अपनों की भीड़ में उदास मनगढ़

सर्द रात धीरे-धीरे अंतिम सोपान में थी। सूरज निकलने को बेताब था। जगद्गुरु के प्रिय मनगढ़ में सत्संगियों की चहल कदमी बढ़ रही थी। उनके बारे में चर्चा छिड़ी थी। हर ओर अपने ही भरे थे, लेकिन मनगढ़ फिर भी उदास था।यह प्रतापगढ़ जिले का वही मनगढ़ था, जहां कृपालु जी जन्मे थे। सात समुंदर पार कर यहां पहुंचे नाथन की पहचान अब गौर हरी है। वह सुबह के सात बजे साधक निवास की सीढि़यों पर बैठकर पत्थरों के बीच प्रेम के बीज बोने वाले कृपालु जी के ध्यान में खोए हुए थे। उनको कोई भी चहल कदमी अपनी ओर नहीं मोड़ पा रही थी। आस्ट्रेलिया की लीनीया ने लम्बा चंदन लगा रखा था। वह बोली गुरुजी ने जीवन का अर्थ समझाया, अब जीने में सुख मिलता है।टैक्सास की कारलस की पहचान गुरु जी के साथ जुड़ने पर वृंदा हो गई है। वह इस पहचान को गुरुजी की कृपा मानकर प्रेम बांटने में लगी है। साध्वी बन चुकी मरेसा कहती है कि इंडिया में जो खासियत है वह जगद्गुरु के सानिध्य में आने के बाद महसूस की है। अब तो यह जीवन ही उनकी यादों को समर्पित है। इसी तरह देशी विदेशी सत्संगी मनगढ़ में जुटे थे।उनको किसी पीएम, सीएम या फिर डीएम का इंतजार नहीं था। वे तो उस पल के इंतजार में थे जब उनको गुरुजी के संकीर्तन में बैठने का अवसर मिलता है। सुबह सत्संग भवन खुला तो हर साधक निवास का दरवाजा खुल गया। साधकों के पांव सत्संग भवन की ओर मुड़ चले। थोड़ी ही देर में राधे- राधे का संकीर्तन गूंज उठा। अंदर बैठे सत्संगी मुख्यमंत्री के आने जाने से प्रभावित नहीं हुए। वे अपनी धुन में राधे- राधे में रमे रहे। इतने के बाद भी मनगढ़ का भक्तिधाम मंदिर उदास ही रहा। मंदिर खुला तो था, लेकिन उसमें दर्शन को इक्का दुक्का ही लोग पहुंच रहे थे। बीच-बीच में पुलिस वालों की आहट जरूर मिल जाती थी। मनगढ़ में जुटी भारी भीड़ द्वारा मंदिर की ओर रुख न करने से भक्तिधाम का यह हृदय खुद को बहुत अकेला पा रहा था। पूरी दुनिया को अध्यात्म, प्रेम और करुणा का पाठ पढ़ाने वाले जगद्गुरु कृपालु जी की तेरहवीं भी विशेष रही। परिजनों और ट्रस्ट के कार्यकर्ताओं ने तन, मन, धन के साथ कार्यक्रम को पूरी भव्यता प्रदान की। मनगढ़ ट्रस्ट ने कृपालु परिवार के ब्राह्माणों को दिल खोलकर दान दिया। उन्हें सोने चांदी और नकदी से लैस कर विदा किया गया। कृपालु जी के निधन के बाद सनातन परम्परा के अनुसार उनके अंतिम संस्कार के कार्य पूरे विधि-विधान के साथ किए गए। बुधवार को मनगढ़ के भक्तिधाम में आयोजित तेरहवीं कार्यक्रम सुबह ही शुरू हो गया। सबसे पहले ब्राह्माणों को मंत्रोच्चार के बीच आसन पर बैठाया गया। उनकी वंदना की गई और फिर उनको भोजन कराकर दान दिया गया। इस कार्य को कृपालु जी के पौत्र रामानंद ने आचार्य पारस नाथ तिवारी की देखरेख में संपन्न किया। इस मौके पर कृपालु जी की बेटियां सुश्री विशाखा, श्यामा त्रिपाठी, कृष्णा त्रिपाठी, पुत्र धनश्याम, बाल कृष्ण, समेत मनगढ़ ट्रस्ट के अमित, राम, लक्ष्मण, हीरू चटर्जी समेत सभी प्रमुख लोग मौजूद रहे। तेरह ब्राह्माणों में अधिकतर उनके करीबी रिश्तेदार ही थे।

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