मानव की कारस्तानी से घातक बनते चक्रवात

पिछले दिनो आये फैलिन तूफान ने पूर्वी प्रदेशों में जमकर कहर बरपाया। इसके बाद यह सोचना जरूरी हो गया है कि आखिर यह चक्रवात इतने घातक क्यों बन रहे हैं। आखिर इसके लिए सच में जिम्मेदार कौन लोग हैं। आम आदमी या फिर पर्यावरण से खिलवाड कर रहे सफेदपोश राजनैतिक लोग। यहां यह बताना समीचीन है कि चक्रवात का तात्पर्य चार प्रकार से नुकसान पहुंचाना होता है। इसी कारण इन तूफानों का नामकरण चक्रवात से किया जाता है। पहला नुकसान तेज हवा के झोंके से होता है, दूसरा नुकसान समुद्री लहरों के बस्तियों में भीतर तक प्रवेश करने से होता है, तीसरा नुकसान भू-भाग में अत्यधिक वर्षा के कारण हुआ करता है और चौथा नुकसान तूफान के कारण बांध या उद्योगों के नष्ट होने के कारण हुआ करता है। प्रकृति ने इन नुकसानों से बचाव के लिए मैनग्रोव प्रदान किया है। मैनग्रोव अर्थात प्रकृति द्वारा प्रदान किया गया वनस्पति कवच। मानव ने विकास की अंधी दौड में इस वनस्पति कचव को नष्ट कर दिया है और जो कुछ बचा है उसे भी नष्ट करता जा रहा है। यह वनस्पति रक्षा कवच समुद्र के तटीय इलाकों में पेडों, मूंगे और पहाड की चटटानों, बालू और रेत की प्रचुर मात्रा के रूप में प्रकृति ने प्रदान कर रखी है। आज चारों तरफ खनन हो रहा है। पेडों की अंधाधुंध कटान की जा रही है। पास्को जैसी विवादित परियोजना को हरी झंडी देकर हजारों पेडों को कटवा दिया गया। देश के सभी प्रदेशों में खनन माफिया मनमानी तरीके से रेतों की खुदाई करवा रहे है। मूंगे की चटटानों को डायनामाइट का इस्तेमाल कर तोडा जा रहा है। इसके अलावा लगातार फैल रहे प्रदूषण से प्रकृति का यह वनस्पति कवच नष्ट किया जा रहा है। अगर समय रहते सरकार और सत्ता में बैठे लोगों ने न चेता तो आने वाले समय में प्राकृतिक आपदाओं का कहर और तेजी से बरपेगा।


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