लोग मरते रहे जिंदा रहा एंडरसन

31 अक्टूबर 2014 कई मायनों में भारतवासियों के लिए उत्सुकता का दिन रहा। आज ही के दिन दो शख्यितों स्व. इंदिरा गांधी और स्व. सरदार वल्लभभाई पटेल को लेकर राजनीतिक दलों में खुलकर खार्इं खड़ी करते देखा गया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सरदार पटेल को तवज्जों देते हुए उनकी जयंती पर राष्ट्रीय एकता दिवस घोषित किया और कार्यक्रम में शामिल हुए। मोदी ने इंदिरा गांधी को उनके 30वें बलिदान दिवस पर याद तो किया पर इंदिरा जी की समाधिस्थल पर नहीं गए। इसी दिन देश में यह खबर आई कि भोपाल गैस त्रासदी का आरोपी एंडरसन अब इस दुनिया में नहीं रहा। अमेरिकी मीडिया की मानें तो 92 साल के एंडरसन की मौत तो 29 सितंबर को ही हो गई थी, लेकिन उसके परिजनों ने छिपाकर रखा और अब खुलासा किया है। बहरहाल, वॉरेन एंडरसन की मौत कब हुई, कैसे हुई इस पर ज्यादा चर्चा न करते हुए हम बात करेंगे, उन कार्यों की जो उसने अपने जीवन काल में किए। हम बात करेंगे वॉरेन एंडरसन की उस कंपनी की, जिसके लिए इंसान जान की कोई कीमत नहीं थी। उसे केवल मुनाफे से मतलब था। मध्य प्रदेश में तीन दिसंबर 1984 को भोपाल में भयावह औद्योगिक दुर्घटना हुई थी। उस दिन यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी में करीब 40 टन गैस का रिसाव हुआ था। इसकी वजह थी टैंक नंबर 610 में जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का पानी से मिल जाना। इससे हुई रासायनिक प्रतिक्रिया की वजह से टैंक में दबाव बना, जिससे वह खुल गया जहरीली गैस का रिसाव शुरू हो गया। इस हादसे को हम भोपाल गैस कांड या भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जानते हैं। इस हादसे में 15,000 से अधिक लोगों की मौत हो गई, करीब 40,000 लोग या तो अपंग हुए या रोगों से पीड़ित हो गए। लोगों की मौत में आंकड़ों में अब तक कोई स्पष्टता नहीं है। भोपाल गैस त्रासदी का बुरा प्रभाव करीब पांच लाख लोगों पर पड़ा। इस हादसे के लिए जिम्मेदार था यूनियन कार्बाइड आॅफ इंडिया का तत्कालीन सीईओ वॉरेन एंडरसन। यूनियन कार्बाइड की शुरूआत 1886 में हुई थी। उस वक्त यह कार्बन बनाने वाली कंपनी हुआ करती थी, लेकिन बाद में यह कंपनी कैमिकल इंडस्ट्री के क्षेत्र में उतर गई। इस क्षेत्र में उस समय जबर्दस्त होड़ लगी थी, जिसे ध्यान में रखते हुए चार कंपनियां एक साथ आईं और वर्ष 1917 में यूनियन कार्बाइड एंड कार्बन कॉर्प नाम की कंपनी का जन्म हुआ। नए नाम के साथ काम भी नया था। ऐसा काम, जो खतरनाक था, लेकिन डॉलर की चमक के आगे सब फीका पड़ गया। 1960 तक आते-आते यूनियन कार्बाइड ने अपने कार्य के सभी क्षेत्रों में पहला स्थान हासिल कर लिया था। फिर चाहे आॅटोमिक एनर्जी हो या इंडस्ट्रियल गैस। बैटरी हो या कार्बन इलेक्ट्रॉड्स सभी क्षेत्रों में यह कंपनी हुई थी, लेकिन यहां तक का सफर तय करने से पहले ही यूनियन कार्बाइड एंड कार्बन कॉर्प पर दाग लग चुका था, जिसका नाम है- हॉक्स नेस्ट सुरंग त्रासदी। यह घटना 1927 और 1932 के बीच अमेरिकी प्रांत वर्जीनिया के पश्चिमी इलाके में घटी। वहां यूनियन कार्बाइड एक सुरंग परियोजना पर कार्य कर रही थी। सुरंग निर्माण के दौरान श्रमिकों को सिलिका खनिज मिला, जिसका खनन उन्हें करना था, लेकिन बिना सुरक्षा उपकरणों के। यूनियन कार्बाइड ने खनिकों को सुरक्षा उपकरण जैसे कि नकाब या श्वसन यंत्र नहीं प्रदान किए थे। सिलिका की धूल के संपर्क में आने से कई खनिकों के फेफड़े कमजोर हो गए। उन्हें फेफड़ों की बीमारी सिलिकोसिस हो गई थी। कंपनी की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार, वहां 109 लोगों की मौत हुई थी, लेकिन बाद में अमेरिकी कांग्रेस के जांच दल ने 476 लोगों के मरने की बात कही थी। हालांकि, यह कहा जाता है कि हॉक्स नेस्ट सुरंग त्रासदी की वजह से लोगों के मरने का सिलसिला कई साल तक चला था। उन्हें गंभीर बीमारी हुई और वे कुछ साल बाद दम तोड़ते गए, इस कारण से सही मौत का सही आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, लेकिन अमेरिकी मीडिया रिपोर्ट बताती हैं कि उस त्रासदी में 4000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। हॉक्स नेस्ट सुरंग त्रासदी उस वक्त अमेरिकी मीडिया में छाया जरूर था, लेकिन इससे यूनियन कार्बाइड के भविष्य पर कोई असर नहीं पड़ा और 1956 से 1966 के बीच कंपनी का कारोबार दुनिया भर में फैलना शुरू हो गया था। यूनियन कार्बाइड ने इस अवधि में 30 देशों में 60 बड़ी कंपनियों के साथ समझौते किए और करीब 100 बड़े बाजारों में उपस्थिति दर्ज कराई थी। 