पांच बरस, लेकिन सबक सिफर

अगस्त, 2006 के बाद अमेरिकी खुफिया एजेंसी ने रॉ और आइबी को कई अलर्ट भेज कर मुंबई के फाइव स्टार होटल पर आतंकी हमले की साजिश की चेतावनी दी थी. एक अमेरिकी अलर्ट में तो ताज होटल और ट्राइडेंट का जिक्र भी था.
मुंबई पर पाकिस्तानी आतंकवादियों के हमले के पांच बरस बीत गये. जीवित पकड़े गये आतंकवादी कसाब को लंबी कानूनी लड़ाई के बाद फांसी पर लटका दिया गया. क्या इन पांच सालों में हमने कोई सबक सीखा है? क्या हम दावे के साथ कह सकते हैं कि हमारी समुद्री सीमा सुरक्षित है? क्या आज हमारी खुफिया एजेंसियां पहले से ज्यादा सतर्क हैं? क्या हम पाकिस्तान को आतंकवाद के मसले पर घेरने और अलग-थलग करने में नाकाम रहे हैं? क्या हम अन्य पश्चिमी देशों में मिल रही खुफिया सूचनाओं को गंभीरता से लेते हुए आसन्न खतरे का आकलन कर पा रहे हैं? क्या हमारी सुरक्षा एजेंसियां और पुलिस बल उस तरह के आतंकवादी हमले से निबटने के लिए तैयार हैं? क्या हमारे राजनेताओं में आतंकवाद से डटकर मुकाबला करने की इच्छाशक्ति दृढ़ हुई है? ऐसे कई सवाल हैं जो मुंबई हमले के पांच साल बाद भी मुंह बाये खड़े हैं. अगर हम हमले के वक्त और उसके बाद किये गये दावों की पड़ताल करते हैं तो तसवीर बहुत संतोषजनक नजर नहीं आती है. मुंबई के होटल ताज, कामा अस्पताल, होटल ट्राइडेंट और लियोपोल्ड कैफे पर 2008 में हुए हमलों के वक्त हमारे सिस्टम की लापरवाही, लालफीताशाही, प्रशासनिक अड़चनों और नेतृत्व की अदूरदर्शिता ने आतंकवादियों को आराम से तांडव मचाते हुए डेढ़ सौ से ज्यादा लोगों की जान लेने की छूट दे दी.अभी-अभी दो पत्रकार-एड्रियन लेवी और कैथी स्कॉट क्लार्क की मुंबई हमले पर किताब आयी है, सीज : अटैक ऑन ताज. इस किताब में एड्रियन और कैथी ने विस्तार से मुंबई हमले की साजिश, हमले की फूलप्रूफ योजना, हमले के दौरान आतंकियों के फोन से अपने आकाओं से संपर्क में रहने, मुंबई पुलिस की अकर्मण्यता, भारतीय नेताओं के निर्णय लेने की अक्षमता आदि पर विस्तार से लिखा है. ‘ सीज में लेखकद्वय ने लश्कर--तैयबा के आतंकवादी डेविड कोलमैन हेडली के हवाले से बेहद सनसनीखेज खुलासे किये हैं. जब डेविड हेडली पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ के संपर्क में था, उस वक्त उसके ट्रेनर मेजर इकबाल ने उसे भारत से जुड़ी कुछ बेहद अहम और गोपनीय जानकारियों की एक फाइल दी थी.इस किताब में इस बात का भी जिक्र है कि मेजर इकबाल कई बार डेविड हेडली से कहता था कि भारतीय सेना और पुलिस में आइएसआइ के मुखबिर हैं. इकबाल ने तो एक बार डेविड हेडली को कहा था कि उनका एक सुपर एजेंट (हनी बी) दिल्ली में है, जो उसे लश्कर की साजिश को अंजाम देने में मदद करेगा. मेजर इकबाल ने डेविड हेडली को यह भी भरोसा दिलाया था मुंबई हमले की योजना बनाने में भी हनी बी उसकी मदद करेगा.
