अखिलेश की काबिलियत पर उठते सवाल

भारतीय राजनीति में दंगों का बड़ा महत्व रहा हैं। कभी राजनीति इसी दंगे से चमकी तो कभी दंगे राजनीति पर ग्रहण बनकर उभरे हैं।मुजफ्फरनगर दंगो के बाद से उत्तर प्रदेश में सियासत के मायने बदल चुके हैं। आज दोनों पक्ष एक दूसरे के ऊपर दंगा करने और आरोपियों को बचाने का आरोप लगा रहे है| यहाँ तक इस दंगे की आग में और उससे निकली आंच में प्रदेश के कद्दावर कैबिनेट मंत्री भी झुलस गए है, आज हालात ये है जिस भी वजह से ये दंगा हुआ और जो राजनीति की शुरुवात इन दंगो को लेकर शुरू हुई आज वही सब मामले उन राजनीतिक दलों के लिए उलटे पड़ गए है जो इन दंगो पर अपनी सियासत की रोटियाँ सेकना चाहते थे| जहाँ भाजपा के विधायक इस मामले में जल की हवा खा रहे है वही प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी सपा मुस्लिम मतदाताओं में अपना विश्वास खोती जा रही हैं और पार्टी में अन्दर ही अन्दर भीतरघात जन्म ले रहा हैं। कांग्रेस जो सालों से यूपी की सत्ता से बाहर हैं वह भी दंगा पीड़ितों पर सियासी मरहम लगाने में नाकाम रही हैं। भाजपा पहले से ही यूपी में साम्प्रदायिक राजनीति करने के लिए बदनाम रही हैं| प्रदेश के हालात आज ऐसे है तथाकथित सेकुलरीज्म को जनता के सामने रखकर मुस्लिम वोट बैंक को अपने पाले में लाने के लिए सभी पार्टियों ने मुजफ्फरनगर इलाके में हाथ पाँव मार लिए लेकन मुस्लिम मतदाताओ की चुप्पी ने इन पार्टियों की बेचैनी को बढ़ा दिया। प्रदेश के कद्दावर मंत्री आज़म खान का नाम इस मामले में उछलने के बाद उन्होंने अपनी नाराजगी दिखाने के लिए कैबिनेट की बैठकों से लेकर सपा नेतृत्व से भी दूरियां बना ली| सपा जिस वोट बैंक के आधार पर 2012 का विधानसभा जीत कर प्रचंड बहुमत से सत्ता पर काबिज हुई और मुलायम संघ यादव ने भविष्य की राजनीति को देखते हुए अपने अनुभविहीन बेटे अखिलेश यादव के सिर उत्तर प्रदेश जैसे राजनीति की प्रयोगशाला कहे जाने वाले प्रदेश का भार डाला आज वो दाँव उलटा पड़ रहा हैं | अखिलेश यादव की प्रशासनिक अनुभवविहीनता और प्रदेश की राजनीति को ना समझ पाने की बात मुलायम को अखर रही है| मुजफ्फरनगर दंगो के बाद अब मुलायम सिंह यादव के बनाये वोट बैंक से ये आवाज भी उठाने लगी हैं की अखिलेश का हनीमून पीरियड खत्म मुलायम को जल्द से जल्द प्रदेश सत्ता की बागडोर अपने हाथो में ले लें चाहिए| प्रमुख शिया मौलवी और धार्मिक विद्वान मौलाना कल्बे सादिक भी चाहते हैं कि मुलायम को सीएम की कुर्सी संभालनी चाहिए क्योंकि अखिलेश यादव जनमत खो चुके हैं। सादिक के अनुसार, ''लोग बेहद नाराज हैं और यदि सत्ताधारी दल अपनी लोकप्रियता में गिरावट पर काबू पाना चाहता है तो उसका केवल एकमात्र समाधान है..मुलायम सिंह राज्य के मुख्यमंत्री बनें।" शिया मौलवी ने इशारों इशारों में कहा "सत्ता पाने के लिए आजकल नेता जाने कैसे-कैसे वादे कर लेते हैं। करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाते हैं और सत्ता में आने के बाद सबकुछ भूल जाते हैं।" मौलाना की बातो से साफ़ जाहिर हैं सपा मुसलमानों में अपना विश्वास खोती जा रही हैं । जैसा की सब को पता हैं कि राज्य 20 करोड़ की आबादी में करीब 4 करोड़ मुस्लिम आबाद हैं जो चुनाव और सीटों को प्रभावित करने का दम रखते है सपा इसी मुस्लिम कार्ड पर यूपी में बरसों से राजनीति करती आई हैं। तो ऐसे में मुलायम के पीएम दावे के सपने का क्या होगा? फिलहाल सपा की स्थिति डबाडोल हैं। वहीँ दूसरी ओर सपा और यूपीए का गठबंधन टूटने की कगार पर हैं, सीबीआई द्वारा फाइनल रिपोर्ट कोर्ट में लगाए जाने के बाद मुक्त हो चुके सपा मुखिया मुलायम और उनके राज्यसभा सांसद नरेश अग्रवाल इस मामले में गुफ्तगू कर चुके हैं। इतना ही नहीं बकौल नरेश के अनुसार यूपीए सरकार नाकारा सरकार हैं और सपा कब तक नकारा सरकार का साथ देगी। तो अब कांग्रेस राज्य में दूसरे विकल्प बसपा की ओर झुकती नजर आ रहीं हैं । हालांकि सपा ने यूपी में भाजपा के पीएम उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की रैली को जगह न देते का राजनैतिक खेला भी खेला था।

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