आओ मिल सब
आओ मिल सब दिया जलाएं।
अज्ञान का बादल घना है, पापमय मानस बना है।
भ्रश्ट, उच्छृंखल व्यवस्था, देखकर मन अनमना है।।
कर्म का दीपक स्नेह की बाती, जलाकर आओ तम भगाएं
आओ मिल सब........
शत्रु सीना ताने खडा है, रक्षक दुविधा में पडा है।
झूठ शासन कर रहा है, सत्य कोने में खडा है।।
चीरना है यह तमस, कर्तव्य कुछ तो हम निभाएं
आओ मिल सब..........
नभ चुनौती दे रहा है, राह ओझल कर रहा है।
तिमिर से आवृत्त निशि में, भयातुर मन डर रहा है।।
उमंग, दृढ, विश्वास, आशा का प्रखर दीपक जलाएं
आओ मिल सब........
रमेश पाण्डेय
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