कर्म को जिन्होंने सर्वोपरि माना

30 साल पहले वक्त ठहर गया था। देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उनके ही घर में गोलियों से भून दिया गया। पूरे देश को हिला देने वाली इस वारदात को कुछ लोगों ने अपनी आंखों से देखा। उस समय समाचार पत्रों में प्रमुखता से इसका प्रकाशन किया गया था। 30 साल की अवधि बीत जाने के बाद 31 अक्टूबर 2014 को उन स्मृतियों को ताजा करने के लिए तत्समय विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित तथ्यों के आधार पर यह लेख आपके सामने रख रहा हूं।
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उड़ीसा में जबरदस्त चुनाव प्रचार के बाद इंदिरा गांधी 30 अक्टूबर की शाम दिल्ली पहुंची थीं। आमतौर पर जब वो दिल्ली में रहती थीं तो उनके घर एक सफदरजंग रोड पर जनता दरबार लगाया जाता था। लेकिन ये भी एक अघोषित नियम था कि अगर इंदिरा दूसरे शहर के दौरे से देर शाम घर पहुंचेंगी तो अगले दिन जनता दरबार नहीं होगा। 30 तारीख की शाम को भी इंदिरा से कहा गया कि वो अगले दिन सुबह के कार्यक्रम रद्द कर दें। लेकिन इंदिरा ने मना कर दिया। वो आइरिश फिल्म डायरेक्टर पीटर उस्तीनोव को मुलाकात का वक्त दे चुकी थीं। तत्कालीन एसीपी दिनेश चंद्र भट्ट के मुताबिक जैसे एक नॉर्मल तरीका होता है। सुबह उठकर आप जनता से मिलते हैं तो उस दिन एक बिजी शिड्यूल था। उनके इंटरव्यू के लिए बाहर से एक टीम आई हुई थी। पीटर उस्तीनोव आए। उन लोगों ने अपना सर्वे किया। ये देखा कि खुली जगह पर इंटरव्यू करना चाहिए। वहां दीवाली के पटाखे पड़े हुए थे। उसको साफ-वाफ करवा कर वैसा इंतजाम करवाया गया तो उसमें कुछ वक्त लग रहा था। दरअसल पीटर इंदिरा गांधी पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बना रहे थे। इस बीच सुबह के आठ बजे इंदिरा गांधी के निजी सचिव आर के धवन एक सफदरजंग रोड पहुंच चुके थे। धवन जब इंदिरा गांधी के कमरे में गए तो वो अपना मेकअप करा रही थीं। इंदिरा ने पलटकर उन्हें देखा। दीवाली के पटाखों को लेकर थोड़ी नाराजगी भी दिखाई और फिर अपना मेकअप पूरा कराने में लग गईं। अब तक घड़ी ने 9 बजा दिए थे। लॉन भी साफ हो चुका था और इंटरव्यू के लिए सारी तैयारियां भी पूरी थीं। चंद मिनटों में ही इंदिरा एक अकबर रोड की तरफ चल पड़ीं। यहीं पर पेंट्री के पास मौजूद था हेड कॉन्सटेबल नारायण सिंह। नारायण सिंह की ड्यूटी आइसोलेशन कैडर में होती थी। साढ़े सात से लेकर 8.45 तक पोर्च में ड्यूटी करने के बाद वो कुछ देर पहले ही पेंट्री के पास आकर खड़ा हुआ था। इंदिरा को सामने से आते देख उसने अपनी घड़ी देखी। वक्त हुआ था 9 बजकर 05 मिनट। आर के धवन भी उनके पीछे-पीछे चल रहे थे। दूरी करीब तीन से चार फीट रही होगी। तभी वहां से एक वेटर गुजरा। उसके हाथ में एक कप और प्लेट थी। वेटर को देखकर इंदिरा थोड़ा ठिठकीं। पूछा कि ये कहां लेकर जा रहे हो। उसने जवाब दिया इंटरव्यू के दौरान आइरिश डायरेक्टर एक-टी सेट टेबल पर रखना चाहते हैं। इंदिरा ने उस वेटर को तुरंत कोई दूसरा और अच्छा टी-सेट लेकर आने को कहा। ये कहते हुए ही इंदिरा आगे की ओर बढ़ चलीं। ड्यूटी पर तैनात हेड कॉन्सटेबल नारायण सिंह के साथ छाता लेकर उनके