बहुत गहरी है अंधविश्वास की जडें

रमेश पाण्डेय
भारत आस्था प्रधान देश है। यह तो लोगों से सुना जाता है। मेरे मन में आस्था शब्द की व्याख्या बेहद गंभीर समझ में आती है। पर आम आदमी इस शब्द से जो तात्पर्य समझता है, वह बेहद मूर्खता पूर्ण समझ में आता है। पिछले पांच दिन से उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के डौडियाखेडा गांव स्थित राजा राव रामबक्श के प्राचीन किले की खुदाई पुरातत्व विभाग की टीम द्वारा इसलिए कराई जा रही है कि एक संत शोभन सरकार ने सपने में देखकर इस बात का बयान किया है कि वहां एक हजार टन सोने का खजाना दबा पडा है। इस सोने के खजाने वाले सपने को सच मानकर जहां ऐसे लोग खुदाई करने में जुट पडे हैं जो वैज्ञानिक आधार और भूगर्भ विज्ञान के ज्ञाता है। कुछ समझ में नहीं आता कि बगैर किसी पुष्ट आधार के ऐसा क्यों किया जा रहा है। देश के इस मैन पावर और पैसे का इतना गलत इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है। यह सब तो दीगर बात है, मजेदार यह है कि इस खजाने के मिलने के बाद सोने में हिस्सा पाने के लिए ऐसे-ऐसे दावेदार निकल आये हैं, जिनकी विद्वता और बुद्धिमत्ता पर प्रश्नचिन्ह लगाया जाना लाजिमी नहीं है। सोने का खजाना मिलेगा या फिर नहीं, पर सुरक्षा के लिए किले के चारों ओर पुख्ता बंदोबस्त किया गया है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से लेकर दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित तक इस अदृश्य खजाने में हिस्सेदारी पाने का दावा ठोक रहे हैं। इन सब गतिविधियों को देख और सुनकर मुझे एक घटना याद आ गयी। उसे मैं आपसे शेयर कर रहा हूं। घटना बिल्कुल सच है। तकरीबन तीन साल पहले मै अपने कुछ साथियों के साथ शारदीय नवरात्र के पहले दिन मां विन्ध्यवासिनी मंदिर में दर्शन करने के लिए गया था। हम लोग रात करीब 11 बजे ही मंदिर पर पहुंच गये। मंदिर के सामने ही रहने वाले एक पंडा जी के यहां रूके और सामान वहीं रखकर गंगा स्नान करने गये। इतने में करीब रात के 12 बज चुके थे। नवरात्र का पहला दिन था, इसलिए प्रशासन द्वारा भी तैयारी को अंतिम रूप दिया जा रहा था। लगभग कार्य पूरा हो गया था और मंदिर के पूर्वी हिस्से के सामने के गली की सफाई भी हो चुकी थी। केवल नाली से जो बदबूदार मलबा निकला था, वह फेंका नहीं जा सका था। इस बीच रात के करीब एक बजे चुके थे और सफाईकर्मी उस मलबे को एक डामल रखे जाने वाले पुराने डिब्बे में एकत्र कर फेंकने की तैयार कर रहे थे। इतने में दर्शन करने वालों का जत्था आना शुरू हो गया। लोगों की भीड अधिक हो रही थी, जिसके चलते सफाईकर्मियों ने मलबे से भरे इस डिब्बे को एक किनारे लगाना शुरू किया। इसी बीच श्रद्धालुओं के एक झुंड ने मलबे से भरे डिब्बे के उपर जलती हुई अगरबत्ती खोंस दी और जलता हुआ दीपक रख दिया। इसके बाद जो नजारा देखा वह कौतूहल भरा था। देखते ही देखते उस मलबे वाले डिब्बे के चारों तरफ अगरबत्ती और जलता हुआ दीया रखने की भीड लग गयी और सैकडों की तादात में जलते हुए दीये उस गन्दे मलबे के उपर रख दिये गये। सफाईकर्मियों को मलबे को हटाने के लिए पुलिस को बुलाना पडा और पुलिस को श्रद्धालुओं को हटाने के लिए बाकायदा घेरा बनाना पडा। पुलिस वाले जिसे दीया जलाकर रखने से रोकते वह नाराज हो जाता। उसे लग रहा था कि उस मलबे के उपर दीया जलाकर रखने से हो सकता है अधिक पुण्य मिल जाये। किसी ने उसकी सच्चाई जानने की कोशिश नहीं की। इस मूर्खतापूर्ण कार्य को ही हमारे देश में शायद धर्मभीरू लोग आस्था कहा करते है। कुछ ऐसा ही नजारा उन्नाव के डौडियाखेडा में देखने को मिल रहा है। यह भी मजेदार है कि नरेन्द्र मोदी जैसी शख्सियत ने संत शोभन सरकार की इसलिए तारीफ की कि हो सकता है कि उनके अनुयायी नाराज न हो जायें। अगर इस देश में अनुयायियों की संख्या देखकर तारीफ और निन्दा करने की परम्परा शुरू हो जाएगी तो भला न्याय कैसे हो सकेगा। समाज के सामने यह एक ज्वलंत प्रश्न उठ गया है। सबसे दुखद पहलू तो यह है कि जो युवा पीढी खुद को आधुनिक और विज्ञान के युग वाली बता रही है, वह भी कहीं न कहीं इन्ही अंधविश्वासों के इर्द-गिर्द घूमती नजर आ रही है। टेक्निकल एजूकेशन प्राप्त करने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी जैसे लोगों की योग्यता पर कोई शक नहीं किया जा सकता, पर यह लोग भी जिम्मेदार पदों पर रहते हुए भी ऐसे कारनामों को मौन समर्थन देकर अंधविश्वास की जडों को और मजबूत कर रहे हैं।

Comments

Popular posts from this blog

मैंने अपने भाई के लिए बर्थडे केक बनाया : अवनीत कौर

लोगों को लुभा रही बस्तर की काष्ठ कला, बेल मेटल, ढोकरा शिल्प

प्रतापगढ़ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्यकर्ताओं ने देश कल्याण के लिए किया महामृत्युंजय जप