भारत को शायद वापस नहीं मिल पाएगा कोहिनूर

आज से 43 साल पुराने कानून का हवाला देते हुए केंद्र ने कहा है कि भारत कोहिनूर हीरे को वापस प्राप्त नहीं कर सकता है। इस नियम के तहत उन प्राचीन वस्तुओं को वापस लाने की अनुमति नहीं है, जो आजादी से पहले देश से बाहर ले जाई जा चुकी हैं। केंद्र ने कहा कि पुरावशेष एवं बहुमूल्य कलाकृति अधिनियम, 1972 के प्रावधानों के तहत, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण सिर्फ उन्हीं प्राचीन वस्तुओं की वापस प्राप्ति का मुद्दा उठाता है, जिन्हें देश से बाहर अवैध रूप से निर्यात किया गया था। संस्कृति मंत्रालय ने एक आरटीआई के जवाब में कहा, चूंकि आपके द्वारा वर्णित वस्तु (कोहिनूर) आजादी से पूर्व देश से बाहर ले जाया गया था, इसलिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण इस मुद्दे को उठाने की स्थिति में नहीं है। यह आवेदन विदेश मंत्रालय में दायर करके कोहिनूर वापस लाने के लिए उठाए जा रहे कदमों की जानकारी मांगी गई थी। इसके साथ में ब्रिटेन को लिखे गए पत्र और वापस प्राप्त किए गए जवाब की प्रति की मांग की गई थी।

संस्कृति मंत्रालय का यह जवाब
आवेदन के जरिए उन वस्तुओं की जानकारी मांगी गई, जो ब्रिटेन के संरक्षण में हैं और भारत उन्हें वापस लाने का दावा करना चाहता है। इसके जवाब में संस्कृति मंत्रालय ने कहा, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पास ब्रिटेन के संरक्षण में मौजूद वस्तुओं की कोई सूची नहीं है। आरटीआई के इस आवेदन का महत्व इस लिहाज से बढ़ जाता है कि उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को सरकार से कहा था कि वह कोहिनूर को देश में वापस लाने से जुड़ी जनहित याचिका पर अपना रूख स्पष्ट करे।

प्रधान न्यायाधीश ने यह कहा था
प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार से कहा था, हर कोई कोहिनूर पर दावा कर रहा है। कितने देश कोहिनूर पर दावा कर रहे हैं पाकिस्तान, बंग्लादेश, भारत और यहां तक कि दक्षिण अफ्रीका भी। यहां भी कोई कोहिनूर के लिए कह रहा है। क्या आप इसके बारे में जानते हैं। कुमार ने कहा कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है और उन्हें इसपर जानकारी हासिल करने के लिए समय चाहिए। शीर्ष अदालत दरअसल अखिल भारतीय मानवाधिकार एवं सामाजिक न्याय मोर्चा की ओर से दायर जनहित याचिका की सुनवाई कर रही थी। इस संगठन ने अनुरोध किया था कि ब्रिटेन के उच्चायोग को हीरा और अन्य कीमती सामान लौटाने से जुड़े निर्देश दिए जाएं।

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