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Showing posts from April, 2015

किसानों की खुदकुशी का असली अपराधी कृषि की उपेक्षा है

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किसानों की खुदकुशी पिछले कुछ समय से आम बात हो चली है। वर्ष 1995 के बाद से करीब तीन लाख किसानों ने खुदकुशी की है। ऐसे आंकड़े लगातार चिंताजनक बने हुए हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, 2010 में 15,963; 2011 में 14,201; 2012 में 13,754; और 2013 में 11,772 किसानों ने खुदकुशी की थी। आज 46 किसान हर रोज अपनी जान दे रहे हैं यानी हर आधे घंटे में एक किसान आत्महत्या के लिए मजबूर है। आमतौर पर विकसित राज्य माने जानेवाले महाराष्ट्र का रिकॉर्ड सबसे खराब है। कुल आत्महत्याओं में करीब 25 फीसदी घटनाएं यहां घटती हैं, और यह विगत 15 वर्षों से निरंतर होता चला आ रहा है। इस साल जनवरी से मार्च के बीच राज्य में 257 किसानों ने खुदकुशी की है। इस त्रासद स्थिति का असली अपराधी कृषि की दशकों से चली आ रही सांस्थानिक उपेक्षा है। कृषि क्षेत्र में देश की कामकाजी आबादी का 60 फीसदी हिस्सा संलग्न है, जिसमें सर्वाधिक गरीबों की अधिकांश संख्या भी शामिल है। हालांकि यह सकल घरेलू उत्पादन में 15 फीसदी से कम योगदान करता है। दरअसल, हमारी अर्थव्यवस्था की पूरी संरचना ही आड़ी-तिरछी हो गयी है। सबसे कम रोजगार प्रदान करनेवाला

प्रकृति की चेतावनी का समझें

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पड़ोसी देश नेपाल में शनिवार को आए भूकंप ने भीषण तबाही मचाई है। उत्तर भारत में भी इसका असर देखने को मिला। हलांकि यहां भूकंप ज्यादा प्रभावी नहीं रहा। पर प्रकृति की इस चेतावनी को समझना होगा। पहली बार यह देखने को मिला कि भूकंप के झटके आने की घटना इतने बड़े क्षेत्र में आने की खबर मिली। सोचें कि अगर भूकंप का झटका और तेज होता तो स्थिति कितनी प्रलयंकारी होती। ऊपरवाले को धन्यवाद है कि भारत भूकंप के इस झटके से हताहत नहीं हुआ। पिछले कई वर्षों से देश में अंधाधुध पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। नदियों के पानी के प्रवाह को रोका जा रहा है। पहाड़ों की छाती को चीरा जा रहा है। ऊंची अट्टालिकाएं बनाई जा रही हैं। एअर कंडीशन का प्रयोग किया जा रहा है। मानव के इन हरकतों से ग्लोबल वार्मिंग की समस्या बढ़ रही है। जलवायु परिवर्तन के खतरों के संकेत मिल रहे हैं। बावजूद इसके भी हम हैं कि सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं। प्रकृति की इस चेतावनी को हमें समझना होगा। अगर समय रहते हम इस चेतावनी को नहीं समझ सके तो आने वाला दिन भयावह हो सकता है। पड़ोसी देश नेपाल में भूकंप से अब तक 2500 लोगों के मरने की खबर मिल चुकी है। ने

सरकार के लिए चुनौती बाल विवाह के आंकडे

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ऋग्वेद की ऋचाएं बताती हैं कि बालिकाओं को विवाह की उम्र तय करने की आजादी रही। बाल विवाह को सामाजिक अपराध सरीखा माना गया। 2011 की जनगणना के आंकड़े अपने साथ भारत की एक चौंका देने वाली छवि लेकर आए हैं। यह आंकड़े केन्द्र और राज्य सरकार के लिए एक चुनौती है। साथ ही चुनौती उन सामाजिक संगठनों के लिए भी है जो बच्चों और बालिकाओं के अधिकार के नाम पर काम कर रहे हैं और लाखों रुपए की बजटीय सहायता प्राप्त कर रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक उड़ीसा में 15 साल में कम उम्र की लड़कियां अपने स्कूल जाने की उम्र में बच्चे को जन्म दे रही हैं। 15 साल से कम उम्र में मां बन चुकी ऐसी लड़कियों की तादाद 11000 है। ये आंकड़े सामाजिक कल्याण योजनाओं के विफलता की दास्तान भी बयां करते हैं। बाल विवाह को रोकने और कच्ची उम्र में गर्भधारण के मुद्दे पर जागरूकता फैलाने के मकसद से कई सरकारी और गैर-सरकारी योजनाएं जमीन पर काम कर रही हैं। लेकिन इस रिर्पोट ने ऐसी योजनाओं की पूरी रूपरेखा और कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। 15 साल से कम उम्र की 59.09 लाख लड़कियों में से 41,729 लड़कियां विवाहित पाई गई हैं। इसी आयु वर्ग की तकरीबन एक-चौथाई,

