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Showing posts from December, 2013

अच्छा हुआ 2013 सदा के लिए चला गया, 2014 जिंदाबाद!

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जूलियन बार्नेस की अच्छी किताब का शीर्षक है-’द सेंस ऑफ एन एंडिंग’. हिंदी में इसे ‘खत्म होने का बोध’ कह सकते हैं. यह अनिवार्यत: बीते वर्ष के लिए अतीत-मोह (नॉस्टैल्जिया) पैदा करता है. सौभाग्य से, अतीत के प्रति यह प्रेम हमें फिर से उन सुर्खियों में निमग्न नहीं करता, जो रोजाना ध्यानाकर्षण का विषय थे, जो अहं, झूठ, पाखंड व दंभ का विषाक्त घालमेल थे, जो हत्यारी भीड़वादी मानसिकता से लिपटे थे, पर जिसे प्रासंगिक बना दिया गया. इसके उलट, एकांत में खड़े कई जगमग दीपस्तंभ भी थे.2013 के आनंददायी पलों में से एक तो बिल्कुल हाल का है. हाल ही में भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच संपन्न टेस्ट मैच, जिसे मैंने केरल के एक रिसॉर्ट में तुलनात्मक रूप से अकेलेपन में देखा. यह जीत के लिए आमादा दो टीमों के कौशल और चरित्र का खतरनाक इम्तिहान था, जो जीत न मिलने की सूरत में विपक्ष को भी नहीं जीतने देना चाहते थे. अंतिम दिन मानो किसी महाकाव्य सरीखा था, स्थायी खेल के बीच जब-तब बिजली की चौंध जैसा. भारत को फिसलते देखना दुष्कर था, पर टीवी बंद करना नामुमकिन था. हार स्वीकारना आसान है. हम इसे अपनी आम जिंदगी में रो

सोच बदलने की जरूरत

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बुजुर्गो का यह अनुभव नयी पीढ़ी के लिए ‘टॉनिक’ का काम कर रहा है कि जीवन एक दौड़ है. शायद इसीलिए जीवन की भागदौड़ पीढ़ी-दर-पीढ़ी तेज हो रही है. हर किसी को जल्दी मंजिल तक पहुंचना है. परंतु जीवन की असली मंजिल क्या है और उसे पाने का सही रास्ता कैसा हो, परिवार में यह ‘उपदेश’ देने की अब न तो बुजुर्गो को इजाजत है और न ही उसे सुनने के लिए नयी पीढ़ी के पास धैर्य. यहां तक कि स्कूली पाठय़क्रमों में भी ऐसी नैतिक शिक्षा ‘आउटडेटेड’ मान ली गयी है. जरा ठहर कर सोचें, तो ठीक एक साल पहले देश की राजधानी में ‘निर्भया’ के साथ हुए निर्मम गैंग रेप के बाद आये देशव्यापी उबाल के किसी मंजिल तक पहुंचे बिना ही शांत हो जाने और पिछले एक साल में देश में रेप की घटनाओं के लगातार बढ़ते जाने के कुछ सूत्र इसी में छिपे हैं. जन-दबाव में कानून में तो बदलाव कर दिये गये, लेकिन महिलाओं के खिलाफ नजरिया बदलने की कोई ठोस पहल नहीं की गयी, न समाज के स्तर पर, न ही सरकार के स्तर पर.शायद यही कारण है कि निर्भया मामले के बाद देशव्यापी आंदोलन के सूत्रधार बने दिल्ली के ‘जंतर-मंतर’ से एक साल बाद भी वही आवाज सुनायी दे रही है- ‘

हे धारा 377! तुम क्या हो

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हे धारा 377! तुम क्या हो?.. धारा हो या नाव हो?.. क्या चुनावी वैतरणी पार करने का सामान हो.. किसी नेता के हसीन ख्वाब का विमान हो?.. तुम न उतरनेवाला मियादी बुखार हो या मौसमी जुकाम हो?.. तुम केसर की क्यारी हो या चुनाव से पहले उगनेवाली झाड़ी हो?.. तुम बासी कढ़ी में उबाल हो या खौलती चाय हो?.. तुम मुद्दा-ए-आम हो या फिर आम का बरसों पुराना अचार हो?.. तुम सांप हो, सीढ़ी हो.. या फिर बहसों की पुरानी पीढ़ी हो?.. तुम एक ऊंची दुकान का फीका पकवान हो या गिद्धों के महाभोज में बिछा स्थायी दस्तरख्वान हो?.. तुम सियासी नेताओं के लिए चुनावी हुंकार हो या जनता के दिल तक पहुंचने का द्वार हो?.. तुम हिंदुस्तान का वादा हो या वादाशिकनों की आंख का कांटा हो? तुम भारत  के बीच सेतु हो या एक दीवार अहेतु हो?..हे धारा 377! तुम क्या हो?.. मनुहार हो या अधिकार हो?.. या कभी भी वापस मांगा जा सकनेवाला उधार हो?.. तुम किसका किस पर एहसान हो?.. तुम आखिरी सरमाया हो या धन पराया हो?.. तुम चमचम करता हिंदुस्तानी नजराना हो या खूंटी पर लटका कोट पुराना हो?.. तुम खुदमुख्तारी का एलान हो या सीने पर फौजी बूटों का निशान हो?.. तुम

