शिव कृपा चाहे तो जल जरूर बचाएं
भगवान शिव ही स्वयं जल हैं। पुराणों में पानी के महत्व और उसके संरक्षण के बारे में स्पष्ट व्याख्या की गई है। शिव पर जल चढ़ाने का महत्व भी समुद्र मंथन की कथा से जुड़ा है। अग्नि के समान विष पीने के बाद शिव का कंठ एकदम नीला पड़ गया था। विष की ऊष्णता को शांत करके शिव को शीतलता प्रदान करने के लिए समस्त देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया। इसलिए शिव पूजा में जल का विशेष महत्व है। शिव पुराण में कहा गया है कि भगवान शिव ही स्वयं जल हैं-
संजीवनं समस्तस्य जगत: सलिलात्मकम।
भव इत्युच्यते रूपं भवस्य परमात्मन: ॥
अर्थात जो जल समस्त जगत के प्राणियों में जीवन का संचार करता है। वह जल स्वयं उस परमात्मा शिव का रूप है। इसीलिए जल का महत्व समझकर उसकी पूजा करना चाहिए, न कि उसका अपव्यय। सावन के इस पवित्र माह में सभी मित्रों शुभेच्छुओं से विनम्रतापूर्वक आग्रह है कि जल का संरक्षण करें। पर्यावरण का बचाएं। इसी में जीवन की सार्थकता है।
संजीवनं समस्तस्य जगत: सलिलात्मकम।
भव इत्युच्यते रूपं भवस्य परमात्मन: ॥
अर्थात जो जल समस्त जगत के प्राणियों में जीवन का संचार करता है। वह जल स्वयं उस परमात्मा शिव का रूप है। इसीलिए जल का महत्व समझकर उसकी पूजा करना चाहिए, न कि उसका अपव्यय। सावन के इस पवित्र माह में सभी मित्रों शुभेच्छुओं से विनम्रतापूर्वक आग्रह है कि जल का संरक्षण करें। पर्यावरण का बचाएं। इसी में जीवन की सार्थकता है।
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