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मन में छिपे किसी एक भय का पुतला दहन कर देते है

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आइए एक संकल्प लें... आज विजयदशमी है। यह वक्त किसी भी तरह दोनों के बीच सही संतुलन साधने की कोशिशें करने का है। मन से ‘रावण’ को बाहर निकाल कर ‘राम’ को वहां स्थापित करने का है। लेकिन, अपने मन से रावण को बाय-बाय कहें तो कैसे? मन के रावण का मतलब भय है। हमारे मन में छोटे-छोटे भय बैठे होते हैं। किसी को अंधेरे से डर लगता है, तो किसी को बढ़ते वजन से डर लगता है। किसी को गाड़ी चलाने से तो किसी को अंग्रेजी से। आइए आज संकल्प लें, इस साल दशहरा के मौके पर अपने मन में छिपे किसी एक भय का पुतला दहन कर देते हैं। जरा सोचें कि वह एक बुरी आदत, जो हमारे पूरे व्यक्तित्व को कठघरे में खड़ा कर देती है, उसे बदलने का प्रयास सच्चे मन से क्यों नहीं होता। अपनी जिंदगी में उस एक व्यक्ति को माफ कर देने की कोशिश भी करनी चाहिए, जिस पर हम काफी समय से खफा हैं। वजह चाहे जो भी हो। उस गुस्से से चाहे उसका कुछ भी न बिगड़े, हमारा खून जरूर जलता है। फिर क्यों न हम अपने सोच को सकारात्मक दिशा में लगा कर अपनी इस दशा पर विजय पा लें। इस विजयदशमी हम यह संकल्प करें कि हम खुद में एक ऐसे गुण का विकास करने की कोशिश करेंगे। संकल्प के हाथों जड़