समलैंगिता पर सुप्रीम कोर्ट से असहमत हैं राहुल

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कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने उच्चतम न्यायलय के उस फैसले पर विरोध जताया जिसमें समलैंगिकता को अवैध बताया गया है. उन्होंने कहा कि वह दिल्ली उच्च न्यायालय के उस फैसले से सहमत है जिसने समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया था. वहीं,दिल्ली में सरकार बनाने के लिए कांग्रेस के आप पार्टी को समर्थन दिए जाने के बारे में पूछे गए एक सवाल पर राहुल गांधी ने कहा कि इस पर विचार किया जा रहा है. राहुल गांधी ने यहां मीडिया को दी अपनी संक्षिप्त टिप्पणी में कहा, ‘‘मैं व्यक्तिगत रुप से मानता हूं कि ये व्यक्तिगत आजादी के मामले हैं. मैं सोचता हूं, मैं उच्च न्यायालय के फैसले से ज्यादा सहमत हूं.’’ हालांकि राहुल ने संवाददाताओं के किसी सवाल का जवाब नहीं दिया. दिल्ली उच्च न्यायालय ने समलैंगिकता को वैध बताया था लेकिन उच्चतम न्यायालय ने इस फैसले को पलट दिया. राहुल ने कहा,‘‘मैं समझता हूं इन मामलों को लोगों पर छोड़ दिया जाना चाहिए. ये व्यक्तिगत पसंद हैं. यह देश अपनी स्वतंत्रता, बोलने की आजादी के लिए जाना जाता है. इसलिए इसे वैसे ही रहने दिया जाये.’’ समलैंगिकता पर राहुल गांधी की टिप्पणी कांग्र

समलैंगिक संबंध बनाना अपराध

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  साढ़े चार साल के बाद समलैंगिक संबंध बनाना अब फिर अपराध होगा। सुप्रीमकोर्ट ने बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट का वह फैसला रद कर दिया जिसमें दो वयस्कों के बीच समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया था। सुप्रीमकोर्ट ने भारतीय दंड संहिता [आइपीसी] की धारा 377 को संवैधानिक ठहराया है। हालांकि, कोर्ट ने धारा 377 को कानून की किताब से हटाने का फैसला संसद पर छोड़ दिया है।सुप्रीमकोर्ट के फैसले के बाद अप्राकृतिक यौनाचार और समलैंगिक संबंधों को अपराध मानने वाली धारा 377 पहले की तरह ही लागू हो गई है। इस अपराध में उम्रकैद तक का प्रावधान है। कोर्ट के फैसले पर समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने की लड़ाई लड़ रहे गैर सरकारी संगठनों और उनके कायकर्ताओं ने गहरी निराशा जताते हुए फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की बात कही है। मालूम हो कि दिल्ली हाईकोर्ट ने 2 जुलाई 2009 को फैसला सुनाया था जिसमें दो वयस्कों के बीच एकांत में बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था। विभिन्न सामाजिक और धार्मिक संगठनों ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप

राजनीति मे उत्तम हैं सोनिया के सितारे

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इटली के त्यूरिन शहर मे जन्मी सोनिया गांधी की जन्म लग्न कर्क है नक्षत्र मण्डल मे जिस वक्त सोनिया जी जन्म हुआ उस समय मिथुन राशि मे चन्द्रमा, कर्क लग्न का अधिपति होकर द्वादश स्थान मे है। जीवन मे चन्द्र ग्रह का स्वामित्व होने के कारण कल्पनाशीलता का स्वाभाविक गुण पाया जाता है। जो कार्य यह करेंगी पूरी दृढ़ता के साथ करेंगी चाहे जो भी क्षेत्र हो काम करना है तो र्इमानदारी और निष्ठा के साथ करना है अपने उत्तरदायित्यों के प्रति बेहद जागरुक रहेंगी। अगाध प्रेम की भावना भी स्पष्ट रुप से समाज, परिवार तथा राजनैतिक जीवन मे प्रतीत होगी। कर्क लग्न मे शानि उत्तम राजयोग सूचक होता है। पुस्तक मानसागरी के अनुसार- कर्क लग्ने समुत्पन्ने धर्मी भोगी जनप्रिय:। मिष्ठान पानभोक्ताच सौभाग्य संयुत:।। परदेशग: सुधीर: साहस कर्मा जलाधिगत वित:। स्त्री भूषणाम्बर सुखौभोगैश्च समानिवतो भवति।। इस राशि के चरणो मे मुख्यत: पुनर्वसु, पुष्य और श्लेषा नक्षत्र की समाविषिट रहती है। पुनर्वसु का स्वामी बृहस्पति, पुष्य का स्वामी शनि तथा श्लेषा का स्वामी बुध ग्रह माना गया है इन सभी ग्रहों का समावेश सोनिया जी के स्वभाव में है

