जल संकट प्रकृति की चेतावनी

देश के दस राज्यों उत्पन्न जल संकट प्रकृति की चेतावनी है। अगर अब भी मानव समाज न सुधरा तो आने वाला समय भयावह होगा। शायद भविष्यवक्ताओं द्वारा कही गई बात ‘तीसरा विश्व युद्ध’ पानी के लिए होगा, सच हो जाएगा। यह संकट न केवल सरकार का है औ न ही अकेले मानव समाज का। इस संकट से निपटने के लिए मिलजुल कर प्रभावी प्रयास करना होगा। इस संकट से लड़ने के लिए मुकम्मल रणनीति अपनानी होगी। यह ध्यान रखना होगा कि गांवों में सूखे से लड़ने के लिए सामुदायिक व्यवस्था हमेशा से कारगर रही है। नाबार्ड के आर्थिक विश्लेषण और अनुसंधान विभाग ने ‘हरित क्रांति के रेन शैडो में एक सामान्य कहानी’ शीर्षक से साल 2014 में एक निबंध प्रकाशित की थी। यह निबंध गांवों में सामान्य संपत्ति (मोटे तौर पर सामुदायिक संपत्ति) अधिकारों पर सात राज्यों के 22 जिलों में 100 गांवों के 3,000 परिवारों के अध्ययन पर आधारित एक शोध पत्र है। ये गांव एरिड, सेमी-एरिड और सब-ह्यूमिड इलाकों में हैं। अध्ययन में पाया गया कि 7.30 % सीमांत, 9.60% लघु तथा 9.70% अन्य कृषक सिंचाई के सामुदायिक संसाधनों का उपयोग कर पाते हैं। भूमिहीनों के मामले में यह मात्र 0.70% है। समाज के विभिन्न वर्गों के मामले में सिंचाई के सामुदायिक संसाधनों का उपयोग करने में अनुसूचित जन-जाति 10.30%, अनुसूचित जाति 1.90%, अन्य पिछड़ी जातियां 5.60% तथा सामान्य वर्ग 8.50%। यानी विभिन्न भू-धारी तथा सामाजिक वर्ग के बीच सामुदायिक जल संसाधनों का उपयोग बराबर नहीं है। जिन गांवों में सामुदायिक संसाधनों के प्रबंध की यदि कोई व्यवस्था है, वहां अध्ययन के लिए चुने गये दस सालों में हर भू-धारी तथा सामाजिक वर्ग के लिए सिंचाई के संसाधनों की उपलब्धता तेजी से बढ़ी है। मार्च में पीएचडी चैंबर आॅफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री द्वारा आयोजित नेशनल वाटर समिट 2016 को संबोधित करते हुए सेंट्रल वाटर कमीशन के चेयरमैन जीएस झा ने कहा कि सरकार नेशनल वाटर फ्रेमवर्क लॉ तैयार करने में तत्परता से जुटी है। यह फ्रेमवर्क तैयार करते समय सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सामुदायिक सिंचाई के संसाधनों के प्रबंध की समुचित व्यवस्था हो, जिससे प्रत्येक भू-धारी तथा सामाजिक वर्ग को सामुदायिक सिंचाई के संसाधनों के उपयोग का बराबर का हक मिल सके। इस व्यवस्था में पंचायतों को केंद्रीय भूमिका दी जानी चाहिए। मॉनिटरिंग के लिए उपयुक्त बेंचमार्क भी तय किये जायें। बरसात का पानी सबके लिए एक समान बरसता है। इसलिए बरसात के पानी को सबको कंधे से कंधा मिला कर बांधना और बराबर बांटना पड़ेगा, तभी इस संकट का मुकाबला हो सकेगा।

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