1960 से 70 के बीच कंपनी का कारोबार तीन अरब डॉलर तक जा पहुंचा था। अगले एक दशक में भी यूनियन कार्बाइड ने कारोबार तेजी बनाए रखी और 1980 तक आते-आते 1,16,000 कर्मचारी उसके लिए कार्य कर रहे थे। कंपनी का विस्तार 130 देशों तक हो चुका था, जहां पर 500 प्लांट लगाए जा चुके थे। विस्तार के इसी सुनहरे दौर में यूनियन कार्बाइड आॅफ इंडिया का काला सच दुनिया के सामने आया। तीन दिसंबर 1984 को भोपाल गैस त्रासदी हुई, जिसने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया। हालांकि, भारत में यह कंपनी अंग्रेजों के जमाने में ही आ गई थी। 1934 में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड की स्थापना हुई थी, जिसने पांच अलग-अलग स्थानों पर 14 प्लांट लगाए थे। इन प्लांटों में करीब 9,000 लोग काम करते थे। उस समय यह कंपनी बैटरी, कार्बन प्रोडक्ट, वेल्डिंग उपकरण, प्लास्टिक, पेस्टीसाइड और इंडस्ट्रियल कैमिकल बनाती थी। भोपाल के जिस प्लांट में 1984 में वह दुखद घटना घटी थी, वहां पर कीटनाशक बनाए जाते थे। जिस वक्त यह हादसा हुआ था, तब यूनियन कार्बाइड की कमान वारेन एंडरसन के हाथों में थी। भारत के सियासी गलियारों में उसकी धमक का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हादसे के कुछ दिन बाद ही वह अमेरिका भागने में कामयाब रहा था और फिर कभी भारत उस तक नहीं पहुंच पाया। भोपाल हादसे के महज तीन माह बाद एक टीवी इंटरव्यू में एंडरसन ने साफ तौर पर कहा कि हादसे के लिए कारखाने के कामगार जिम्मेदार हैं वो नहीं। वारेन एंडरसन ने इस इंटरव्यू में कहा, सुरक्षा उन लोगों की जिम्मेदारी है जो हमारे कारखानों में काम करते हैं और इस तरह की व्यवस्था में आप उनको जिम्मेदारी से बरी कर किसी और को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते। मीडिया रिपोर्टों में तो यहां तक खुलासे हुए कि वारेन एंडरसन को विमान में छोड़ने खुद भोपाल के तत्कालीन एसपी और कलेक्टर आए थे। यह खुलासा भोपाल के रहने वाले वेदप्रकाश ग्रोवर ने किया था। उन्होंने दावा कि सात दिसंबर 1984 को वह अपनी मौसी पुष्पा चक्रवर्ती से मिलने दिल्ली जा रहे थे। उनकी मौसी की तबीयत खराब थी और उन्हें देखने के लिए ग्रोवर को उस दिन तुरंत दिल्ली पहुंचना था। सुबह उन्होंने इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट का टिकट लिया था, लेकिन वो फ्लाइट छूट गई। एयरपोर्ट पर शासकीय विमान के पायलट एसएच अली से ग्रोवर ने दिल्ली तक ले जाने का निवेदन किया तो पायलट अली मान गए। संयोग से ग्रोवर को जिस विमान से जाने की अनुमति मिली थी, उसी से वारेन को भी ले जाया जा रहा था। उनके साथ एक डीएसपी भी था, जिस पर एंडरसन को अमेरिका की फ्लाइट तक पहुंचाने की जिम्मेदारी थी। उस डीएसपी ने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई और एंडरसन सकुशल अमेरिका पहुंच गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर एंडरसन को फरार कराने के आरोप भी लगे थे। भोपाल गैस त्रासदी के प्रभावित आज भी न्याय के लिए संघर्ष कर रहे हैं और उनका गुनहगार बिना सजा पाए इस दुनिया को छोड़ चुका है और भोपाल में छोड़ गया गैस त्रासदी का कचरा, जो आज भी वैसा ही पड़ा है। उसे न तो कोई अमेरिकी कंपनी उठाने आती है और न ही भारत में उसे हाथ लगाने की किसी ने हिम्मत की है।

Comments

Popular posts from this blog

लोगों को लुभा रही बस्तर की काष्ठ कला, बेल मेटल, ढोकरा शिल्प

प्रतापगढ़ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्यकर्ताओं ने देश कल्याण के लिए किया महामृत्युंजय जप

सावित्री जगत ‘तेजस्विनी’ सम्मान से सम्मानित