बेनकाब होंगे कई सफेदपोश

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देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के शक में देश की शीर्ष औद्योगिक कम्पनियों की सबसे ताक़तवर लॉबीइस्ट रहीं नीरा राडिया के फोन की टैपिंग 16 नवम्बर, 2007 को वित्त मंत्रालय के हलफ़नामे के आधार पर शुरू की गई थी| तब किसी को भी यह अंदाज़ा नहीं था कि इस फोन टैपिंग की जांच से देश के कुछ मीडिया हाउसेज़, सत्ता और कोर्पोरेट लॉबी के गठजोड़ का हैरान कर देने वाला ख़ुलासा होगा, जिससे देश के कई जाने-माने उद्योगपति, मीडिया के कुछ बड़े चेहरे और कई केन्द्रीय मंत्री-राजनेता, एक ही हम्माम में नंगे खड़े नज़र आएंगे| नीरा राडिया, शासकीय अधिकारियों एवं रिलायंस समूह के अधिकारियों के बीच हुई बातचीत का ब्यौरा जानकर सुप्रीम कोर्ट भी सकते में है| सरकारी अधिकारियों और उद्योपतियों ने मिलकर ग़लत तरी़के से सरकार और शासन के साथ अरबों रुपयों की धोखाधड़ी की है, इसका ख़ुलासा राडिया टेप कांड से हुआ है| इस टेप की मार्फ़त जो सबूत सुप्रीम कोर्ट को मिले हैं, उसकी बिना पर इस बात की संभावना है कि सीबीआई की जांच से जल्द ही रिलायंस समूह की गड़बड़ियों पर सुप्रीम कोर्ट की गाज गिर सकती है| अब, जबकि सीबीआई ने नीरा राडिया टेप मामले म

बरकरार है घावों के दर्द

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6 दिसम्बर 1992 के दिन एक ऐसी बर्बर घटना घटी जिसे याद करके आज भी हमारी रूह कांप उठती है। धर्म के नाम पर जो कुछ हुआ वो न भुलाये जाने वाली घटना बन कर रह गई। लोग लड़े-भिड़े, कत्लेआम हुए, आज तक उन घावों के दर्द बरकरार हैं। और आज-तक उस घटना से उत्पन्न टकराव जारी है… आज के दिन कोई अपने आन मान की लड़ाई के लिए कोई शौर्य दिवस मनाता है, तो कोई कलंक दिवस, लेकिन जिन पर वो सब गुजरा उनसे पूछें वो …वो क्या मनाते हैं?…क्या सोचते हैं?…आज उस अमानुशिक घटना की 21 बरसी है। गंगा-जमुनी तहजीब का संगम है अयोध्या, हिंदुओं के लिए रामलला, हनुमंतलाल और नागेश्वरनाथ जैसे तीर्थ का स्थान, कुंभ की नगरी यहीं मुस्लिमों के पैगंबरों, बौद्धों के धर्मगुरुओं और जैनियों के तीर्थकरों का केंद्र भी यहीं हैं…इस धरती ने समय-समय पर विदेशी के कई घाव झेले फिर भी शान से खड़ा रहा। लेकिन इस धरती के अपनों ने ही उसे ऐसे घाव दे डाले जिसके नासूर आज भी कायम हैं। ऐसा पहली बार नहीं हुआ देश में साम्प्रदायिक दंगे हुए। आजादी मिली तो दंगे, आजाद हुए तो दंगे। वर्ष 1947 में देश आजाद होने के साथ भारत-पाकिस्तान बंटवारे के समय हिन्दू- मुस

