास में तवारीख बनेगी। उत्तर प्रदेश के बहुचर्चित निठारी कांड के मुख्य आरोपी सुरेंद्र कोली की मौत की सजा पर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर मुहर लगा दी है। 24 जुलाई 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने कोली की पुनर्विचार याचिका खारिज करते हुए कहा कि उन्हें अपने पूर्व फैसले में दखल देने का कोई आधार नजर नहीं आता। कोली को 15 वर्षीय छात्रा हलदर की हत्या के जुर्म में शीर्ष अदालत ने 15 फरवरी, 2011 में फांसी की सजा सुनाई थी। अभी पिछले सप्ताह ही राष्ट्रपति ने उसकी दया याचिका खारिज की है। कोली ने तीन साल बाद यह पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी। छात्रा आठ फरवरी, 2005 से लापता थी। बाद में उसके कपड़े आदि पंधेर की कोठी से बरामद हुए थे। न्यायमूर्ति एचएल दत्तू व न्यायमूर्ति अनिल आर दवे ने फांसी पर रोक की अर्जी व पुनर्विचार याचिका खारिज करते हुए अपने आदेश में कहा कि पुनर्विचार याचिका 1153 दिन की देरी से दाखिल की गई है। साथ ही उन्हों

यूपी सरकार को शर्म नहीं आती

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उत्तर प्रदेश में खराब कानून व्यवस्था का हल्ला पूरे देश में है। जब से उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी, मानो अपराध बढ़ गए। हलांकि सपा सरकार आने के बाद ऐसा होना स्वाभाविक था। पर लोगों में युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कार्यकाल में ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगने की उम्मीद रही। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव लोगों की इस उम्मीद पर खरा नहीं उतर सके। उनके सरकार की उपलब्धि साम्प्रदायिक दंगे, अफसरों के साथ अपमानजनक बर्ताव, महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं ही प्रमुख रुप से सामने आयी हैं। बदायूं में दो बहनों के साथ दुष्कर्म के बाद उनकी हत्या कर शव पेड़ से लटका दिए जाने की घटना अभी लोग भूल नहीं सके हैं। इसी बीच दो और रोंगेटे खड़े कर देने वाली घटनाएं घट गयीं। कानपुर में एक बीएससी की छात्रा ने 17 जुलाई 2004 को छेड़छाड़ से तंग आकर आत्महत्या कर ली। 18 जुलाई 2004 की रात प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुई दुस्साहसिक घटना ने लोगों के रोंगटे खड़े कर दिए। इत्तेफाक यह है कि दिल्ली में शिकार हुई ‘निर्भया’ पैरामेडिकल स्टाफ थी और लखनऊ में शिकार हुई महिला भी एक बड़े सरकारी अस्पताल में पैरामेडिकल स्टाफ ही है। मृतिका

किशनकांत की मौत से सबक से रेल विभाग

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एक ओर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देशवासियों को दिखाए गए ‘अच्छे दिन लाने’ के सपने को साकार करने के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं। रेलमंत्री डीवी सदानंद गौडा रेलयात्रा को यात्रियों के लिए सरल, सुलभ और सुरक्षित बनाने की दिशा में कदम उठा रहे हैं। वहीं रेलवे के अधिकारी और कर्मचारी इस पर पानी फेरने में जुटे हुए हैं। ऐसे अधिकारियों और कर्मचारियों का शर्म नहीं आ रही है कि वे किस तरह से देश और विभाग के साथ अपना फर्ज निभा रहे हैं। यात्री उनके लिए भगवान सरीखा है। परिवार के लिए रोजी-रोटी का सहारा है। पर मोटी तनख्वाह पाने वाले इन अफसरों और कर्मचारियों के जेहन में यह बात कहां। वह तो अभिमान और गुरुर से हर समय भरे रहते हैं। वह न तो किसी यात्री की मनोदशा को समझने की कोशिश करते हैं और न ही मजबूरी। वह यह भी नहीं सोचते कि परेशान यात्री के लिए वह कहां तक सहयोगी बन सकते हैं। काश! ऐसा सोचते तो किशनकांत के अभागे ढाई साल की बेटी नंदनी के सिर से पिता का साया असमय न उठता। हम बात 16 जुलाई 2014 को लखनऊ से दिल्ली आने-जाने वाली शताब्दी एक्सप्रेस में घटी घटना की कर रहे हैं। इस घटना के केन्द्र में एक महिला टीटीई है। न

