पद्म श्री केपी सक्सेना का लखनऊ में निधन
पद्मश्री के पी सक्सेना का आज लखनऊ में सुबह निधन हो गया। लम्बे समय से कैंसर की बीमारी से जूझ रहे थे। इन्होंने व्यंग को एक नई पहचान दी। स्वदेश, जोधा अकबर और लगान जैसी कई फिल्मों की स्क्रिप्ट भी लिखी है। लगान की स्क्रिप्ट की वजह से फिल्म ऑस्कर के लिए नॉमिनेट हुई थी। केपी सक्सेना लखनऊ में अपने पुत्र के साथ रहते थे। लखनऊ पर स्टेशन मास्टर रह चुके केपी सक्सेना को इंद्रा गांधी भी सम्मान देती थीं। केपी को जीभ के कैंसर का पता पिछले साल चला। उनका दो बार सर्जरी हो चुकी है। पहली बार जुलाई 2012 में और दूसरी बार मार्च 2013 में। पिछले महीने ही उनकी जीभ में फिर से ग्रोथ का पता चला।
लखनऊ की जमीन पर मशहूर व्यंग्यकार केपी सक्सेना को शोहरत मिली। हालाकि शुरुआती दौर में उन्हें प्रकाशकों ने अस्वीकारा, पर बाद में लेखनी के बल पर बनी पहचान उन्हें फिल्म फेयर तक ले गई। लखनवी संस्कृति के वह ऐसे पुरोधा हैं, जो कि फिल्मी नगरी के लिए सबसे विश्वस्त सूत्र बन गए हैं। पद्मश्री सम्मान से अलंकृत केपी की यादें लखनऊ की गलियों से जुड़ी हैं। गोलागंज का भगवती पान भण्डार उन्हें आज भी याद आता है, जहा उनका मनपसंद पान मिलता था। साथ ही बबन कश्मीरी की पतंग की दुकान पर भी वे रोज जाया करते थे। बरेली में 1934 में जन्मे कालिका प्रसाद सक्सेना, अपने फैंस के बीच केपी नाम से लोकप्रिय हुए। वे पचास के दशक में लखनऊ आए थे। सत्तर के दशक में वजीरगंज थाने के पीछे और अस्सी के दशक में रवीन्द्रपल्ली के पास नारायण नगर में रहे। आजकल वह इन्दिरा नगर में रह रहे हैं। केपी ने बॉटनी में एमएससी किया था और वे लखनऊ क्त्रिश्चियन कॉलेज में लैक्चरार रहे। उन्होंने ग्रेजुएट क्लासेज़ के लिए बॉटनी विषय पर एक दर्जन से 'यादा किताबें लिखी हैं। वे इंडियन रेलवे की सर्विस के दौरान स्टेशन मास्टर भी रहे। उन्होंने इस पोस्ट से वॉलेंटरी रिटायरमेन्ट ले लिया था। आकाशवाणी, दूरदर्शन और मंच के लिए लिखे गए बाप रे बाप और गज फुट इंच नाटकों के अलावा दूरदर्शन के लिए लिखा गया धारावाहिक बीबी नातियों वाली विशेष रूप से उल्लेखनीय है। केपी के लिखे इस सीरियल को देश का पहला हिन्दी का सोप ओपेरा होने का गौरव हासिल है। यह सीरियल इतना लोकप्रिय हुआ कि पब्लिक डिमाड पर इसके आगे के एपीसोड भी लिखने पड़े। रेलवे की नौकरी से ही उन्होंने विभागीय नाट्य प्रतियोगिताओं में धाक जमाना शुरू कर दिया था। आकाशवाणी की बहुभाषी नाट्य प्रतियोगिता में उनका नाटक मैं जो वो नहीं हूं को सेकंड पुरस्कार मिला था।
उनके द्वारा लिखा गया ऐ मुक्तक::::
कल मरे कुछ, और कल मर जराएंगे कुछ।
चल पड़ा है रोज का यह सिलसिला।।
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