धमधूसड के राज में गधा पंजीरी खायं

 

--आखिर किसके हैं रेवडी की तरह बंटने वाले पैसे

--कब तक बेवकूफों की तरह मौन बनी रहेगी जनता


रमेश पाण्डेय
सच कहूं तो उत्तर प्रदेश में इन दिनों एक कहावत चरितार्थ हो रही है। कहावत है धमधूसड के राज में गधा पंजीरी खायं। मार्च 2013 में प्रदेश के मुजफफरनगर, शामली, मेरठ, सहारनपुर और बागपत जिलों में साम्पद्रायिक हिंसा भडकी थी। इस हिंसा में 62 लोगों की मौत हो गयी थी। अब भी आग पूरी तरह से बुझी नहीं है। अन्दर ही अन्दर सुलग रही है। मजेदार बात यह रही कि शुरू से ही इस घटना के पीछे सियासी हाथ होने की आशंका उठने लगी थी। मीडिया ने जो स्टिंग आपरेशन किया, उसमें यह बात निकलकर आयी कि उत्तर प्रदेश सरकार के एक ताकतवर मंत्री के हस्तक्षेप का ही नतीजा रहा कि इस घटना ने साम्प्रदायिक हिंसा का रूप ले लिया। जिस मंत्री का नाम सामने आया, उनका नाम मोहम्मद आजम खां है। इसके बाद मामले को कूल डाउन करने के लिए सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने कैबिनेट मंत्री शिवपाल सिंह यादव के नेतृत्व में मंत्रियों का समूह गठित किया। इस समूह ने प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर जो रिपोर्ट तैयार की, उसमें भी यह बात सामने आयी कि घटना का कारण सियासी दखल रहा। पुलिस अधिकारियों ने भी जो बयान दिये, उसमें यह बात छनकर सामने आयी कि अगर सियासी दखल न होता तो साम्प्रदायिक हिंसा की यह घटना न घटती। इसके बाद भी उत्तर प्रदेश और केन्द्र की सरकारों ने यह जानने और आम जनमानस को यह बताने की कोशिश नहीं कि आखिर घटना के पीछे का सच क्या है। वह कौन सी गलती हुई, जिसके चलते इतनी बडी घटना हुई और मामले को शांत कराने के लिए सेना को तैनात करना पडा। इस बीच सबसे घृणित पहलू यह सामने आये कि सियासी दलों ने वोट की राजनीति करनी शुरू कर दी। एक साजिश के तहत एक वर्ग के लोगों को राहत शिविर में रखा गया। जो लोग इस शिविर में आये वह अब घर लौटने को तैयार नहीं हो रहे है। इसके पीछे वह फिर इसी प्रकार की हिंसा होने का भय बता रहे है। इस पर सवाल उठता है कि राज्य सरकार आम आदमी को सुरक्षा देने में पूरी तरह से नाकाम साबित हो रही है। इसी वजह से शिविरों में रह रहे लोग घर वापस जाने को तैयार नहीं हो रहे हैं। ऐसे लोगों को राज्य सरकार ने सुरक्षा का भरोसा और विश्वास न बहाल करने के बजाय प्रत्येक परिवार के लोगों को 5-5 लाख रूपये की आर्थिक सहायता प्रदान करने का निर्णय ले लिया। मजेदार बात है कि इसके तहत जिन 1800 परिवार के लोगों को चिन्हित किया गया है, वह सभी एक वर्ग विशेष के ही हैं। इस तरह से कुल 90 करोड रूपये की धनराशि रेवडी की तरह बांटी जा रही है, जिसकी कोई आवश्यकता नहीं थी। राज्य सरकार अगर इन लोगों के मन में सुरक्षा का भरोसा और विश्वास बहाल कर देती तो इस तरह से धन की बरबादी न करनी पडती। एक सवाल और उठता है कि क्या इस साम्प्रदायिक हिंसा में दूसरे पक्ष के लोग हताहत नहीं हुए। उनके पक्ष में जान-माल का नुकसान नहीं हुआ। उनके मन में क्या कहीं असुरक्षा की भावना नहीं है। वे कैसे रह रहे हैं, कैसा माहौल है, यह भी जानने की कोशिश नहीं की गयी और न ही दूसरे पक्ष के लोगों को दरियादिली से की जा रही इस सहायता में शामिल किया गया। एक सवाल और उठना लाजिमी है, यह पैसा आखिर किसका है, जिसे रेवडी की तरह बांटा जा रहा है। जिस शहर में दंगा हुआ, वह कभी कौमी एकता की मिसाल रहा। किसान नेता चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में इस इलाके के मुसलमान एक ही मंच से अल्ला-हो-अकबर और जय बजरंगबली के नारे का उदघोष करते रहे। दोनों एक साथ मिलकर कृषि और व्यापार के क्षेत्र में काम करके देश को आर्थिक रूप से समृद्ध करने में जुटे रहे। वहां ऐसा क्या हो गया, जो दोनों एक दूसरे के दुश्मन बन गये हैं। जो धनराशि महज राजनीति करने के लिए और वोट साधने के लिए पानी की तरह व्यर्थ में व्यय की जा रही है, अगर उसी धनराशि से इस इलाके में कोई उद्योग लगवा दिया जाता तो शायद इस इलाके का भी कायाकल्प हो जाता और बेरोजगार नौजवानों को रोजगार भी मिल जाता। मैं तो मुसलमान भाईयों से अपील करूंगा कि अगर वह देश की कौमी एकजेहती और तहजीब को जिंदा रखना चाहते हैं, आपसी भाईचारे और मोहब्बत को अक्षुण्य बनाये रखना चाहते हैं तो उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दी जा रही इस धनराशि को लेने से इनकार कर दें और यह कहें कि अगर यह धनराशि देनी ही है तो हमारे दूसरे वर्ग के भाईयों को भी इसमें शामिल किया जाये। एक घटना और हमारी स्मृति में आ गयी है, जिससे आपको अवगत करना समीचीन होगा। वर्ष 2012 में मोहर्रम का त्यौहार सन्निकट था। लखनउ स्थित जल संस्थान में कर्मचारियो को वेतन नहीं मिला था। मोहर्रम नजदीक आयी तो कार्यालय के प्रभारी ने मुस्लिम समाज के कर्मचारियों को वेतन दे दिया, किन्तु इस बात को बताते हुए हमारा सीना गर्व से चौडा हो जाता है कि उन मुसलमान भाईयों ने यह कहकर वेतन लेने से इनकार कर दिया कि ऐसा करके हम हिन्दू और मुसलमान भाईयों के बीच दरार पैदा करने की कोशिश की जा रही है। हम वेतन तभी लेंगे, जब हिन्दू भाईयों को भी दिया जायेगा। ठीक ऐसी ही परिस्थित उत्तर प्रदेश की धमधूसड सरकार ने भी पैदा कर दी है। फैसला आपके हाथ में है।

Comments

  1. उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

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