सपने के दौरान सोना देखते हैं सोभन सरकार
सपने देखा करें, सपने देखना जरूरी है। जिन्हें जिंदगी ने दिन में तारे दिखा दिये उनको नींद नहीं आती और सपने देखना भी एक सपन हो जाता है। पर सपने जरूरी हैं पूरे होने के लिए, जिसके लिए सोना जरूरी है। उत्तर प्रदेश में महंत सोभन सरकार सोने के दौरान सपने नहीं देखते, सपने के दौरान सोना देखते हैं। दिन के सपनों ने कइयों का दीवाला निकाला पर सोभन सरकार कहते हैं कि अगर उनकी बतायी जमीन खोद दी तो भारतीय अर्थव्यवस्था की काली रात में दिवाली मनेगी, दिवाली से पहले। नेहरूजी कह गये देश में विज्ञान और तर्क को अपनाएं, तरक्की लाएं। छरू दहाई की तरक्की के बाद फर्क ये है कि हमने विज्ञान से तर्क कर अंधविश्वास का एक ऐसा नर्क बनाया है, जिस पर आधिकारिक तौर सोने के वर्क चढ़ाने की तैयारी में हैं। खुदाई की जरूरत ही नहीं थी, वित्त मंत्री निर्मल बाबा से उपाय पूछ लेते। उनके बताये प्याज के पकौड़े काले कुत्ते को खिला देते, रुपया मजबूत हो जाता। लेकिन, भारत सरकार एक साधु के सपने को मूर्त रूप दे रही है! उन्नाव जिले के डौंडीया खेड़ा गांव में बैंस राजा रामबख्श सिंह के किले के खंडहर में एक मंदिर है, जिसके पास स्वामी सोभन सरकार का डेरा है। स्वामीजी को स्वप्न में जमीन के अंदर सोना दिखा तो उन्होंने राष्ट्रपति से लेकर कलक्टर के चपरासी तक को चिट्ठी लिख मारी। जवाब नहीं आया। फिर देश पर आर्थिक संकट छाया, तो इन्होंने एक नेता को भरमाया। चरण दास महंत केंद्र में मंत्री हैं। मिले महंत से महंत, हुआ दुविधा का अंत। मंत्री ने पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की ड्यूटी लगा दी। अब वहां खुदाई चल रही है। स्वामीजी कहते हैं वहां इतना सोना छुपा है कि निकल जाये तो छुपाये न बने और नहीं निकला तो पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग मुंह कहां छुपायेगा? वैज्ञानिक सोच और विवेक तो उसी गड्ढे में दफन हो जायेंगे। किसी कवि ने कहा था कि घर-घर महुए नहीं गलेंगे तो बापू के दुधमुंहे सपने कैसे पलेंगे। आज आलम यह है कि घर-घर धूमन नहीं जलेंगे तो नेहरू के साइंसी सपने कैसे पलेंगे।खुदा की खुदाई में खुदी को बुलंद क्यूं करना, खुदे की खुदाई बहुत ही आसान है। होम्योपैथी को विज्ञान भले न माने, सरकार आयुष विभाग से अनुदान दिलाती है। कॉलेज-अस्पताल हैं, डिग्री ले सकते हैं, खुराक दे सकते हैं। दुनिया विश्वास पर टिकी है, विश्वास कीजिये और ठीक हो जाइये। इसरो के वैज्ञानिक अंतरिक्ष में सेटेलाइट प्रक्षेपण से पहले बाबाओं का आशीर्वाद लेते हैं। जो अग्नि मिसाइल छोड़ते हैं, वे पहले नारियल फोड़ते हैं। थाने-थाने में हनुमानजी विराजते हैं। धर्म जीवन का अंग है, आपत्ति थोड़े है? किंतु धर्मांधता के घोड़े पर कोई तो लगाम हो। निर्मल बाबा पुदीने की चटनी चटा रहे हैं, आसाराम आराम से घुट्टी पिला रहे हैं, जीते जी मारनेवालों का दावा है कि मुर्दे जिला रहे हैं। क्योंकि हम खा रहे हैं, पी रहे हैं, सुने-सुनाये पर जी रहे हैं। एक बेचारी बुढिया जब डायन बता कर मार दी जाती है, उसकी मौत पर आश्चर्य करते हैं, पर डायन होने पर डाउट नहीं होता! भूत-प्रेत पर यकीन करते हैं, तो डायन पर क्यों नहीं, है न चक्रवात कभी ईश्वर का प्रकोप हुआ करता था। अब सेटेलाइट से हम उसके आंख, कांख और इरादे भांप लेते हैं। चक्रवात के दुष्चक्र से लाखों की जान बचा ले गये, पर सुने-सुनाये पर यकीन कर सौ मारे गये। हमने धर्म और संस्कृति का ऐसा लच्छा बनाया है कि अच्छे-अच्छों के तलवे तर हो जाएं पसीने में। इस डोर को सुलझाने में, इसका सिरा पाने में। हम सिरा ढूंढते ही नहीं, क्योंकि ढूंढने में सिर लगाना पड़ता है, सुलझाने में हाथ। हम तो सिर धुनते हैं। अगर अपने बाबाजी आसाराम टाइप निकल गये तो हाथ मसलते हैं। क्योंकि सिर है धुनने के लिए, हाथ मसलने के लिए और सपने जरूरी हैं नींद में चलने के लिए।
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