कभी नहीं भुला पाऊंगा ‘कहला’ की धरती

कहने को तो कहला एक गांव का नाम भर है। पर यह और गांवों से कुछ अलग है। कहला वह गांव है, जहां के गोशे-गोश से देशभक्ति की सोंधी सुगंध गमकती है। सम्मान और स्वामिभमान की झलक महसूस होती है। यह वह गांव है जो महात्मा गांधी और पंडित जवाहर लाल नेहरु को प्यारा था। शासन और प्रशासन की ओर से चाहे जितनी उपेक्षा की जाए या फिर इस गांव के लोगों की इच्छाओं का दमन करने के लिए नाना प्रकार के हथकंडे अपनाए जाए, पर इस गांव के लोग ऊफ तक नहीं बोलते। ऐसा गांव शायद कहीं और देखने को मिले, जहां का एक-एक नागरिक सम्मान, स्वाभिमान और देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत है। इस गांव के लोगों को कभी दुनियावी चमत्कार अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सका। इस गांव के याद आने की वजह है 16 फरवरी का दिन। 16 फरवरी इस गांव के लिए किसी त्यौहार के दिन से कम नहीं है। 16 फरवरी 1931 को इसी गांव के चल रही देशभक्तों की सभा पर अग्रेज सैनिकों ने गोल चलाई थी, जिसमें तीन किसान शहीद हो गए थे। इन तीन किसानों की शहादत ने इस गांव को गांव की पृष्ठभूमि से ऊपर उठाकर ‘तीर्थस्थल’ जैसा बना दिया। इस गांव को समझने के लिए हमे अतीत की ओर न केवल झांकना होगा बल्कि वर्तमान पर भी प्रकाश डालना होगा। उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले की इलाहाबाद की सीमा से सटा कहला गांव स्वाधीनता आन्दोलन के दौर में क्रान्तिकारियों को प्रिय रहा। पूर्वांचल में किसानों को एक सूत्र में पिरोकर हरी बेगार के खिलाफ आन्दोलन चला रहे बाबा रामचन्दर ने इस गांव की खूबसूरती को पहचाना था। पंडित जवाहर लाल नेहरु को बाबा रामचन्दर ने लाकर यहीं से राजनीति की पाठशाला में प्रवेश कराया था। 16 फरवरी 1931 को बाबा रामचन्दर के आह्वान पर विन्देश्वरी प्रसाद दुबे की तीनपेड़वा बाग में विशाल सभा आयोजित की गई थी। इस सभा में आसपास के गांव के तकरीबन 50 हजार से अधिक किसान मौजूद रहे। उस समय रानीगंज थाने में दरोगा तबारुक हुसैन तैनात थे। शाम करीब पांच बजे तबारुक हुसैन अग्रेज सिपाहियों के साथ कहला गांव आ पहुंचा और सभा को बंद करने के लिए कहने लगा, पर सभा में आए देशभक्त किसान उसकी बात को मानने के लिए तैयार नहीं हुए। अंतत: अग्रेज सैनिकों ने सभा पर गोली चला दी। गोली लगने से कहला गांव के कालिका प्रसाद विश्वकर्मा, कौलापुर गांव के मथुरा प्रसाद यादव और नाथ का पूरा गांव के रामदास शहीद हो गए। इस दौरान मची भगदड़ में सैकड़ों किसान घायल हो गए। गांव में मरघट सा सन्नाटा छा गया। घटना के बाद अग्रेज सैनिक शहीद हुए तीनों किसानों के शव जिला मुख्यालय उठा ले गए। कहला गांव के बहादुर किसान माताचरन कुर्मी ने पैदल ही आनंद भवन की ओर दौड़ पड़े। उन्होंने नंगे पांव आनंद भवन जाकर वहां घटना की पूरी जानकारी पंडित जवाहर लाल नेहरु को दी। घटना की गंभीरता और गांव की स्थिति को समझते हुए पंडित नेहरु माताचरन कुर्मी के साथ अपनी बहर पंडित विजय लक्ष्मी, राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन समेत कई लोगों को कहला गांव भेजा और खुद जिला मुख्यालय पहुंचकर वहां से अन्त्य परीक्षण की प्रक्रिया पूरी कराकर शहीद हुए तीनों किसानों के शव को लेकर दूसरे दिन कहला गांव आए। गांव में हजारों की तादात में लोग पंडित नेहरु का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। इसके बाद कहला से प्रयाग तक शहीद हुए किसानों के अन्तिम संस्कार के लिए कारवां खड़ा हो गया। उस दौरान पंडित विजय लक्ष्मी इस गांव में 14 दिनों तक रहीं। उनके साथ प्रियदर्शिनी इंदिरा गांधी भी मौजूद थी। प्रियदर्शिनी इंदिरा जी को यह घटना याद रही। 70 के दशक में जब वह प्रधानमंत्री बनीं तो 16 फरवरी के ही दिन 1972 में वह कहला गांव पहुंची और शहीद हुए तीनों किसानों की स्मृति में शहीद स्थल की आधारशिला रखी। देश के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर करने वाले किसानों का यह गांव वर्तमान में शासन और प्रशासन की उपेक्षा का शिकार है। इस गांव में मुख्य मार्ग से शहीद स्थल तक बनी सड़क की हालत बेहद खराब है। पिछले दिनों एक कार्यक्रम के संन्दर्भ में कहला गांव जाने का मौका मिला तो देखा कि कहला बाजार से शहीद स्थल तक जाने वाली सड़क पर गिट्टी पड़ी है। गांव के लोगों से पूछा तो बताया गया कि पिछले करीब डेढ़ साल से यही स्थिति है। राज्य सरकार द्वारा गांवों के समग्र विकास के लिए लोहिया समग्र गांव योजना संचालित की जा रही है, पर दुर्भाग्य है कि शहीद हुए तीनों किसानों के गांव कहला, कौलापुर और नाथ का पूरा, कोई भी इस योजना के अन्तर्गत चयनित नहीं है। गांव में एक अस्पताल शहीद कालिका प्रसाद विश्वकर्मा के नाम पर बनी है। इस अस्पताल तक पहुंचने के लिए रास्ता नहीं है। अस्पताल में चिकित्सक नहीं है। बिजली का कनेक्शन नहीं है। शहीद स्थल से प्रतापगढ़ जिला मुख्यालय के लिए उत्तर प्रदेश परिवहन निगम की एक बस संचालित हुआ करती थी, पिछले करीब एक दशक से वह भी बंद हो गयी है। गांव में बच्चों के पढ़ने के लिए हाईस्कूल स्तर का भी स्कूल नहीं है। इन सब के बावजूद इस गांव के लोगों को किसी से गिला शिकवा नहीं है। धन्य हैं इस गांव के नागरिक। इस गांव के लोगों की जीवंतता को देखते हुए बार-बार मन में यह विचार आता है कि कहला गांव को कभी भुला नहीं पाऊंगा।

Comments

Popular posts from this blog

लोगों को लुभा रही बस्तर की काष्ठ कला, बेल मेटल, ढोकरा शिल्प

प्रतापगढ़ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्यकर्ताओं ने देश कल्याण के लिए किया महामृत्युंजय जप