इक पलड़े में प्यार रख, दूजे में संसार...

मशहूर शायर निदा फाजली का एक दोहा याद आता है। ‘इक पलड़े में प्यार रख, दूजे में संसार,तोले से ही जानिए, किसमें कितना प्यार’। यह दोहा उस मां को समर्पित है शिशु के उत्थान में जिसकी भूमिका महान होती है। मई माह का दूसरा रविवार मातृ दिवस के रुप में मनाया जाता है। जन्मदात्री मां से लेकर पृथ्वी मां तक सभी आज संकट में हैं। आज का दिन अपनी धरती मां को राहत की सांस दिलाने का संकल्प लेने का दिन है। मां को खुशियाँ और सम्मान देने केलिए पूरी जिदगी भी कम होती है। फिर भी विश्व में मां के सम्मान में मातृ दिवस मनाया जाता है। मातृ दिवस विश्व के अलग-अलग भागों में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। परन्तु मई माह के दूसरे रविवार को सर्वाधिक महत्त्व दिया जाता है। हालांकि भारत के कुछ भागों में इसे 19 अगस्त को भी मनाया जाता है, परन्तु अधिक महत्ता अमरीकी आधार पर मनाए जाने वाले मातृ दिवस की है, अमेरिका में यह दिन इतना महत्त्वपूर्ण है कि यह एकदम से उत्सव की तरह मनाया जाता है। इस को आधिकारिक बनाने का निर्णय पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति वूडरो विलसन ने 8 मई , 1914 को लिया। मदर्स डे की शुरूआत अमेरिका से हुई। वहाँ एक कवयित्री और लेखिका जूलिया वार्ड होव ने 1870 में 10 मई को माँ के नाम समर्पित करते हुए कई रचनाएँ लिखीं। वे मानती थीं कि महिलाओं की सामाजिक जिÞम्मेदारी व्यापक होनी चाहिए। जरा सोचिए जब मैं पैदा हुआ, इस दुनिया में आया, वो एकमात्र ऐसा दिन था मेरे जीवन का जब मैं रो रहा था और मेरी मॉं के चेहरे पर एक सन्तोषजनक मुस्कान थी। ये शब्द हैं प्रख्यात वैज्ञानिक और भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम के। एक माँ हमारी भावनाओं के साथ कितनी खूबी से जुड़ी होती है, ये समझाने के लिए उपरोक्त पंक्तियां अपने आप में सम्पूर्ण हैं। किसी औलाद के लिए ‘माँ’ शब्द का मतलब सिर्फ पुकारने या फिर संबोधित करने से ही नहीं होता बल्कि उसके लिए मां शब्द में ही सारी दुनिया बसती है, दूसरी ओर संतान की खुशी और उसका सुख ही माँ के लिए उसका संसार होता है। क्या कभी आपने सोचा है कि ठोकर लगने पर या मुसीबत की घड़ी में मां ही क्यों याद आती है क्योंकि वो मां ही होती है जो हमे तब से जानती है जब हम अजन्में होते हैं। मां के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए एक दिन नहीं बल्कि एक सदी भी कम है। हम इंसानों और धरती के बीच भी तो एक शिशु और मां का रिश्ता ही है। जिस तरह जन्मदात्री माता हमारा पालन-पोषण करती है, उसी तरह पृथ्वी भी प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से हमारा पालन-पोषण करती है। इसमें उत्पन्न अन्न, फल-फूल, मेवे हमारा आहार बनते हैं। इसमें बहने वाली नदियों के पानी से हमारी प्यास बुझती है। पृथ्वी के वायुमंडल में मौजूद आॅक्सीजन हमारे जीवित रहने के लिए अनिवार्य है। यह आॅक्सीजन पृथ्वी पर उगने वाले पेड़-पौधे ही देते हैं। इस धरती की धूल में लोट-लोटकर ही हम बड़े होते हैं। पृथ्वी की ऊपरी सतह यानी मिट्टी खुद उपचारक शक्ति से भरी है। लेकिन धरती मां से हमारा रिश्ता लगातार कमजोर पड़ता जा रहा है। इसमें अनेक दरारें पड़ चुकी हैं। इसका सीधा असर हमारे पोषण और परिवेश पर पड़ रहा है। जिस तरह एक मां के स्वास्थ्य का सीधा संबंध उसके बच्चे की सेहत से है, उसी प्रकार धरती मां के स्वास्थ्य का संबंध भी उसकी संतानों यानी हम इंसानों से है। यदि धरती मां का स्वास्थ्य पूरी तरह बिगड़ गया, तो हमारा न केवल भौतिक स्वास्थ्य बिगड़ जाएगा, बल्कि जीवित रहना ही असंभव हो जाएगा। धरती मां के स्वास्थ्य से तात्पर्य है उसकी ऊपरी सतह व वायुमंडल की शुद्धता से। आज हमारे भूमंडल के तत्व- धरती, जल, वायु व आकाश प्रदूषित हो चुके हैं। ऐसे में जरूरत है यह समझने की कि हमने धरती का ख्याल नहीं रखा, तो सेहत हमारी ही बिगड़ेगी। आइए संकल्प लें कि कम से कम एक पेड़ जरूर लगायें। इसके फायदे तो आप जानते ही हैं। यह आॅक्सीजन देगा, छांव देगा, हवा भी देगा। इसकी हरियाली आपका तनाव भी भगाएगी।

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