मां सर्वोच्च, फिर सबरीमाला मंदिर में प्रवेश क्यों नहीं?
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक के खिलाफ सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सर्वोच्च न्यायालय ने रोक पर सवाल उठाते हुए पूछा कि क्या परंपरा देश के संविधान से भी ऊपर है। मंदिर में 10-50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश पर रोक है। इसे लेकर कोर्ट ने मंदिर ट्रस्ट के वकील से पूछा कि कौन से अधिकार से मंदिर महिलाओं करे प्रवेश से रोकता है। जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस पिनाकी मिश्रा और जस्टिस एनवी रमना की बेंच ने माना कि मामले पर संविधान के अनुसार बहस होनी चाहिए। अदालत ने अपनी टिप्पणी में यह भी कहा कि मां को भारत में सर्वोच्च माना जाता है। अगर किसी कमरे में मां, पिता, गुरु और अन्य वरिष्ठ बैठे हों, कमरे में प्रवेश करते ही सबसे पहले मां को पूजा जाना चाहिए। कोई भी भगवान की पूजा कर सकता है, वो परमेश्वर है। अदालत ने आगे कहा कि जो भी निर्णय दिया जाएगा वो कानून के अनुसार होगा।
राज्य सरकार ने किया था प्रतिबंध का समर्थन
इससे पहले केरल सरकार ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि राज्य के ऐतिहासिक सबरीमाला मंदिर में रजस्वला महिलाओं का प्रवेश वर्जित करना धार्मिक मामला है और इन श्रद्धालुओं की धार्मिक परंपरा के अधिकार की रक्षा करना उसका कर्तव्य है।
केरल सरकार ने कोर्ट में दाखिल हलफनामे में ये भी कहा है कि त्रावनकोर-कोच्चि हिन्दू धार्मिक संस्थान कानून के तहत मंदिर का प्रशासन त्रावनकोर देवास्वम बोर्ड के पास है और पूजा के मामले में पुजारियों का निर्णय अंतिम है।
राज्य सरकार ने किया था प्रतिबंध का समर्थन
इससे पहले केरल सरकार ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि राज्य के ऐतिहासिक सबरीमाला मंदिर में रजस्वला महिलाओं का प्रवेश वर्जित करना धार्मिक मामला है और इन श्रद्धालुओं की धार्मिक परंपरा के अधिकार की रक्षा करना उसका कर्तव्य है।
केरल सरकार ने कोर्ट में दाखिल हलफनामे में ये भी कहा है कि त्रावनकोर-कोच्चि हिन्दू धार्मिक संस्थान कानून के तहत मंदिर का प्रशासन त्रावनकोर देवास्वम बोर्ड के पास है और पूजा के मामले में पुजारियों का निर्णय अंतिम है।
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