शिव कृपा चाहे तो जल जरूर बचाएं

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भगवान शिव ही स्वयं जल हैं। पुराणों में पानी के महत्व और उसके संरक्षण के बारे में स्पष्ट व्याख्या की गई है। शिव पर जल चढ़ाने का महत्व भी समुद्र मंथन की कथा से जुड़ा है। अग्नि के समान विष पीने के बाद शिव का कंठ एकदम नीला पड़ गया था। विष की ऊष्णता को शांत करके शिव को शीतलता प्रदान करने के लिए समस्त देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया। इसलिए शिव पूजा में जल का विशेष महत्व है। शिव पुराण में कहा गया है कि भगवान शिव ही स्वयं जल हैं- संजीवनं समस्तस्य जगत: सलिलात्मकम। भव इत्युच्यते रूपं भवस्य परमात्मन: ॥ अर्थात जो जल समस्त जगत के प्राणियों में जीवन का संचार करता है। वह जल स्वयं उस परमात्मा शिव का रूप है। इसीलिए जल का महत्व समझकर उसकी पूजा करना चाहिए, न कि उसका अपव्यय। सावन के इस पवित्र माह में सभी मित्रों शुभेच्छुओं से विनम्रतापूर्वक  आग्रह है कि जल का संरक्षण करें। पर्यावरण का बचाएं। इसी में जीवन की सार्थकता है।

सावन: भगवान शिव सृष्टि के पहले जल कृषक

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जल ही जीवन है। जल के बिना सृष्टि में कोई जीवित नहीं रह सकता। जल को दूसरा नाम पानी है। जीवन में हर जीव का अपना-अपना पानी है। अगर उसका वह पानी उतर जाए तो वह समाज में मुह दिखाने लायक नहीं रह सकता। सनातन धर्म में भगवान शिव एक ऐसे देवता हैं जो सबका पानी राखते हैं। इसीलिए शायद उन्हें सावन का महीना सबसे प्रिय है। इस पूरे महीने में वह पानी का ही काम देखते हैं। यही वह समय होता है, जब मानसून सबसे अधिक सक्रिय होता है और बरसात होती है। इस समय क्षुद्र नदियों में पानी आ जाता है और वह इतराने लगती है। भगवान शिव कोई ऐसा नही बचता जिसके पानी की रक्षा न करते हों। वैसे भी भगवान शिव सृष्टि के पहले जल कृषक है। वह छत पर पानी की खेती करने के विशेषज्ञ भी है और वैज्ञानिक भी है। सावन माह के इस पवित्र अवसर पर सभी दोस्तों, मित्रों, शुभचिंतकों को इस उम्मीद और अपेक्षा के साथ बधाई कि भगवान शिव ने जिस पानी पर पानी चढ़ाया, हम उस पानी का पानी न उतारे। देश के लिए पानी को बचाएं, पानी का प्रदूषित होने से बचाएं, नदियों को गंदा न करें, नदियों को सूखने से बचाएं। आज पूरे देश में मानसून को लेकर चिंता है। सूखे के हालात उत्पन्न

गुरु पूर्णिमा: ज्ञान नहीं, चेतना देता है गुरु

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गुरु अस्तित्व देता है, ज्ञान नहीं। वह हमारी चेतना को विस्तृत करता है, ज्ञान को नहीं। वह मात्र एक बीज देता है और शिष्य भूमि बनकर उस बीज को अंकुरित होने, पनपने व खिलने देता है। गुरु-शिष्य संबंध संयोग मात्र भी है और एक होशपूर्ण चुनाव भी। यह दोनों है। जहां तक गुरु का सवाल है, यह पूर्णत: होशपूर्ण (जागरूकतापूर्ण) चुनाव है। जहां तक शिष्य का प्रश्न है, यह संयोग ही हो सकता है, क्योंकि अभी होश उसके पास है ही नहीं। मिश्च के रहस्यवादी कहते हैं, जब शिष्य तैयार हो जाता है, तब गुरु प्रकट हो जाता है। गुरु के लिए तो यह पूरी तरह से एक होशपूर्ण बात है। एक सूफी कहानी इसे समझने में तुम्हारी सहायता करेगी। सत्य को जानने की गहन अभीप्सा में एक नवयुवक ने अपने परिवार, अपने संसार को त्याग दिया और गुरु की खोज में निकला। जब वह नगर के बाहर निकल रहा था, तभी उसने एक वृद्ध को देखा। उसकी आयु लगभग साठ वर्ष रही होगी। वह एक वृक्ष के नीचे बैठा हुआ था। वह इतना शांत, आनंदित और चुंबकीय आकर्षण वाला था कि युवक अपने आप उसकी ओर खिंचा चला गया। वह उसके समीप पहुंचकर बोला, 'मैं एक गुरु की तलाश में हूं। मैं आपके ज्ञा

