‘बेटी’ ने मेहनत और लगन से पूरी की पिता दाऊ महासिंह की इच्छा
छत्तीसगढ़ की स्वर कोकिला के रुप में पहचान बनाने वाली लोकगायिका ममता चन्द्राकर ने मंगलवार को अपने पिता दाऊ महासिंह की इच्छा पूरी कर दी। मंगलवार को लोकगायन के क्षेत्र में सर्वोत्कृष्ठ प्रदर्शन के लिए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने ममता चन्द्राकर को पद्मश्री पुरस्कार से नवाज तो छत्तीसगढ़ के कलाकार खुशी से झूम उठे। छत्तीसगढ़ी लोकगायन को समर्पित ममता ने नौ साल की उम्र से ही स्टेज पर गाना शुरू कर दिया था। ममता को प्रदेश का सबसे प्रतिष्ठित दाऊ मंदराजी सम्मान भी मिल चुका है। वह अभी आकाशवाणी रायपुर में केंद्र निदेशक के पद पर कार्यरत हैं। वर्ष 1972-73 की बात है। उनके बेहद करीबी ढोलक वादक केदार यादव चाहते थे कि ममता अच्छी गायिका बनें। उन दिनों लोक गायन के क्षेत्र में ‘चंदैनी गोंदा’ नाम की सांस्कृतिक संस्था का बड़ा बोलबाला था। केदार यादव ममता को लेकर संस्था के डायरेक्टर रामचंद्र देशमुख से मिलवाने ले गए। ममता के पिता दाउ महासिंह चंद्राकर से देशमुख की नजदीक थी लेकिन उन्होंने बेटी के लिए कभी सिफारिश नहीं की। परिचय देने के बाद देशमुख ने ममता का गाना ध्यान से सुना। उसके बाद उन्होंने कह दिया, मैं इस बच्ची को सामाजिक खाना खिला सकता हूं, लेकिन कलाकारी खाना नहीं खिला पाऊंगा। हां, कभी जरूरत पड़ी तो बच्चों वाला गाना जरूर गा लेगी। दाऊ महासिंह चंद्राकर को यह सुनकर बहुत दुख हुआ और उन्होंने उसी समय तय किया कि बेटी को अच्छी गायिका बनाकर रहेंगे। दिल पर लगी इसी ठेस ने महासिंह को ‘सोनहा बिहान’ नाम की सांस्कृतिक संस्था बनाने के लिए मजबूर कर दिया। कहा जाता है कि बाद में सोनहा बिहान ने ‘चंदैनी गोंदा’ को बुरी तरह पीछे छोड़ दिया। हालांकि इस बारे में ममता चंद्राकर का कहना है कि दोनों में कोई कॉम्पिटीशन नहीं था। साथ ही वे यह भी कहती हैं कि स्थानीय संस्कृति और परंपराओं की झलक के कारण उनकी संस्था लोकप्रिय होती गई। मंगलवार को दाऊ महासिंह की उस इच्छा को बेटी ममता चन्द्राकर ने अपनी मेहनत और लगन से पूरा कर दिया।
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