किसानों को स्नेह और सहानुभूति की जरुरत

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असमय बारिश और ओलावृष्टि ने उत्तर भारत के किसानों को तबाह कर रखा है। देश के कोने-कोने से किसानों के आत्महत्या करने और फसल की बर्बादी को देख सदमे से मौत हो जाने की खबरें आ रही हैं। ऐसी खबरों से साफ है कि किसान और उनके परिवारीजन कितनी भयावह मनोदशा से गुजर रहे होंगे। ऐसी परिस्थिति में किसानों को स्नेह और सहानुभूति की आवश्यकता है। कोई तो हो जो यह कहे कि नुकसान की भरपाई हो जाएगी, चिंता की कोई बात नहीं है। एक किसान जिसकी फसल चौपट हो गयी, उसके सामने परिवार के लोगों के पेट भरने की चिंता है, बेटी के ब्याह करने की चिंता है, बैंक से लिए गए कर्ज को चुकता करने की चिंता है। इन सब परिस्थितियों से निबटने के लिए उसके पास केवल फसल का ही सहारा था। फसल के चौपट हो जाने के बाद किसान अपने को असहाय पा रहा है। ऊपर से उसे बिजली का बिल चुकता करना है, बच्चों की पढ़ाई की फीस भरनी है, किताबें खरीदनी है जैसे तमाम सवाल उसके मन में उत्पन्न हो रहे हें। इस सदमें में वह या मौत को गले लगा ले रहा है या फिर हार्ट फेल हो जाने से उसकी खुद मौत हो जा रही है। देश के राजनैतिक दल, जो समय-समय पर किसानों का हितैषी होने की कसम खाते

बच्चियों के साथ दरिंदगी पर उदासीनता क्यों

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देश में लगातार बच्चियों के साथ दरिंदगी की घटनाएं बढ़ती जा रही है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और हरियाणा में हुई हाल की घटनाओं ने दरिंदगी की इंतहा पार कर दी है। बावजूद इसके भी सरकारों की तरफ से उदासीनता बरती जा रही है। अगर ऐसे ही रहा तो आने वाले दिनों में सामान्य परिवार के लोगों को अपनी बच्चियों की इज्जत बचा पाना मुश्किल होगा। साथ ही हिंसा की घटनाओं में भी इजाफा होगा। हिंसा की यह घटनाएं साम्प्रदायिक स्वरुप भी धारण कर सकेंगी। 2 अप्रैल 2015 को उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले की खौफनाक घटना सामने आयी। बदायूं के जरीफनगर में बंदूक के दम पर दो नाबालिग बहनों से बलात्कार किया गया। दोनों बहनें जब जंगल की तरफ निकलीं तो घात लगाए बैठे लोगों ने इस घटना को अंजाम दिया। काफी देर तक वापस न लौटने के बाद जब दोनों बहनों की तलाश में की गई तो गांववालों ने जंगल से चीख-पुकार सुनी। गांववालों ने लड़कियों को छुड़ाकर आरोपियों को पुलिस के हवाले कर दिया। पीड़ित के परिजनों ने पांच आरोपियों को पकड़ कर पुलिस के हवाले किया, जिसके पास से नाजायज असलहे भी बरामद हुए। दूसरी घटन 2 अप्रैल की ही मध्य प्रदेश की है। यहां रीव

महिला सशक्तिकरण के नाम पर अभिनेत्रियों का भोंड़ापन

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समाज का सुन्दर एवं सुव्यवस्थित स्वरुप प्रदान करने में महिला समाज का अद्वितीय स्थान है। शायद इसी वजह से भारतीय संस्कृति मातृ प्रधान है। हमारी संस्कृति में अगर देवताओं के नाम भी लिए जाते हैं तो पहले शक्तिस्वरुपा उनकी पत्नियों के नाम लिए जाते हैं, यथा सीताराम, राधे कृण्ण। वैसे सामाजिक तौर पर भी घर की मालकिन महिलाएं ही हुआ करती हैं। बच्चों के लिए भी मां को जो स्थान है, वह प्रथम रहता है। धरती को मां के रुप में आकाश को पिता के रुप में माना जाता है। देश की नदियों को भी मातृ स्वरुप में पूजा जाता है। ऐसी संस्कृति के बीच कतिपय अभिनेत्रियां खुद को महिलाओं के रोल मॉडल के रुप में प्रस्तुत कर रही हैं। मेरे ख्याल से यह लोकप्रियता हासिल करने का एक भोंड़ा तरीका होने  के अलावा और कुछ भी नहीं हो सकता। वैसे भी अभिनेत्रियों का उद्देश्य कम से अधिक पैसा और सोहरत कमाना ही होता है। ऐसी अभिनेत्रियां अब महिला सशक्तिकरण के बहाने भोंड़ापन दिखा रहीं हैं। पिछले दिनों 98 महिलाओं के साथ बॉलिवुड ऐक्ट्रेस दीपिका पादुकोण के एक ऐसे वीडियो ‘माई चॉइस’ की खबर सुर्खियों में रही, जिसमें महिलाओं के बारे में पुरुषों की कुंठित स