प्रशासनिक सुधार की दिशा में एक कदम

सरकारी अफसरों को अब आधिकारिक विदेश-यात्रा पर जाने से पहले प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ), विदेश मंत्रलय और गृह-मंत्रलय से अनुमति लेनी होगी। अनुमति के लिए प्रस्ताव केंद्रीय सचिवालय की स्क्रीनिंग कमिटी के जरिये भेजा जायेगा। उच्चपदस्थ अधिकारियों को आधिकारिक विदेश-यात्रा पर जाने से पहले एक फार्म भी भरना होगा। इसमें उन्हें बताना होगा कि जिस संस्था के न्योते पर वे विदेश जा रहे हैं, वह संस्था उन्हें यात्रा-व्यय के मद में वित्तीय सहायता दे रही है या नहीं और विदेश-यात्रा के बारे में उन्होंने अपने विभाग या मंत्रलय को सूचित किया है या नहीं। मंत्रलयों को अपने अफसरों की विदेश यात्रा से संबंधित जानकारी को वेबसाइट पर सार्वजनिक भी करना होगा। सरकारी खर्चे पर अफसरों की आये दिन विदेशों की सैर पर नकेल कसने की यह कोशिश यों ही नहीं हुई है। वित्त मंत्रालय और केंद्रीय सचिवालय ने साफ कहा है कि सरकारी बाबू विदेश-यात्रा के दिशा-निदेर्शों को धता बता रहे हैं। उच्चाधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिहाज से उठाया गया यह छोटा कदम संकेतों के लिहाज से महत्वपूर्ण है। इस कदम से अफसरों के बीच संदेश जायेगा कि सरकार अपने अमले पर नजर रखने के लिए चौकस है। अपने पद और विशेषाधिकार के बूते नौकरशाही का एक छोटा सा तबका खुद को किसी भी निगरानी से ऊपर मानता आया है। उसकी मानसिकता सबकी खबर लेने, मगर अपनी खबर ना देने की होती है। अफसरों को प्रोन्नति और वेतन-भत्ते सहित अन्य सुविधाओं की कालबद्ध गारंटी होती है। निजी क्षेत्र के अधिकारियों की तरह शायद ही उन्हें परफार्मेस आधारित मूल्यांकन से गुजरना पड़ता है। स्वयं को शेष समाज से विशिष्ट और जवाबदेही मुक्त समझने की मानसिकता का एक बड़ा कारण तो यही है। देश के नये प्रधान ने एक नयी कार्य-संस्कृति बहाल करने का बीड़ा उठाया है। उसकी इस नयी युक्ति को नौकरशाही के ढांचे को समाज के प्रति जवाबदेह बनाने की सार्थक कोशिश के रूप में देखा जाना चाहिए, न कि बाबुओं की स्वायत्तता में हस्तक्षेप के रूप में। शासन-तंत्र के शीर्ष नौकरशाहों को उनके कामों के प्रति जवाबदेह बनाने के लिए प्रशासनिक सुधार के जरिये एक नया तंत्र विकसित करना वक्त की जरूरत है।

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