ऐसे नेता कार्यकर्ता को क्या देंगे नसीहत

16वीं लोकसभा के गठन के लिए बजी चुनावी रणभेरी के बाद देश के कई प्रमुख नेताओं ने ऐसा आचरण किया, जिससे वह कार्यकर्ता ही नहीं जनता की नजरों से भी गिर गए हैं। ऐसे नेताओं में भाजपा के प्रमुख नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, सुषमा स्वराज, जसवंत सिंह, लालजी टंडन, राम विलास वेदांती, कांग्रेस नेता सुरेश कलमाडी, जगदंबिका पाल, आरजेडी के नेता राम कृपाल यादव जैसे लोग प्रमुख हैं। आडवाणी ने पहले नरेन्द्र मोदी को भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति में शामिल होने का विरोध किया, फिर उन्हें प्रचार समिति का प्रमुख बनाए जाने का विरोध किया। इसके बाद पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनाए जाने पर नाक-भौं सिकोड़ी और अब टिकट को लेकर बूढ़ पतुरिया जैसे नाटक किया। ऐसे शीर्षस्थ नेता के इस आचरण से आम जनता क्या सीख लेगी। कार्यकर्ताओं को ऐसे नेता क्या नसीहत देंगे। जो नेता खुद अपनी ख्वाहिश को पूरी करने के लिए देश हित और पार्टी हित को दोयम दर्जे पर रखता हो, वह कैसे लोकप्रिय बन सकेगा। दूसरे हैं मुरली मनोहर जोशी, कभी देश में यह नारा लगा  करता था कि देश के तीन धरोहर, अटल, आडवाणी मुरली मनोहर। जोशी जी भाजपा के सांस्कृतिक चेहरे के रुप में देखे जाते थे, पर 2004 को चुनाव वह इलाहाबाद से हार गए। 2009 में वाराणसी से महज 17 हजार वोटों से जीते। इसके बाद भी क्षेत्र से यह आवाज आयी कि बाबा विश्वनाथ का दर्शन आसान है, पर मुरली मनोहर का दर्शन मिल पाना कठिन है। तीसरे है सुषमा स्वराज जो पार्टी में कुछ नेताओं के आने पर अपनी नाराजगी ऐसे समय में सार्वजनिक की जब पार्टी को अपने नेताओं से समर्थन की जरुरत रही। पार्टी अगर कोई ऐसा निर्णय ले रही थी, जो उन्हेंे पसंद नहीं था तो उस पर अपनी राय व्यक्त करने का फोरम था, उन्हें उसी स्थान पर अपनी बात कहनी थी। टिवटर पर ऐसी बयानबाजी ने उनके कद को छोटा करने का काम किया है। इन्ही श्रेणियों में जसवंत सिंह, लालजी टंडन और राम विलास वेदांती है जो मात्र टिकट न मिलने से रणरोवन रो रहे हैं। ऐसे नेताओं में जब जरा सी धैर्य रखने का साहस नहीं है तो वे आने वाली पीढ़ी के लिए कैसे उदाहरण बन सकेंगे। इन्हीं नेताओं की कड़ी में कांग्रेस के जगदंबिका पाल, सुरेश कलमाड़ी, आरजेडी के राम कृपाल यादव शामिल हैं। इन लोगों ने उस पार्टी से बगावत की है जिस पार्टी ने उन्हें पहचान दी और वह हर चीज दी जिसकी  उन्होंने इच्छा की। ऐसे नेताओं के अच्छे दिन अब लगता है कि आने वाले नहीं हैं।

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