हे धारा 377! तुम क्या हो
हे धारा 377! तुम क्या हो?.. धारा हो या नाव हो?.. क्या चुनावी वैतरणी
पार करने का सामान हो.. किसी नेता के हसीन ख्वाब का विमान हो?.. तुम न
उतरनेवाला मियादी बुखार हो या मौसमी जुकाम हो?.. तुम केसर की क्यारी हो या
चुनाव से पहले उगनेवाली झाड़ी हो?.. तुम बासी कढ़ी में उबाल हो या खौलती
चाय हो?.. तुम मुद्दा-ए-आम हो या फिर आम का बरसों पुराना अचार हो?.. तुम
सांप हो, सीढ़ी हो.. या फिर बहसों की पुरानी पीढ़ी हो?.. तुम एक ऊंची दुकान
का फीका पकवान हो या गिद्धों के महाभोज में बिछा स्थायी दस्तरख्वान हो?..
तुम सियासी नेताओं के लिए चुनावी हुंकार हो या जनता के दिल तक
पहुंचने का द्वार हो?.. तुम हिंदुस्तान का वादा हो या
वादाशिकनों की आंख का कांटा हो? तुम भारत के बीच सेतु हो या एक
दीवार अहेतु हो?..हे धारा 377! तुम क्या हो?.. मनुहार हो या अधिकार हो?.. या कभी भी वापस
मांगा जा सकनेवाला उधार हो?.. तुम किसका किस पर एहसान हो?.. तुम आखिरी सरमाया हो या धन पराया हो?.. तुम चमचम करता हिंदुस्तानी नजराना
हो या खूंटी पर लटका कोट पुराना हो?.. तुम खुदमुख्तारी का एलान हो या सीने पर फौजी बूटों का निशान हो?.. तुम गौरय्या हो या बाज हो?..
तुम कोई बाघ हो या चिड़िया सी जान हो?.. तुम तीखी कटार हो या जंग लगी
पुरानी तलवार हो?.. तुम धारा सप्रवाह हो या कंटीले तारों की बाड़ हो?.. वो
कौन बदनसीब है, वो कौन आदमी अजीब है, जिसकी छाती पर तुम लोटता सांप हो?..हे धारा 377! तुम क्या हो?.. क्या तुम जमीन पर बिछी
हिंदुस्तान की सियासत की बिसात हो?.. तुम किसकी जीत और किसकी मात हो?.. तुम
नजरबंदी का जादू कमाल हो या धोती को फाड़ कर बना दिया गया रूमाल हो?.. तुम
हिंदू हो या मुसलमान हो?.. तुम देशभक्त हो या गद्दार हो? हे धारा 377! तुम क्या हो?.. क्या तुम दूसरी बाबरी मसजिद हो.. कुछ
सियासी ताकतों के लिए जिद हो?.. क्या तुम्हें भी ढहना है.. दिल्ली की गद्दी
की राह बनना है?.. क्या तुम भी वोटों की फसल हो.. इनसानी खून के तालाबों
में खिलनेवाला कमल हो?..क्या तुम अब भी चलता हुआ सिक्का हो?.. भुनने को
तैयार बिल्कुल खरा रुक्का हो?.. या फिर, क्या तुम काठ की हांडी हो.. टूटी
हुई लाठी हो?.. निकल गये सांप की छूटी हुई लकीर हो.. दरवाजे से दुत्कारा
गया फकीर हो?.. खुल गयी मुट्ठी हो.. पिघल चुकी कुल्फी हो?.. मजमून भांप
लिया गया खत हो.. लौट आयी चिट्ठी बे-टिकट हो?.. तुम मुद्दा नाकाम हो..
बाजार से बहुत पीछे छूट गयी दुकान हो?.. हे धारा 377! तुम क्या हो?..
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