Posts

Showing posts from October, 2014

नवाज को न्योता देकर बुखारी ने शांत किया ‘गुस्सा’

Image
दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम अहमद बुखारी ने नायब इमाम की दस्तारबंदी की रस्म में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को बुलावा भेजकर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दावत न देकर अपना ‘गुस्सा’ शांत किया है। देश के लोग उन्हें जो चाहे सो कहें पर उनके मन की तृष्णा शांत हो गयी। मेरा इशारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह की ओर है। अधिकृत तौर पर तो नहीं कह सकता पर मीडिया के जरिए जो बात सामने आयी, उसके अनुसार इमाम बुखारी नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री पद के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं हुए थे। जाहिर है, इसके पीछे यही हो सकता है कि उन्हें इस आयोजन की दावत नहीं मिली रही होगी। अब जब मोदी को बुखारी साहब द्वारा निमंत्रण न देकर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को दावत भेज दी गई तो इस बात पर चर्चा होने लगी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह पड़ोसी देश के प्रधानमंत्रियों को बुलाया गया था। साथ ही देश के प्रमुख धार्मिक व अन्य संस्थाओं के गणमान्य लोगों को ससम्मान आमंत्रित किया गया था। पर उस समय शायद यह भूल हो गयी होगी कि इमाम बुखारी साहब को वह तवज्जो नहीं दी गयी,

लोग मरते रहे जिंदा रहा एंडरसन

Image
31 अक्टूबर 2014 कई मायनों में भारतवासियों के लिए उत्सुकता का दिन रहा। आज ही के दिन दो शख्यितों स्व. इंदिरा गांधी और स्व. सरदार वल्लभभाई पटेल को लेकर राजनीतिक दलों में खुलकर खार्इं खड़ी करते देखा गया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सरदार पटेल को तवज्जों देते हुए उनकी जयंती पर राष्ट्रीय एकता दिवस घोषित किया और कार्यक्रम में शामिल हुए। मोदी ने इंदिरा गांधी को उनके 30वें बलिदान दिवस पर याद तो किया पर इंदिरा जी की समाधिस्थल पर नहीं गए। इसी दिन देश में यह खबर आई कि भोपाल गैस त्रासदी का आरोपी एंडरसन अब इस दुनिया में नहीं रहा। अमेरिकी मीडिया की मानें तो 92 साल के एंडरसन की मौत तो 29 सितंबर को ही हो गई थी, लेकिन उसके परिजनों ने छिपाकर रखा और अब खुलासा किया है। बहरहाल, वॉरेन एंडरसन की मौत कब हुई, कैसे हुई इस पर ज्यादा चर्चा न करते हुए हम बात करेंगे, उन कार्यों की जो उसने अपने जीवन काल में किए। हम बात करेंगे वॉरेन एंडरसन की उस कंपनी की, जिसके लिए इंसान जान की कोई कीमत नहीं थी। उसे केवल मुनाफे से मतलब था। मध्य प्रदेश में तीन दिसंबर 1984 को भोपाल में भयावह औद्योगिक दुर्घटना हुई थी। उस दिन यूनियन क

कर्म को जिन्होंने सर्वोपरि माना

Image
30 साल पहले वक्त ठहर गया था। देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उनके ही घर में गोलियों से भून दिया गया। पूरे देश को हिला देने वाली इस वारदात को कुछ लोगों ने अपनी आंखों से देखा। उस समय समाचार पत्रों में प्रमुखता से इसका प्रकाशन किया गया था। 30 साल की अवधि बीत जाने के बाद 31 अक्टूबर 2014 को उन स्मृतियों को ताजा करने के लिए तत्समय विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित तथ्यों के आधार पर यह लेख आपके सामने रख रहा हूं। ------------------------- उड़ीसा में जबरदस्त चुनाव प्रचार के बाद इंदिरा गांधी 30 अक्टूबर की शाम दिल्ली पहुंची थीं। आमतौर पर जब वो दिल्ली में रहती थीं तो उनके घर एक सफदरजंग रोड पर जनता दरबार लगाया जाता था। लेकिन ये भी एक अघोषित नियम था कि अगर इंदिरा दूसरे शहर के दौरे से देर शाम घर पहुंचेंगी तो अगले दिन जनता दरबार नहीं होगा। 30 तारीख की शाम को भी इंदिरा से कहा गया कि वो अगले दिन सुबह के कार्यक्रम रद्द कर दें। लेकिन इंदिरा ने मना कर दिया। वो आइरिश फिल्म डायरेक्टर पीटर उस्तीनोव को मुलाकात का वक्त दे चुकी थीं। तत्कालीन एसीपी दिनेश चंद्र भट्ट के मुताबिक जैसे एक नॉर्मल तरीका होता है।

चला गया संतोष का 'आनंद'

Image
दिल दहला देने वाली एक घटना में बुधवार को मशहूर गीतकार संतोष आनंद के बेटे और बहू ने आत्महत्या कर ली। रोटी-कपड़ा और मकान, प्रेमरोग, उपकार, प्यासा सावन जैसी फिल्मों में दिल को छू लेने वाले गीत लिखने वाले संतोष आनंद को दो बार फिल्मफेयर अवार्ड मिल चुका है। अब वो 75 साल के हैं, ठीक से चल भी नहीं पाते हैं। इस हाल में उन्हें वो दर्द मिला है, जिसे किसी भी पिता के लिए सहना आसान नहीं। उनके बेटे संकल्प आनंद ने अपने सुसाइड नोट में एक घोटाले को अपनी मौत की वजह बताया है। संतोष की जिंदगी से आनंद हमेशा के लिए जा चुका है, लेकिन बेटे को इंसाफ दिलाने की जंग भी उन्हें लड़नी है। मैं 75 साल का हो गया हूं, चल भी नहीं सकता हूं, मेरे बेटे की मौत हो गई है। जिंदगी की संध्याबेला में दर्द से डूबे हुए अल्फाज उस शख्स के हैं, जिसने ताउम्र होठों पर जिंदगी को गीत बना कर गाया है। बेटे संकल्प आनंद और बहू नरेश नंदिनी की मौत ने मशहूर गीतकार संतोष आनंद को भीतर तक तोड़ दिया है। बुजुर्ग कांधे पर जवान बेटे की लाश का बोझ-ये दुख सहना किसी भी पिता के लिए बदकिस्मत लम्हा होता है। अपने संवेदनशील गीतों से कई पीढ़ियों क