कृपालु जी : गुरू न कोई चेला
प्रतापगढ़ में आश्रम में गिरने पर ब्रैन हेमरेज का शिकार हुए कृपालु महाराज अब इस दुनिया में नहीं रहे। यूं तो उनके साथ कई खास बातें जुड़ी रहीं, लेकिन यह बात उन्हें सबसे अलग करती है। कृपालु महाराज ऐसे पहले जगदगुरु हैं, जिनका कोई गुरु नहीं है और वे स्वयं जगदगुरुत्तम हैं। इसके अलावा उन्होंने अपने जीवनकाल में एक भी शिष्य नहीं बनाया, किन्तु इनके लाखों अनुयायी हैं। जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज का जन्म 1922 में शरद पूर्णिमा की मध्यरात्रि में उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के मनगढ़ गांव में हुआ था। प्रतापगढ़ में प्रारंभिक शिक्षा के बाद उन्होंने इंदौर, चित्रकूट और वाराणसी में व्याकरण, साहित्य और आयुर्वेद का अध्ययन किया। उनके बारे में कहा जाता है कि वह 16 साल की उम्र में चित्रकूट के शरभंग आश्रम और वृंदावन के वंशीवट के निकट जंगलों में रहे। वाराणसी की काशी विद्धत परिषद ने उन्हें 1957 में जगदगुरू की उपाधि दी, जब वह 34 साल के थे। कृपालु महाराज जगदगुरू कृपालु परिषद के संस्थापक संरक्षक रहे। उन्होंने हिंदू धर्म की शिक्षा और योग के लिए भारत में चार और अमेरिका में एक केंद्र की स्थापना की।उन्होंने वृंदावन में भक्तों के लिए भगवान कृष्ण व राधा का प्रेम मंदिर बनवाया है। इस प्रेम मंदिर के निर्माण में 11 साल का समय लगा और राजस्थान-उत्तर प्रदेश के 1,000 शिल्पकारों ने इसे आकार दिया। इसके अलावा कृपालु महाराज ने वृंदावन और बरसाना में दो अस्पतालों की भी स्थापना की। प्रतापगढ़ की कुंडा तहसील स्थित मनगढ़ में कृपालुजी महाराज का प्रमुख आश्रम है। 10 नवंबर, 2013 को आश्रम के बाथरूम में गिरने के कारण उनके सिर में गंभीर चोट आई थी जिससे वह अचेत हो गए थे।
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