किशनकांत की मौत से सबक से रेल विभाग

एक ओर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देशवासियों को दिखाए गए ‘अच्छे दिन लाने’ के सपने को साकार करने के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं। रेलमंत्री डीवी सदानंद गौडा रेलयात्रा को यात्रियों के लिए सरल, सुलभ और सुरक्षित बनाने की दिशा में कदम उठा रहे हैं। वहीं रेलवे के अधिकारी और कर्मचारी इस पर पानी फेरने में जुटे हुए हैं। ऐसे अधिकारियों और कर्मचारियों का शर्म नहीं आ रही है कि वे किस तरह से देश और विभाग के साथ अपना फर्ज निभा रहे हैं। यात्री उनके लिए भगवान सरीखा है। परिवार के लिए रोजी-रोटी का सहारा है। पर मोटी तनख्वाह पाने वाले इन अफसरों और कर्मचारियों के जेहन में यह बात कहां। वह तो अभिमान और गुरुर से हर समय भरे रहते हैं। वह न तो किसी यात्री की मनोदशा को समझने की कोशिश करते हैं और न ही मजबूरी। वह यह भी नहीं सोचते कि परेशान यात्री के लिए वह कहां तक सहयोगी बन सकते हैं। काश! ऐसा सोचते तो किशनकांत के अभागे ढाई साल की बेटी नंदनी के सिर से पिता का साया असमय न उठता। हम बात 16 जुलाई 2014 को लखनऊ से दिल्ली आने-जाने वाली शताब्दी एक्सप्रेस में घटी घटना की कर रहे हैं। इस घटना के केन्द्र में एक महिला टीटीई है। नई दिल्ली के तुगलकाबाद में बस स्टैंड के पास रहने वाले किशनकांत कंडर उर्फ कृष्णा (27) का 16 जुलाई की रात को शताब्दी एक्सप्रेस से दायां पैर कट गया था और बायें पैर की एड़ी कट गई थी। मेडिकल कॉलेज में इलाज के दौरान उसने देर रात दम तोड़ दिया। किशनकांत 15 जुलाई को अकराबाद में बहन दुर्गेश के घर झगड़े का निपटारा करने आया था। 16 जुलाई को दिल्ली लौट रहा था। रात करीब 8 बजकर 30 बजे लखनऊ से दिल्ली जा रही शताब्दी एक्सप्रेस यहां प्लेटफार्म-3 पर रुकी। किशनकांत ट्रेन में चढ़ गया। आरोप है कि बिना आरक्षित टिकट के ट्रेन में चढ़ने पर महिला टीटीई ने आपत्ति दर्ज की। इस पर विवाद हुआ और आरोप है कि टीटीई ने उसे उतारने के लिए धक्का दे दिया। इतने में ट्रेन चल दी। वह प्लेटफार्म और ट्रेन के बीच गिरकर पटरी तक पहुंच गया। ट्रेन के चक्कों से उसका एक पैर व एड़ी कट गई। किशनकांत मूलरूप से पश्चिम बंगाल के पूर्वी मिदनापुर जिले में नंदीग्राम थाने के गांव गंगड़ा का निवासी था। गांव में उसके माता-पिता व दो भाई हैं। उसकी ढाई साल की बेटी नंदनी है।  सवाल है कि अगर किशनकांत आरक्षित टिकट के बिना संबंधित बोगी में चढ़ गया था तो क्या उसके साथ यही सलूक किया जाना था। आरक्षित टिकट के बिना संबंधित बोगी में चढ़ने पर क्या रेलवे का कानून यही कार्रवाई करने की इजाजत देता है। अगर ऐसा नहीं तो फिर इसके लिए दोषी कौन? महिला टीटीई या फिर किशनचंद। हम यह भी मान लेते हैं कि पुरुष होने के नामे किशनचंद ने कुछ ज्यादती करने की कोशिश की होगी, तो सवाल उठता है कि शताब्दी एक्सप्रेस जैसी ट्रेन में चलने वाले स्क्वायड के जवान क्या कर रहे हैं। शायद इसका जबाब रेलवे के पास नहीं है। दुखद है कि फौरी तौर पर इस मामले में विभाग ने महिला टीटीई के खिलाफ कार्रवाई करने की बजाय पूरे मामले की लीपापोती करने में जुट गया। रेलवे विभाग को ऐसी घटनाओं को गंभीरता से लेना होगा। यह तो एक घटना है। इसके एक दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट के अन्तर्गत संचालित की गई माता वैष्णो देवी के दर्शन को जाने वली श्री शक्ति एक्सप्रेस अधिकारियों की लापरवाही के कारण सुरंग में फंस गयी। इंजन फेल हो जाने की वजह से यह ट्रेन करीब एक घंटे तक सुरंग में फंसी रही। यह कितनी बड़ी लापरवाही थी। ऐसे संवेदनशील रुट पर अफसरों ने पहले से इस बात का कोई विकल्प नहीं तैयार किया कि अगर इंजन फेल होता है तो फौरी तौर पर उससे कैसे निपटा जाएगा। यह तो कुछ उदाहरण है। आए दिन रेलवे महकमे की लापरवाही के अनेक मामले उजागर होते रहते हैं। जिम्मेदार लोगों को इन घटनाओं को लेकर संवेदनशील होना होगा।

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