नर सेवा ही नारायण


संतों के लिए ब्रजधाम के कण-कण में भक्ति की मणि हैं। यहां बसी राधा-कृष्ण की यादों की सुगंध जब हवा में घुलकर चारों दिशाओं को महकाती है तो न जाने कौन-कौन भक्ति में डूबे भंवरे की तरह चले आते हैं। इसी महक से ही निकली अगाध श्रद्धा जगदगुरु कृपालु महाराज को भी ब्रज में खींच लाई।
यहां कदम रखने के साथ वह बृषभान की लली राधारानी की आराधना में लीन हो गए। भक्ति के साथ एक दिन उन्होंने दुनिया को देखा। मन में सवाल उठे तो अध्यात्म से जवाब भी मिले। कृपालु जी बोले, नर सेवा ही नारायण सेवा है। बिना इसके दुनिया में कुछ नहीं। बस यहीं से परिवर्तन की नींव की ईंट रख दी। थोड़े से समय में जब हम कुछ करने की सोचते हैं उतने में कृपालु जी के मानव सेवा प्रकल्पों पर श्री जी की पूरी कृपा बरसने लगी। वह सिर्फ 21 साल की उम्र में बरसाने पहुंचे।उनके कदम दानगढ़ व जयपुर मन्दिर की ओर बढ़े। यहीं उन्होंने राधा रानी की भक्ति साधना की शुरुआत कर दी। गृहस्थ जीवन में संत बनकर समाज को प्रेरणा दी कि गृहस्थ जीवन में भी ईश्वर की साधना बिन बाधा के की जा सकती है। साधना का क्रम ऐसा कि वह घंटों राधारानी की भक्ति में लीन हो जाते तो सुध-बुध खो देते थे। इसी दौरान उन्होंने देखा कि यहां स्वास्थ्य साधन कम हैं। इलाका पिछड़ा है। ऐसे में उनके दिल में दर्द उठा। फैसला लिया कि कुछ करेंगे। बस इसके साथ ही छोटी शुरुआत कर दी लेकिन इसका आकार कब बढ़ गया किसी को पता नहीं चला।उन्होंने बरसाने के मनगढ़ में 3 नवम्बर 2003 को 75 बेड के अस्पताल की शुरुआत की। यहां अब न जाने कितने दीन-दुखी इलाज को आते हैं। रंगीली महल परिसर में भी 35 बेड का कृपालु चिकित्सालय 14 जनवरी 2007 को शुरू किया गया। यहां पर रोजाना 500 मरीज मुफ्त चिकित्सा लाभ ले रहे हैं। पिछले आठ वर्षो से 20 नेत्र शिविर, 17 रक्तदान शिविर, 39 प्राक्तिक चिकित्सा एवं योग शिविर लगाए गए हैं। शिक्षा के क्षेत्र में भी अहम योगदान दिया है। मनगढ़ में कृपालु बालिका प्राइमरी स्कूल, कुपालु बालिका इंटर कॉलेज, कृपालु महिला महाविद्यालय, व्यावसायिक शिक्षा को महाविद्यालय निर्माणाधीन है। देश में प्राकृतिक आपदाओं में भी कृपालु जी का विशेष योगदान रहता था। सेवा का यह सिलसिला यहीं नहीं रुका। महिलाओं को स्वालंबी बनाने के लिए महिला ग्रामोद्योग की स्थापना की। ग्रामीण निर्धन कन्याओं के विवाह कराए। विकलांग सेवा की। किसी को नहीं दी गुरुदीक्षा। संत और धर्मगुरुओं में से बहुत से नए संप्रदाय शुरू कर देते हैं। कृपालु महाराज इसके समर्थक नहीं थे। इसलिए कोई नया संप्रदाय स्थापित नहीं किया। यहां तक कि आज तक कोई शिष्य नहीं बनाया, किसी को गुरुमंत्र नहीं दिया। सिर्फ राधा की भक्ति उनके लिए सवरेपरि थी।कृपालु महाराज को भव्य मंदिरों से प्रेम था। इसीलिए उन्होंने इनकी भव्यता पर खूब जोर दिया। वृंदावन का प्रेम मंदिर इसका उदाहरण है। भव्यता के मामले में पूरे देश में कोई दूसरा ऐसा मंदिर नहीं है। यहां प्राचीन आर्कीटेक्ट के साथ आधुनिक भवन शैली का उपयोग तो किया ही है। फाउंटेन लेजर शो भी हैं। मंदिर में इटली के पत्थर का इस्तेमाल किया गया है। इसके अलावा भक्ति मंदिर श्रीभक्ति धाम मनगढ़ में बनवाया है। कीर्ति मैया मंदिर के साथ रंगीली महल बरसाना (निर्माणाधीन) है।

Comments

Popular posts from this blog

लोगों को लुभा रही बस्तर की काष्ठ कला, बेल मेटल, ढोकरा शिल्प

मैंने अपने भाई के लिए बर्थडे केक बनाया : अवनीत कौर

प्रतापगढ़ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्यकर्ताओं ने देश कल्याण के लिए किया महामृत्युंजय जप