इस किताब में इस बात के पर्याप्त संकेत हैं कि अजमल आमिर कसाब अपने आतंकवादी साथियों के साथ मुंबई के जिस बधवार पार्क इलाके में उतरा था उस जगह को भारतीय मुखबिर हनी बी के ही सहयोग से चुना गया था. बाद में हमले के पहले डेविड हेडली ने भी जाकर उस जगह का मुआयना कर उसको परखा था. अब सवाल यह उठता है कि इस किताब के प्रकाशन के बाद भारत सरकार ने क्या इस बात की तफ्तीश करने की कोशिश की कि देश का यह गद्दार हनी बी आखिर कौन है?मुंबई हमले के बाद खुफिया एजेंसियों के बीच सही तालमेल नहीं होने की बात भी उभर कर सामने आयी थी. तब सरकार ने नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड का खूब शोर मचाया था, लेकिन पांच साल बीत जाने के बाद भी अब तक इस ग्रिड को अमली जामा नहीं पहनाया जा सका है. इस नयी किताब के अलावा मुंबई हमले की जांच के लिए बनायी गयी प्रधान कमेटी की रिपोर्ट में भी यह बात सामने आयी थी कि 2008 के आतंकवादी हमले के पहले अमेरिका ने 26 बार भारत को चेतावनी भेजी थी कि पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर में बैठे लश्कर--तैयबा के आतंकवादी मुंबई को निशाना बना सकते हैं. यह बात प्रधान कमेटी की रिपोर्ट में भी है कि अगस्त, 2006 के बाद अमेरिकी खुफिया एजेंसी ने रॉ और आइबी को कई अलर्ट भेज कर चेताया था कि आतंकवादी मुंबई के फाइव स्टार होटल पर हमले की योजना बना रहे हैं. एक अमेरिकी अलर्ट में तो ताज होटल और ट्राइडेंट पर हमले का भी जिक्र था. लेकिन भारतीय खुफिया एजेंसियों ने अमेरिका के अलर्ट को नजरअंदाज कर दिया था. वक्त रहते उन चेतावनियों को गंभीरता से लिया जाता और सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा होती, तो बहुत मुमकिन है कि आतंकवादियों को ताज में तांडव मचाने से रोका जा सकता था. सुरक्षा जानकारों के मुताबिक अमेरिका ने तो खुले तौर भी कई बार भारत को इस तरह के हमलों से आगाह किया था. अपनी किताब सीज में एड्रियन और कैथी ने भी इस तरह के संकेत दिये हैं. आतंकवाद और भारत-पाकिस्तान के जटिल रिश्तों पर एड्रियन और कैथी की पकड़ और साख बहुत अच्छी है. उनके तर्को को हवा में नहीं उड़ाया जा सकता है.
मुंबई हमलों के वक्त पुलिस की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठे थे. उस वक्त के पुलिस कमिश्नर हसन गफूर से लेकर कंट्रोल रूम में बैठे आला अफसर राकेश मारिया तक की भूमिका पर सवाल खड़े हुए थे. शहीद अशोक काम्टे की पत्नी विनीता काम्टे ने अपनी किताब लास्ट बुलेट में कंट्रोल रूम की इस लापरवाही को सूक्ष्मता से उजागर किया है. विनीता ने लंबे संघर्ष के बाद सूचना के अधिकार के तहत जानकारी जुटा कर मुंबई पुलिस के आला अफसरों की लापरवाही और समय रहते फैसले लेने की अक्षमता को तथ्यों के साथ उभारा है. सवाल यह है कि क्या मुंबई पुलिस ने इससे कोई सबक लिया है या नहीं? हाल ही में सीएजी की रिपोर्ट से कई ऐसे खुलासे हुए हैं, जो समुद्री सीमा पर हमारी लचर पुलिस व्यवस्था की पोल खोलती हैं. समुद्री सीमा पर निगरानी रखने के लिए उन इलाकों में 27 राडार लगाने का काम भी 2016 तक ही तक पूरा होने की उम्मीद जतायी जा रही है.मुबई हमले के पांच बरस के बाद हमने सुरक्षा को लेकर जो इंतजाम किये, क्या वे काफी हैं? क्या पाक प्रशिक्षित आतंकवादियों से निबटने के लिए हम तैयार हैं? हमारे देश में आतंक फैलानेवालों को एक ऐसे देश का समर्थन है जो यह मानता नहीं है, लेकिन बार-बार बेनकाब होता है.जरूरत इस बात की है कि पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर कूटनीतिक तौर पर घेरा जाये. चौतरफा प्रयत्नों से ही देश में आतंकवादी घटनाओं को रोका या कम किया जा सकता है. मुंबई हमला एक सबक था, लेकिन क्या हमने सचमुच कुछ सीखा? वक्त आत्ममंथन का भी है.

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