गरीब किसान झिनकू पेड़ पर लटक कर मर गया

कैसे कोई गरीब किसान झिनकू पेड़ पर लटक कर मर जाने में ही मुक्ति देख पाता है, इसे जानना हो तो आपको उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में आना पड़ेगा। यहां झिनकू की मौत अफसरों, नेताओं, सिस्टम से ढेर सारे सवालों का जवाब मांग रही है लेकिन सब भ्रष्टाचारी चुप्पी साधे मामले को दबाने में लगे हैं। किसान अन्नदाता होता है। झिनकू भी अन्नदाता था। लेकिन गरीबी, कर्ज और भूख ने उसे ऐसे बेबस किया कि पूरा सिस्टम उसे आत्महत्या की ओर ले जाने लगा।यूं तो अन्नदाता सबका पेट भरता है लेकिन झिनकू के पेट की फिकर किसी ने नहीं की। जिले के महोली ब्लाक के मूड़ाहूसा का किसान आखिर फांसी पर झूल ही गया और इसके साथ ही उसने तमाम सरकारी वादों को खोखला साबित कर दिया। बुधवार बीस अप्रैल को हुई किसान की मौत पर भले शासन प्रशासन मौन हो लेकिन मीडिया में लगातार खबरें आने से मामला तूल पकड़ता जा रहा है। दरअसल झिनकू की मौत यूं ही नहीं हुई। उसकी कहानी बेहद दर्द भरी दास्तान है जिसमें संघर्ष की सारी सीमाएं टूट गईं। आपको बताते चलें कि हर दिन भूख सहना और फसल पकने पर अच्छे दिनों की राह अन्य किसानों की तरह झिनकू के सपने भी ऐसे ही थे। बारह साल पहले उसकी पत्नी आखिरकार कमजोर होकर बीमार हो गई। नतीजन झिनकू ने बहुत सारा कर्जा लेकर पत्नी को बचाने का पूरा प्रयास किया। झिनकू कर्जी भी हुआ और पत्नी भी हाथ से निकल गयी। झिनकू की एक बिटिया अब शादी लायक हो चुकी थी। आखिर उसने सन 2009 में उसने अपनी बड़ी बेटी नीलम की शादी कर दी। वह पत्नी की बीमारी में लगे धन से हुए कर्जे को अब तक अदा नहीं कर पाया था। बेटी के ब्याह में उस पर तैंतीस हजार का सरकारी कर्ज भी हो गया। दिन रात भूख की फिकर छोड़कर झिनकू को कर्ज की फिकर सताने लगी। पिछले साल उत्तर प्रदेश के किसानों पर मौसम का ऐसा कहर बरसा की उनकी पूरी फसल चौपट हो गयी। लोगों ने बताया झिनकू गरीबी के चलते पटवारी को पैसे न दे पाया जिस पर उसके फसल के नुकसान की जानकारी पटवारी ने नहीं बनाई और उसे सरकारी मुवावजा भी नहीं मिल सका। वह कई बार तहसील गया अधिकारियों से गिड़गिड़ाया लेकिन उसकी शिकायत न ही दर्ज की गई और न ही उसे किसी प्रकार की सहायता दी गयी। झिनकू का एक बेटा महेंद्र शादी के बाद निशक्त हो गया। आखिर लोग उससे कर्जा लेने के लिए उसके बैल खेत में पहुँचकर रोक लेते। उसे गालियां मिलती, धमकियाँ मिलती। घर का खर्चा बहुत अधिक था। वह भूखा रहकर भी कर्ज के बोझ से दबा का दबा रह गया। अब अगर फसल का पैसा वह कर्ज अदायगी में दे भी देता तब भी भूख औरे घर के अन्य खर्चे से उसे मुक्ति मिलती नहीं दिख रही थी। आखिर झिनकू ने फांसी पर झूल कर धरतीपुत्र कहे जाने वाले मुलायम के पुत्र के राज्य में किसानों के साथ हो रहे अत्याचार की बड़ी कहानी को बयान कर डाला। अधिकारियों ने इस मामले पर मौत के बाद भी झिनकू की कोई मदद नही की। इधर मौत के पाँच दिन बाद भी स्थानीय मीडिया इसे लगातार कवर कर रही है लेकिन अधिकारी मामले के थमने की राह देख रहे हैं। झिनकू के परिवार में एक बेटी बबली (16 वर्ष) और अनुज (12 वर्ष) निशक्त बेटा महेंद्र और उसकी पत्नी है। इन सबकी जिंदगी में हल किसके कंधे पर होगा, सवाल यह भी है। एक मौत ने कई ज़िंदगियों को अंधेरे में ढकेल दिया है। झिनकू के बैल मालिक के रहते सूखा पैरा चबाने को पा जाते थे लेकिन अब उन्हें वह भी नसीब होते नहीं दिख रहा। खूँटे से बंधे बैल पाँच दिन बाद भी मालिक की राह देखते जान पड़ते हैं। वहीं झिनकू के बच्चे और परिवार के लिए गाँव के लोग अब भी सरकारी सहायता के लिए आस लगाए बैठे हैं

Comments

  1. झिनकू हमारे देश के कई ऐसे किसानों की आत्मकथा है।ऐसी घटनायें आत्मा को झकजोर देती हैं जबकि किसान धरती पर हमारा भगवान हमारा अन्नदाता है ।
    ना जाने क्यों देश के पालनहार नेता किसानो की व्यथा को गंभीरता से नही लेते ।

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    1. आपने बिलकुल सही कहा, सार्थक टिप्पणी करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

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