सैंडर्स हत्याकांड में बेगुनाह शहीदे आजम भगत सिंह

आत्म सम्मान, देश भक्तों के प्रति स्वाभिमान, राष्ट की भक्ति ऐसे पहलू हैं जो सदियों बाद भी स्मृतियों में आने पर आनंद और उत्साह पैदा करते हैं। नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा प्रदान करते हैं। कुछ ऐसा ही जज्बा है इम्तियाज राशिद कुरैशी का। राशिद कुरैशी भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के अध्यक्ष हैं। कुरैशी की जिद है कि जिस ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन पी सैंडर्स की हत्या में सरदार भगत सिंह को फांसी दी गयी, उस मामले में वह पूरी तरह से निर्दोष हैं। वह इस मामले में उनकी बेगुनाही को साबित करना चाहते हैं। इस दिशा में उन्हें महत्वपूर्ण सफलता भी हासिल हुई है। लाहौर पुलिस ने साफ कर दिया है कि 1928 में हुई एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी की हत्या के मामले में दर्ज प्राथमिकी में शहीद-ए-आजम भगत सिंह के नाम का उल्लेख नहीं मिला है। भगत सिंह को फांसी दिए जाने के 83 साल बाद मामले में महान स्वतंत्रता सेनानी की बेगुनाही को साबित करने के लिए यह बड़ा प्रोत्साहन है। भगत सिंह मेमोरियल फाउन्डेशन के अध्यक्ष याचिकाकर्ता इम्तियाज राशिद कुरैशी ने याचिका दायर की थी जिसमें भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के खिलाफ तत्कालीन एसएसपी जॉन पी सैंडर्स की हत्या के मामले में दर्ज प्राथमिकी की सत्यापित प्रति मांगी गई थी। भगत सिंह को सैंडर्स की हत्या के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी और महज 23 साल की उम्र में 1931 में उन्हें लाहौर के शादमान चौक पर फांसी दी गई थी। उन्हें फांसी दिए जाने के आठ दशक से अधिक समय बीत जाने के बाद लाहौर पुलिस ने अदालत के आदेश पर अनारकली थाने के रिकॉर्ड की गहन छानबीन की और सैंडर्स हत्याकांड की प्राथमिकी ढूंढने में कामयाब रही। उर्दू में लिखी प्राथमिकी अनारकली थाने में 17 दिसंबर 1928 को अपरान्ह साढ़े चार बजे ‘दो अज्ञात लोगों’ के खिलाफ दर्ज की गई थी। अनारकली थाने का एक पुलिस अधिकारी मामले में शिकायतकर्ता था। शिकायतकर्ता सह प्रत्यक्षदर्शी ने कहा कि जिस व्यक्ति का उसने पीछा किया वह पांच फुट पांच इंच लंबा था, हिंदू चेहरा, छोटी मूंछें और दुबली पतली और मजबूत काया थी। वह सफेद रंग का पायजामा और भूरे रंग की कमीज और काले रंग की छोटी क्रिस्टी जैसी टोपी पहने था। मामला भारतीय दंड संहिता की धारा 302, 120 और 109 के तहत दर्ज किया गया था। लाहौर पुलिस की विधिक शाखा के एक निरीक्षक ने अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश लाहौर तारिक महमूद जारगाम को सीलबंद लिफाफे में प्राथमिकी की सत्यापित प्रति सौंपी। अदालत ने कुरैशी को प्राथमिकी की एक प्रति सौंपी। कुरैशी ने कहा कि भगत सिंह के मामले की सुनवाई कर रहे न्यायाधिकरण के विशेष न्यायाधीशों ने मामले के 450 गवाहों को सुने बिना उन्हें मौत की सजा सुनाई। उन्होंने बताया कि भगत सिंह के वकीलों को उनसे जिरह का अवसर नहीं दिया गया। कुरैशी ने लाहौर उच्च न्यायालय में भी एक याचिका दायर की है जिसमें भगत सिंह मामले को दोबारा खोलने की मांग की गई है। उन्होंने कहा, मैं सैंडर्स मामले में भगत सिंह की बेगुनाही को स्थापित करना चाहता हूं। लाहौर उच्च न्यायालय ने मामले को मुख्य न्यायाधीश के पास भेजा है ताकि सुनवाई के लिए वह वृहत पीठ का गठन करें। कुरैशी की यह पहल भारत के प्रत्येक राष्ट्रभक्तों के लिए नई सुबह लेकर आई है। अब उस दिन का इंतजार है जब भारत देश को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्ति दिलाने के लिए अपने प्राणों का आत्मोत्सर्ग करने वाले शहीदे आजम भगत सिंह को बेगुनाह साबित किया जाएगा। प्रकरण भले ही 83 वर्ष पुराना है, पर आज भी शहीदे आजम हर भारतवासी के दिल में जिंदा हैं।

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