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जो देखा-सुना वही कहानी

यह वसंत पंचमी की शाम एक झांकी है. तीन घंटों के ‘शो’ में जो देखा-सुना वही कहानी बयान कर रहा हूं. दफ्तर से घर पहुंचने के दौरान रास्ते में दो दर्जन से अधिक पूजा पंडाल देखे. हरेक पंडाल में न्यूनतम चार-पांच साउंड बाक्स (स्पीकर) लगे थे.  आवाज के शक्ति - प्रदर्शन की इस अघोषित प्रतियोगिता में हर पूजा पंडाल दूसरे को पीछे छोड़ने पर आमादा था . गाना चाहे ‘ सात्विक ’ हो या ‘ तामसिक ’, फूल वाल्यूम में बज रहा था . छमक छम छमके अंगूरी बदन .. , मुंडा गोरा रंग देख के दीवाना हो गया .., झलक दिखला जा .. एक बार आ जा आ जा .. जैसे गाने अब सरस्वती पूजा के पारंपरिक गीत बन चुके हैं . पंडालों में नागिन व बराती डांस की धूम मची हुई थी . नृत्य में मग्न कुछ ऐसे उत्साही किशोर-युवा भी दिखे, जिन्होंने सिर्फ पैंट पहन रखी था. शर्ट हाथों में लेकर लहरा रहे थे. मजाल है कि कोई एक शब्द भी बोले-टोके. इनकी मस्ती में खलल डालना, अपनी जिंदगी दावं पर लगाने के बराबर था. उन पर ‘एल्कोहल’ नामक रसायन का प्रभाव इतना अधिक था कि यकीनन आसपास के ‘सभ्य’ लोगों की आखों से ‘सोडियम क्लोराइड’ युक्त जल की बूंदें निकली होंगी. आगे बढ़ा, तो मु