बाखबर अपराधी, बेखबर पुलिस तंत्र

उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में एक साल के भीतर एक दर्जन से अधिक हत्या की बड़ी वारदात हुई। ऐसी वारदाते चोरी छिपे नहीं बल्कि सरेशाम हुई। अपराधी वारदात करके भाग निकले। अपराधी को पकड़े जाने की बात दूर, पुलिस इस बात तक का पता नहीं लगा सकी कि घटना के पीछे वास्तविक लोग कौन रहे और किन कारणों से ऐसी घटना घटी। पुलिस तंत्र इसी बात के लिए मोटी तनख्वाह उठा रहा है। कुंडा में डीएसपी जियाउल हक की हत्या हुई तो लोगों ने इसे परिस्थितिजन्य घटना करार दिया। हो भी सकता है कि उस समय की परिस्थियां ऐसी रहीं हो कि अचानक घटना घट गयी, पर क्या जूनियर बार एसोसिएशन के अध्यक्ष राजदत्त मिश्र की हत्या परिस्थितिजन्य घटना थी, अधिवक्ता कल्लू सिंह और प्रभाकर सिंह मीनू की हत्या की घटना परिस्थितिजन्य घटना थी। क्या पूर्व मंत्री मोती सिंह के भतीजे को गोली मारकर हुई लूट की घटना परिस्थितिजन्य थी। ऐसा नहीं। यह घटनाएं पूरी तरह से सुनियोजित और प्री प्लान्ड हुई। अपराधियों ने बराबर कुछ दिनों तक रेकी की, इसके बाद घटना को अंजाम दिया। घटनाओं की पृष्ठभूमि देखने से ही ऐसा साफ हो जाता है। इसका मतलब अपराधियों  की आवाजाही और उनकी गतिविधियों से पुलिस तंत्र बिल्कुल अनजान है। प्रतापगढ़ के सम्मानित लोगों, जिम्मेदार अधिकारियों और नेताओं को इस पर विचार करना चाहिए। अगर समय रहते लोगों ने समझदारी न दिखाई तो आने वाला समय अच्छा नहीं होगा। हम यह भी मान लेते हैं कि कुछ अधिवक्ता गलत कार्यों में लिप्त है, पर हमे यह भी सोचना चाहिए कि क्या ऐसे अधिवक्ताओं पर अंकुश लगाने के लिए सीनियर अधिवक्ताओं को आगे नहीं आना चाहिए। अगर वह आगे नहीं आ रहे हैं तो क्यों। वकील परिषद या फिर अन्य संगठन के माध्यम से साल में एक बार तो सीनियर अधिवक्ताओं को एक बार बैठक करके इस मुद्दे पर मंथन करना चाहिए और सभी अधिवक्ता बंधुओं के लिए एक गाइड लाइन बनानी चाहिए। सच तो यह है कि तमाम अपराधी, अधिवक्ता, पत्रकार और नेता की वेश में गलत कार्यों को अंजाम दे रहे हैं और हम उन्हें पहचान कर भी अनदेखी कर रहे हैं।

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