यह क्यों नहीं है राजनैतिक दलों के मुददे

रमेश पाण्डेय
उत्तर प्रदेश की राजधानी में डेंगू का कहर है। दो माह के भीतर डेंगू की चपेट में आने से मरने वालों की संख्या सौ पा कर चुकी है। राजधानी के अलावा बहराइच, गोंडा और इलाहाबाद में भी डेंगू के मरीज मिल रहे है। इन मरीजों के इलाज के लिए अस्पतालों में समुचित व्यवस्था नहीं है। पूर्वांचल के दर्जन भर से अधिक जिलों में दिमागी बुखार का कहर बरप रहा है। पिछले पांच वर्ष के आंकडे पर नजर डाली जाये तो दिमागी बुखार की चपेट में आने से मरने वाले बच्चों की संख्या पांच हजार से अधिक हो गयी है। प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह से चौपट हो गयी है। सरकारी कार्यालयों में आम आदमी की समस्या कोई सुनने वाला नहीं है। पूरे प्रदेश की सडके जर्जर हालत में पहुंच गयी हैं। विद्युत आपूर्ति का बुरा हाल है। अपराध चरम पर है, महिलाओं की आबरू सुरक्षित नहीं है। लघु उद्योग पूरी तरह से चौपट हो गये हैं। सहकारी संस्थाओं को कबाडा बना दिया गया है। सरकारी योजनाओं में व्यापक पैमाने पर लूट मची हुई है, गंगा, यमुना, सरयू, गोमती, सई और बकुलाही जैसी पावन नदियां प्रदूषण का शिकार हैं, नदियों का पवित्र जल जहरीला होने लगा है। पर राजनैतिक दलों के पास यह सब कोई मुददा नहीं है। 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारी में सभी दल जुट गये हैं, पर उनके पास जनता के बीच जाने के लिए अगर कोई मुददा है, तो केवल जातिवाद, क्षेत्रवाद, सम्प्रदायवाद और एक-दूसरे पर कीचड उछालना। उत्तर प्रदेश में रहने वाले नागरिकों में 80 फीसदी से अधिक कृषि कार्य पर लोग आधारित हैं। गन्ना किसानों के बकाये का भुगतान न्यायालय के आदेश के बाद भी नहीं किया जा रहा है। मंहगाई लगातार बढती जा रही है पर गन्ना के मूल्य में अपेक्षित वृद्धि नहीं की जा रही है। उर्वरक की कीमत साल भर में दो से अधिक बार बढाई जा रही है। डीजल और पेटोल की कीमत कब बढा दी जाएगी कोई ठिकाना नहीं। बेरोजगारी का दंश युवा पीढी इस कदर झेल रही है  िकवह युवावस्था में ही बूढी नजर आने लगी है। परिणाम यह देखने को मिल रहा है कि अधिकांश युवा पीढी नशे और अपराध की ओर उन्मुक्त हो रही है। राजनैतिक दलों की नजर में यह सब मुददे नहीं हैं। सत्ता में आने वाले राजनैतिक दलों का भी लक्ष्य सार्वभौमिक विकास की बजाय केवल अपने वोटबैंक के हित को साधना रह गया है। कानपुर में 19 अक्टूबर को भारतीय जनता पार्टी की विजय शंखनाद रैली हुई। रैली में आये भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी का भाषण सुना। उनके भाषण में भी वह मुददे गायब दिखे, जिसकी अपेक्षा लोगों को थी। वह भी केवल खुद को सबसे अच्छा साबित करने और खुद को शोवर दिखाने के इर्द-गिर्द ही घूमते रहे। समाज की कडवी सच्चाई और लोगों के दर्द को समझने की उन्होंने कोई कोशिश नहीं की। इसके पहले कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी की अलीगढ और रामपुर में हुई धन्यवाद रैली को भी सुना। राहुल जी के भाषण में भी वही झलकता नजर आया, जिससे कांग्रेस को वोटबैंक मजबूत हो। रामपुर में समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव आजम खां के कार्यक्रम में शामिल हुए और भाषण दिया, उनके भाषण में भी केवल सत्ता की भूख नजर आयी। किसी भी राजनैतिक दल के एजेंडे में यह बात नहीं नजर आ रही है कि उसकी सोच में समाज और देश को मजबूत करने के साथ ही सार्वभौमिक विकास की सोच हो। अगर दशा यही रही तो सबकुछ अंधेर नगरी और चौपट राजा वाला हाल ही हो जाएगा।

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