अच्छा हुआ 2013 सदा के लिए चला गया, 2014 जिंदाबाद!
जूलियन बार्नेस की अच्छी किताब का शीर्षक है-’द सेंस ऑफ एन एंडिंग’. हिंदी में इसे ‘खत्म होने का बोध’ कह सकते हैं. यह अनिवार्यत: बीते वर्ष के लिए अतीत-मोह (नॉस्टैल्जिया) पैदा करता है. सौभाग्य से, अतीत के प्रति यह प्रेम हमें फिर से उन सुर्खियों में निमग्न नहीं करता, जो रोजाना ध्यानाकर्षण का विषय थे, जो अहं, झूठ, पाखंड व दंभ का विषाक्त घालमेल थे, जो हत्यारी भीड़वादी मानसिकता से लिपटे थे, पर जिसे प्रासंगिक बना दिया गया. इसके उलट, एकांत में खड़े कई जगमग दीपस्तंभ भी थे.2013 के आनंददायी पलों में से एक तो बिल्कुल हाल का है. हाल ही में भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच संपन्न टेस्ट मैच, जिसे मैंने केरल के एक रिसॉर्ट में तुलनात्मक रूप से अकेलेपन में देखा. यह जीत के लिए आमादा दो टीमों के कौशल और चरित्र का खतरनाक इम्तिहान था, जो जीत न मिलने की सूरत में विपक्ष को भी नहीं जीतने देना चाहते थे. अंतिम दिन मानो किसी महाकाव्य सरीखा था, स्थायी खेल के बीच जब-तब बिजली की चौंध जैसा. भारत को फिसलते देखना दुष्कर था, पर टीवी बंद करना नामुमकिन था. हार स्वीकारना आसान है. हम इसे अपनी आम जिंदगी में रो...