यादों के झरोखे में अदम गोण्डवी

उत्तर प्रदेश यूं तो साहित्य सृजन की धरती रही है। यहां निराला, पंत, सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा जैसे रचनाकार हुये। यहीं की धरती ने मलिक मुहम्मद जायसी, गया प्रसाद शुक्ल सनेही जैसे रचनाकारों के सशक्त हस्ताक्षर पैदा किये। इसी धरती के गोण्डा जिले के आटा गांव में एक साधारण किसान के घर में 22 अक्टूबर 1948 को एक ऐसे बालक ने जन्म लिया, जिसने साहित्य की दुनिया में अपनी रचनाओं से मील का पत्थर साबित किया। बचपन में इस बालक का नाम रामनाथ सिंह था, किन्तु समाज में यह व्यक्ति अदम गोण्डवी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। कवि दुष्यंत कुमार ने हिन्दी गजल को जिस तरह से आशिक और मासूका के तरन्नुम से निकालकर आम आदमी के बीच जनोन्मुखी बनाने की पहल की थी, उसी परम्परा को अदम गोण्डवी साहब ने आगे बढाया। उन्होंने अपनी रचनाओं में आम आदमी की पीडा, दलितों की आवाज, सियासतदानों की करतूतों को जिस तरह से उजागर किया। उससे यह नहीं लगता है कि वे बेहद कम पढे लिखे थे। कम पढे लिखे होने के बाद भी उनकी रचनाओं में जिस तरह से शब्दों के उपमेय और उपमान का प्रयोग हुआ है, उससे पढे लिखे लोग भी दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर हुआ करते है। उनकी रचना चमारों की गली इलाहाबाद के एक अखबार ने प्रकाशित की तो वह चर्चा में आ गये। इस रचना के अंश कुछ इस प्रकार रहे-
धर्म संस्कृति और नैतिकता के ठेकेदार को
प्रांत के मंत्रीगणों को केन्द्र की सरकार को।
मैं निमंत्रण दे रहा हूं आएं मेरे गांव में
तट पे नदियों की घनी अमराईयों की छाव में।
गांव जिसमे आज पांचाली उघारी जा रही
या अहिंसा की जहां पर नथ उतारी जा रही।
लिखकर उन्होंने आदीवासी बाहुल्य और दलितों की दशा का चित्रण किया। वर्ष 2011 में जिला प्रशासन ने अदम साहब को पदमश्री पुरस्कार प्रदान किये जाने के लिए पत्रावली तैयार कर शासन के पास संस्तुति के लिए भेजा, किन्तु दुर्भाग्य है कि आज तक यह पत्रावली कार्यालय में धूल फांक रही है।उनकी रचना के अन्य प्रमुख अंश में और मार्मिक वेदना स्पष्ट दिखती है।
आइए महसूस करिए ज़िन्दगी के ताप को
मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको
जिस गली में भुखमरी की यातना से ऊब कर
मर गई फुलिया बिचारी कि कुएँ में डूब कर
है सधी सिर पर बिनौली कंडियों की टोकरी
आ रही है सामने से हरखुआ की छोकरी
हैं तरसते कितने ही मंगल लंगोटी के लिए
बेचती है जिस्म कितनी कृष्ना रोटी के लिए !
 

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