पत्नी को नागरिकता दिलाते-दिलाते बन गए मानसिक रोगी

कहते हैं कि प्यार की कोई सरहद नहीं होती। मगर सरहदें भुलाकर शादी करना कई प्रेमी युगल को भारी पड़ रहा है। दशकों से नागरिकता के लिए गृह मंत्रालय के चक्कर काट चुके बरेली के 48 युगलों के नाती-पोते तक हो चुके हैं, मगर देश का नागरिक कहलाने का हक नहीं मिल सका है। बरेली के नरेंद्र कुमार तो 24 साल से सरकारी अफसरों के चक्कर काटकर मानसिक रोगी हो गए हैं। पाकिस्तान के सिंध प्रांत की लीलाबाई का विवाह 25 नवंबर 1992 को बरेली के सिंधुनगर के नरेंद्र कुमार से हुआ। उन्होंने तभी भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन किया। 26 अक्तूबर 2015 को पाकिस्तान की नागरिकता खत्म कराने का प्रमाण पत्र मिल गया था। ओरिजनल प्रमाण पत्र गृह मंत्रालय में 23 दिसंबर 2015 को जमा कर दिया था। 28 मार्च 2016 को गृह मंत्रालय से पत्र आया कि पाकिस्तान की नागरिकता त्यागने का ओरिजनल प्रमाण पत्र जमा करें। लीलाबाई ने बताया कि ओरिजनल प्रमाण पत्र गृह मंत्रालय में जमा करने की उनके पास रिसीविंग तक है, मगर पत्र भेजकर परेशान किया जा रहा है। नरेंद्र कुमार ने बताया कि सिंधुनगर में उनकी आइस्क्रीम की शॉप थी जो सोसायटी वालों ने बंद करवा दी। पेट पालने को घर में पेइंग गेस्ट रखे, मगर वह भी निकलवा दिए। नागरिकता के चक्कर में काफी टूट चुके नरेंद्र कुमार पांच साल पहले मानसिक रोग के शिकार हो गए। इलाज कराने को सिंधु नगर का मकान भी बेचना पड़ा और आजकल किराए के मकान में बीसलपुर रोड पर रह रहे हैं।

नाती-पोते हो गए नागरिकता नहीं मिली
मेगा सिटी निवासी प्रेम प्रकाश राजानी की शादी भी पाकिस्तान के सिंध प्रांत के शहदादपुर निवासी भगवानी बाई से 33 साल पहले हुई थी। भगवानी बाई ने बताया कि उनके नाती-पोते तक हो गए हैं, लेकिन अब भी वह लांग टर्म वीजा पर ही रह रही हैं।

48 महिलाओं को नागरिकता का इंतजार
एलआईयू आॅफिस में ऐसे करीब 48 केस हैं, जिनको भारत की नागरिकता चाहिए। इनमें अनीताबाई, नायाब बानो, जरीदा बी, नईम बानो, सरबरी बेगम, सिकंदर शाहीन, उजमा मुख्तार, फौजिया बेगम, राना मुख्तार, शहला, मुनीरा बेगम, महक, जाहिदा बेगम, इरफाना बेगम, रेहाना बी, रफीउल्ला, शाहीन समेत कई नाम हैं।

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