कुछ नया रचिए
आज के दिन को बीते हुए और आनेवाले बेशुमार दिनों से अलग करने के लिए एक नाम चाहिए ही। गति करते पैरों के आगे एक रेखा खिंच जायेगी। यह आदमी चाहेगा-काश! उपलब्धियों के ये दिन यूं ही ठहरे रहते! और अगर साल के बही-खाते में उपलब्धियां कम हुईं, विफलताएं ज्यादा, तो कठिनाइयों से उबरने के जतन में लगा आदमी सोचेगा: भला हुआ, जो यह साल अपने आखिरी मुकाम पर आया! यह आदमी चाहेगा कि उसके आनेवाले बेशुमार दिनों पर बीते हुए साल की कोई छाया ना पड़े। यह आदमी अपनी बीती सुबहों को आने वाले सवेरों से कुछ इस तरह काटना चाहेगा, मानो दोनों के बीच एक रात का भी रिश्ता ना हो। चीजों को निरंतरता में देखने का यह अभ्यास हमें ‘आज’ में नहीं जीने देता। आज के दिन को कोई नाम नहीं दें, आने वाले साल की शुरूआत का एक संकेत नहीं मानें, तो फिर हमारे लिए संभावनाओं के अनगिनत द्वार खुलते हैं। इस दिन का सूरज निकलने की अगर हजार वजहें बीते हुए कल के आसमान में हैं, तो भी कोई एक वजह तो है जो पौ फटी है और सूरज फिर से उगा है। यह हमारे आज को नया करता सूरज है। याद कीजिए, राममनोहर लोहिया को। लोहिया ने भारत माता से शिव सरीखा मस्तिष्क मांगा! शिव लोहिया की नजर में ‘असीम तात्कालिकता की महान किंवदंती’ हैं, यानी एक ऐसा व्यक्तित्व, जिसने कोई भी काम ऐसा नहीं किया, जिसका प्रयोजन अतीत या भविष्य में छुपा हो। लोहिया ने लिखा है कि शिव के हर काम का कारण और प्रयोजन उसी काम में निहित है। शिव इसी से ‘महाकाल’ हैं, उनका ओर-छोर ब्रह्मा और विष्णु नहीं खोज पाते, लेकिन यही शिव गणेश की परिक्रमा के भीतर बंध जाते हैं। आज का दिन भी अपना ओर-छोर नहीं, बल्कि एक गणेश परिक्रमा खोजता है। ‘आज’ के दिन को पाना है, तो उसे अपने बीते हुए तमाम दिनों की कैद से मुक्त कीजिए, आने वाले बेशुमार दिनों की अपेक्षाओं से अलग रखिए। कोई एक वजह खोजिए, जो आपके ‘आज’ को अनोखा बनाता हो और इस अनोखेपन को साकार करने के लिए चली आ रही लीक से हट कर कुछ नया रचिए! जिस दिन आप अपने हर ‘आज’ को नया मानने लगेंगे, हर दिन कुछ नया रचने की कोशिश करने लगेंगे, आने वाला हर दिन, हर साल आपके लिए खुद-ब-खुद नया होता चला जायेगा। अतीत की मुट्ठी में कैद करने वाले अपने नाम को तज कर ही जीवन की नयी दीक्षा मिलती है।
Agree
ReplyDeleteAgree
ReplyDelete