दिखा समाज का ‘बदनुमा’ चेहरा

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समाज में अभी भी ऐसे लोग विद्यमान हैं, जिनकी सोच में हैवानियत है। उनके निर्णय भी हैवानियत से भरपूर होते हैं। ऐसे निर्णय ही समाज के चेहरे को कलंकित, दागदार और बदनुमा बना देते हैं। ऐसा ही एक प्रकरण झारखंड राज्य के बोकारो जिले के गोमिया थाने के गुलगुलिया धौड़ा में मंगलवार (8 जुलाई 2014) को सामने आया। इसने समाज के दागदार चेहरे को बेनकाब कर दिया। बलात्कार का बदला लेने के लिए कथित आरोपी की नाबालिग बहन से बलात्कार की जितनी भी भर्त्सना की जाए कम है। सरेआम बिरादरी की पंचायत में उस युवक की नाबालिग बहन से बलात्कार का न सिर्फ फरमान सुनाया गया, बल्कि धमकी दी गयी कि फैसले का विरोध करनेवाले का भी यही हश्र होगा। निर्भया कांड के बाद देश भर में आक्रोश उफनने लगता है, पर इसी देश की एक बस्ती में नाबालिग बच्ची को बलात्कार कर लहूलुहान कर दिया जाता है और एक आवाज तक नहीं उठती। कुछ दिनों पहले झरिया के कतरास मोड़ स्थित गुलगुलिया बस्ती के एक युवक से कर्ज के एवज में उसके दो नाबालिग भाई को बंधक रख लिया गया था। करार के मुताबिक तय समय पर कर्ज की वापसी नहीं करने पर उसकी नाबालिग बेटी को उठा लेने का एक मामला प्रकाश में

कैसे सुधरेंगे ‘धरती के भगवान’

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चिकित्सक को धरती पर दूसरे भगवान का दर्जा दिया गया है। चिकित्सक से यह उम्मीद पूरे समाज को रहती है कि वह अपनी मानवतावादी दृष्टिकोण से हर अमीर और गरीब के साथ न्याय करेगा। इसके इतर इन दिनों पैसा कमाने के अंधाधुंध की होड़ में धरती के भगवान ने अपना फर्ज निभाना बंद कर दिया है। सप्ताह भर में देश के भीतर दूसरा वाकिया देखने को मिला जिसमें चिकित्सक की संवेदनहीनता से लोगों में उनके प्रति गुस्सा व्याप्त होना स्वाभाविक है। 4 जुलाई 2014 को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के खानपुर क्षेत्र के  ढकरौली गांव की रहने वाले राजेन्द्र की पत्नी बब्ली प्रसव से पीडित होने पर एक नर्सिंग होम में सुरक्षित प्रसव के लिए गई थी। वहां पैसे की मांग पूरी न कर पाने पर उसे नर्सिंग होम से निकाल दिया गया। घर लौटते समय रास्तें रेलवे लाइन पार करते समय उसने बच्चे को जन्म दिया। दूसरा वाकिया कुछ इसी तरह का 8 जुलाई 2014 को छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के व्यस्ततम चौराहे घड़ी चौक पर देखने को मिला। नगरघड़ी चौक पर सुबह लगभग आधे घंटे तक प्रसव पीड़ा से एक महिला छटपटाती रही। महिला की हालत देख उसका पति बिलखता रहा। यह नजारा देखकर लोगों के पैर

खेतों में किसान, शयन में भगवान

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आषाढ़ शुक्ल एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा गया है। सूर्य के मिथुन राशि में प्रवेश करने पर यह एकादशी आती है। इसी दिन से श्रीविष्णु क्षीर सागर में शयन पर चले जाते हैं और फिर लगभग चार माह बाद तुला राशि में सूर्य के जाने पर उन्हें जगाया जाता है। उस दिन को देवोत्थान एकादशी कहा जाता है। चार माह के इस अंतराल को ही चातुर्मास कहा गया है। इस अवधि में श्रीविष्णु के निद्रा में लीन और लोगों के खेती-किसानी में व्यस्त रहने के कारण मांगलिक अनुष्ठान निषेध माने गए हैं। यही वह समय है, जब धरती हरीभरी होकर उल्लास में डूब जाती है और आरंभ होता है जीव-जंतुओं के नवसृजन का काल। मानसून की बौछारें पड़ते ही जब धरती सर्वत्र हरीभरी नजर आने लगती है, तब शुरू होता है खेती-किसानी का दौर। किसान को कहां फुर्सत की वह खेती को छोड़ अन्य कार्यो के लिए समय निकाले। लिहाजा, इस कालखंड में मांगलिक अनुष्ठान निषेध कर दिए गए। ऐसे में श्रीविष्णु समेत समस्त देवतागण भी आराम करने शयनधाम की ओर चल पड़ते हैं। जो लोग कृषि, व्यापार आदि करते हैं उनकी व्यस्तता बढ़ना तो लाजिमी है, लेकिन जिनके पास साधन भी हैं और वक्त भी, उनके लिए भगवद् भक्ति का यह सर