आखिर हादसे का जिम्मेदार कौन ?
भिलाई इस्पात संयंत्र में गैस रिसाव हादसे में 6
की मौत हो चुकी है। इनमें डीजीएम, एजीएम स्तर के अधिकारी सहित मजदूर शामिल
हैं। इससे पहले भी भिलाई स्टील प्लांट में 1986 में एक बड़ा हादसा हुआ था
जिसमें 6 लोग मारे गये थे। खबर है कि उसके बाद भी कई ठेका मजदूर मारे जाते
रहें हैं तथा हादसों का शिकार होते रहें हैं। बाल्कों में 2009 में चिमनी
हादसे में भी 41 कर्मचारियों की मौत हुई थी, जिसके जिम्मेवार आजाद घूम रहे
हैं। आए दिन निजी उद्योगों में इसी तरह के हादसे होते रहते हैं। सवाल उठता
है कि इन हादसों की जिम्मेदारी किसकी है? क्या ऐसे हादसों को टाला जा सकता
है? सवाल कठिन तो नहीं है परन्तु इसका जवाब भिलाई स्टील प्लांट के ब्लास्ट
फर्नेस नंबर 2 में हुए गैस रिसाव की घटना स्वमेय दे देती है। इस ब्लास्ट
फर्नेस नंबर 2 में पाइप से जहरीली गैस कार्बन मोनोक्साइड का रिसाव पहले से
ही हो रहा था। जिसे सुधारने का काम जारी था तथा इसी के निरीक्षण करने के
लिये डीजीएम तथा एजीएम स्तर के अधिकारी पहुंचे थे। हैरत की बात यह है कि जब
वहां पर रह रहे कबूतर मर कर गिरे तब जाकर पता चल पाया कि जहरीली गैस का
रिसाव तेजी से हो रहा है। इसके बाद ही अधिकारी तथा कई कर्मचारी गिरने लगे।
गौरतलब है कि इस जहरीली गैस के गंधहीन तथा रंगहीन होने के कारण इसकी
जानकारी तभी मिल पाई जब मौत के साये की परछाई वहां पर पड़ी। सूत्रों के
मुताबिक वहां पर एक यंत्र लगाया गया था, जिससे जहरीले गैस के रिसाव का पता
चलना चाहिए था, परन्तु न जाने ऐन समय पर यह कैसे धोखा दे गई। इससे स्पष्ट
है कि हादसे को रोकने के लिये जिस यंत्र पर बीएसपी प्रबंधन निर्भर था, वह
ही ठीक-ठाक ढ़ंग से काम नहीं कर रही थी। यदि पहले से ही जहरीली गैस के रिसाव
की जानकारी मिल गई होती तो इस हादसे को टाला जा सकता था। इसका एक पहलू और
है, वह है कि बीएसपी प्रबंधन ने नियमित कर्मचारी रखने के बजाये ठेका
श्रमिकों पर अपनी निर्भरशीलता बढ़ा दिया है। इस हादसे के बाद एक बात और निकल
कर आई कि करीब 60 एकड़ के विशाल क्षेत्र में फैले भिलाई स्टील संयंत्र में
राहत कार्य के लिए केवल एक एंबुलेंस उपलब्ध है। कर्मचारी यूनियनों ने कई
बार बीएसपी प्रबंधन को आगाह किया था कि राहत तथा आपातकालीन सेवा के लिए
एंबुलेंस की संख्या में बढ़ोतरी की जाए परन्तु उनकी बात कभी सुनी नहीं गई।
यदि राहत कार्य के लिये बेहतर प्रबंध करके पहले से रखा जाता तो मरने वालों
की संख्या को टाला जा सकता था। यहां तक कि उस ब्लास्ट फर्नेस में
जीवनदायिनी आॅक्सीजन तक की व्यवस्था नहीं थी, जो ऐसे मौके पर लोगों की जान
बचा सकता है। बीएसपी को एशिया का सबसे बड़ा कारखाना है। साफ तौर पर यह
औद्योगिक सुरक्षा की अनदेखी का मामला है, जिसके लिए जिम्मेदारी तय की जानी
चाहिए। जहां तक बीएसपी प्रबंधन का सवाल है वह इतनी गैर जिम्मेदार रवैया
अपना रही है कि रात के साढ़े ग्यारह बजे तक उसने अधिकारिक तौर पर कोई बयान
जारी नहीं किया था। इसी कारण से दिल्ली से केन्द्रीय खनन तथा स्पात राज्य
मंत्री विष्णुदेव साय के लिए मीडिया से यह कह पाना मुश्किल था कि कितनी
मौते हुई हैं। जो प्रबंधन इतने बड़े हादसे के बाद भी छत्तीसगढ़ से निर्वाचित
अपने मंत्री को सही सूचना नहीं दे सकता है, उससे किस प्रकार से औद्योगिक
सुरक्षा को निश्चित करने की उम्मीद नहीं की जा सकती है। छत्तीसगढ़ तथा
केन्द्र सरकार को चाहिए कि बीएसपी हादसे की जांच कराई जाए तथा दोषी को
कानून के अनुसार दंड दिया जाए। अच्छा है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने
समाचार पत्रों में छपी खबर के आधार पर मामले को स्वत: संज्ञान में लिया है
और इस घटना को लेकर राज्य की सरकार को जवाबदेह बताया है। मानवाधिकार आयोग
ने राज्य सरकार से इस बाबत दो सप्ताह में जवाब मांगा है।
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