इस देश ने चरित्र खो दिया

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किसी भी समाज को संकट में आध्यात्मिक ताकतें रास्ता दिखाती रहीं हैं. खासतौर से भारत में. 12वीं शताब्दीसे 16वीं-17वीं शताब्दी तक, जब भारत लगातार बाहरी आक्रमण झेल रहा था, उसकी संस्कृति, इतिहास और मान्यताओं पर हमले हो रहे  थे. राजा भोगी हो गये थे. तब भक्त कवियों ने, सच्चे आध्यात्मिक संतों ने इस देश को राह दिखायी. आज आसाराम बापू या उनके पुत्र नारायण साईं जैसे लोग धर्म और अध्यात्म की बात करते हैं. निर्मल बाबा के टोटकों में देश मुक्ति तलाश रहा है. दरअसल, इस देश ने चरित्र खो दिया है. भारतीय राजनीति में गांधी के अवतरण ने इस चरित्र को ही निखारा. संघर्ष की आग में तपा कर गांधी ने नेताओं का चरित्र निखारा. गांधी की ताबीज थी, साधन और साध्य में एकता. यानी कर्म और चरित्र की एकता. बानगी के तौर पर, सिर्फ कामराज को लें. वह अपढ़ थे. समाज के सबसे कमजोर तबके से थे. देश के दो-दो प्रधानमंत्रियों के चयन में उनकी सबसे महत्वपूर्ण भूमिका. उन्हें प्रधानमंत्री बनने के लिए लोगों ने कहा. उन्होंने मना कर दिया. आज सबसे पहले कुरसी चाहिए. पैसे से सत्ता और सत्ता से पैसे, यही राजनीति का गणित हो गया है.  गा

शिव है प्रथम और शिव ही है अंतिम

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शिव है प्रथम और शिव ही है अंतिम। शिव है सनातन धर्म का परम कारण और कार्य। शिव को छोड़कर अन्य किसी में मन रमाते रहने वाले सनातन विरुद्ध है। शिव है धर्म की जड़। शिव से ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष है। सभी जगत शिव की ही शरण में है, जो शिव के प्रति शरणागत नहीं है वह प्राणी दुख के गहरे गर्त में डूबता जाता है ऐसा पुराण कहते हैं। जाने-अनजाने शिव का अपमान करने वाले को प्रकृ‍ति कभी क्षमा नहीं करती है। दुनिया में भारत सबसे ज्यादा मंदिरो वाला देश हैं| भारत में कुछ मंदिर ऐसे हैं, जो महादेव यानि भगवान शिव को समर्पित हैं और इन्हे ज्योतिर्लिंग कहते हैं। पूरे भारत में कुल 12 ज्योतिर्लिंग हैं और इसे पूरे विश्व में हिंदुओं द्वारा सर्वाधिक पूजनीय माना जाता है। भारत में ज्योतिर्लिंग का विशेष महत्व है और ऐसा माना जाता है कि जो सभी 12 ज्योतिर्लिंग का भ्रमण कर लेता है उन्हें मुक्ति मिल जाती है। शिव के अनेक नाम हैं जिनमें 108 नामों का उल्लेख पुराणों में मिलता है लेकिन यहाँ प्रचलित नाम जानें- महेश, नीलकंठ, महादेव, महाकाल, शंकर, पशुपतिनाथ, गंगाधर, नटराज, त्रिनेत्र, भोलेनाथ, आदिदेव, आदिनाथ, त्रियंबक,

दिल और दिमाग के बीच जंग

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दिल और दिमाग के बीच जंग चलती ही रहती है. दिल भिखारी को देख कर पिघल जाता है, लेकिन दिमाग जेब की ओर बढ़ते हाथ को यह कह कर रोक देता है कि इससे कामचोरी को बढ़ावा मिलता है. दिल मचलना चाहता है, पर दिमाग कानून की दफाएं याद दिलाने लगता है.शायद यही वजह है कि शायरों, गीतकारों, कवियों को दिमाग काबिले गौर चीज नहीं लगता. उनकी रचनाओं में तो बस दिल, जिगर, नैनों का बोलबाला होता है. दिमाग से दूरी बनाने के चक्कर में वे ऊल-जुलूल गीत बनाते रहते हैं. जब दिल ही टूट गया, हम जी कर क्या करेंगे. पुराना गाना है, पर शायद सबने सुना हो.दिल टूटने के बाद जी ही नहीं सकते. जब आपके पास ऐसा कोई विकल्प ही नहीं, तो ये क्या कहना कि जी कर क्या करेंगे! शायरों को थोड़ा सा जीव-विज्ञान का ज्ञान होता तो बहुत से बेतुके गीत न बनते जैसे दिल के टुकड़े हजार हुए.., दिल न हुआ कांच का गिलास हो गया.दिल में तो एक मामूली सा छेद हो जाए तो बड़ा सा आपरेशन करवाना पड़ता है. शायर और कवि तो दिल से ऐसे खेलते हैं, मानो दिल न हो कोई खिलौना हो, खिलौना जान कर तुम दिल ये मेरा तोड़ जाते हो.. जैसा गीत लिख डालते हैं. गीत हो या संवाद, फिल्म हो