केदारनाथ को 49वां ज्ञानपीठ पुरस्कार दिये जाने का निर्णय

उत्तर प्रदेश की बलिया की धरती में जन्मे केदारनाथ सिंह ने अपने साहित्य सृजन से एक बार फिर उत्तर प्रदेश का मान देश में बढ़ाया है। केदारनाथ जी को मिले ज्ञानपीठ पुरस्कार ने यह साबित कर दिया कि साहित्य की जो धारा पंत, दिनकर और वर्मा जी ने प्रस्फुटित की थी, वह आज भी उत्तर प्रदेश में विद्यमान है। केदारनाथ को मिले ज्ञानपीठ पुरस्कार से न केवल साहित्य जगत वरन हर समाज का व्यक्ति अपने को गर्वान्वित महसूस कर रहा है। हिन्दी की आधुनिक पीढ़ी के रचनाकार केदारनाथ सिंह को वर्ष 2013 के लिए देश का सर्वोच्च साहित्य सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। वह यह पुरस्कार पाने वाले हिन्दी के 10वें लेखक हैं। सीताकांत महापात्रा की अध्यक्षता में हुई चयन समिति की बैठक में हिन्दी के जाने माने कवि केदारनाथ सिंह को वर्ष 2013 का 49वां ज्ञानपीठ पुरस्कार दिये जाने का निर्णय किया गया। केदारनाथ सिंह इस पुरस्कार को हासिल करने वाले हिन्दी के 10वें रचनाकार है। इससे पहले हिन्दी साहित्य के जाने माने हस्ताक्षर सुमित्रनंदन पंत, रामधारी सिंह दिनकर, सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन अज्ञेय, महादेवी वर्मा, नरेश मेहता, निर्मल वर्मा, कुंवर नारायण, श्रीलाल शुक्ल और अमरकांत को यह पुरस्कार मिल चुका है। पहला ज्ञानपीठ पुरस्कार मलयालम के लेखक जी शंकर कुरुप (1965) को प्रदान किया गया था। केदार जी का जन्म उत्तरप्रदेश के बलिया जिले के ग्राम चकिया में वर्ष 1934 में हुआ था। उनकी प्रमुख कृतियों में ‘अभी बिल्कुल अभी’, ‘जमीन पक रही है’, ‘यहां से देखो’, ‘अकाल में सारस’, ‘बाघ’, ‘सृष्टि पर पहरा’, ‘मेरे समय के शब्द’, ‘कल्पना और छायावाद’ और ‘तालस्ताय और साइकिल’ आदि शामिल हैं। पुरस्कार के रुप में केदारनाथ सिंह को 11 लाख रुपए, प्रशस्ति पत्र और वाग्देवी की प्रतिमा प्रदान की जाएगी। 
                                  बाबू केदारनाथ जी को मिली इस उपलब्धि पर उन्हें कोटिश: बधाई।    

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