साथ हो लिया। तेज कदमों से चलते हुए इंदिरा उस गेट से करीब 11 फीट दूर पहुंच गई थीं जो एक सफदरजंग रोड को एक अकबर रोड से जोड़ता है। नारायण सिंह ने देखा कि गेट के पास सब इंस्पेक्टर बेअंत सिंह तैनात था। ठीक बगल में बने संतरी बूथ में कॉन्सटेबल सतवंत सिंह अपनी स्टेनगन के साथ मुस्तैद खड़ा था। आगे बढ़ते हुए इंदिरा गांधी संतरी बूथ के पास पहुंची। बेअंत और सतवंत को हाथ जोड़ते हुए इंदिरा ने खुद कहा-नमस्ते। उन्होंने क्या जवाब दिया ये शायद किसी को नहीं पता लेकिन बेअंत सिंह ने अचानक अपने दाईं तरफ से .38 बोर की सरकारी रिवॉल्वर निकाली और इंदिरा गांधी पर एक गोली दाग दी। आसपास के लोग भौचक्के रह गए। सेकेंड के अंतर में बेअंत सिंह ने दो और गोलियां इंदिरा के पेट में उतार दीं। तीन गोलियों ने इंदिरा गांधी को जमीन पर झुका दिया। उनके मुंह से एक ही बात निकली-ये क्या कर रहे हो। इस बात का भी बेअंत ने क्या जवाब दिया ये शायद किसी को नहीं पता। लेकिन तभी संतरी बूथ पर खड़े सतवंत की स्टेनगन भी इंदिरा गांधी की तरफ घूम गई। जमीन पर नीचे गिरती हुई इंदिरा गांधी पर कॉन्सटेबल सतवंत सिंह ने एक के बाद एक गोलियां दागनी शुरू कीं। लगभग हर सेकेंड के साथ एक गोली। एक मिनट से कम वक्त में सतवंत ने अपनी स्टेन गन की पूरी मैगजीन इंदिरा गांधी पर खाली कर दी। स्टेनगन की तीस गोलियों ने इंदिरा के शरीर को भूनकर रख दिया। आर के धवन के बयान के मुताबिक उस वक्त वे भी उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहे थे। इंदिरा जी भी नीचे देख रही थीं। वे भी नीचे देखकर चल रहे थे। बात कर रहे थे। जैसे ही सिर उठाया तो देखा बेअंत सिंह जो गेट पर था उसने अपनी रिवॉल्वर से गोलियां चलानी शुरू कर दीं। गोलियां चलनी शुरू हुईं तो इंदिरा जी उसी वक्त जमीन पर गिर गईं। तभी सतवंत सिंह ने गोलियों की बौझार शुरू कर दी। हेड कान्सटेबल नारायण सिंह हो या आर के धवन। सब हक्के-बक्के थे। वक्त जैसे थम गया था। दिमाग में खून जमने जैसी हालत थी। तभी बेअंत सिंह ने आर के धवन की ओर देखकर कहा- हमें जो करना था वो हमने कर लिया। अब तुम जो करना चाहो, वो करो। वहां मौजूद सभी लोग एक झटके के साथ होश में आए। आर के धवन के मन में एक ही बात आई। इंदिरा को जल्द से जल्द हॉस्पिटल पहुंचाया जाए। वो जोर से चीखे-एंबुलेंस। उनकी बात का किसी ने जवाब नहीं दिया। पास में खड़े एसीपी दिनेश चंद्र भट्ट ने तुरंत बेअंत और सतवंत को काबू में ले लिया। उनके हथियार जमीन पर गिर गए। उन्हें तुरंत पास के कमरे में ले जाया गया। एसीपी दिनेश चंद्र भट्ट कहते हैं कि उस वक्त जो हो सकता था किया गया लेकिन चूंकि वो इतना अचानक और अनएक्सपेक्टेड और डिवास्टेटिंग था कि उसको रिकॉल करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। अब तक छाता लेकर भौचक्क खड़ा रहा हेड कॉन्सटेबल नारायण सिंह भी हरकत में आया। उसने छाता फेंका और डॉक्टर को बुलाने के लिए दौड़ पड़ा। एक अकबर रोड के लॉन में इंदिरा का इंतजार करते हुए आइरिश डेलिगेशन को फायरिंग की आवाज अजीब सी लगी। फिर उन्हें लगा कि शायद एक बार फिर दीवाली के पटाखे फोड़े गए हैं। डायरेक्टर पीटर उस्तीनोव वहीं पर इंदिरा का इंतजार करते रहे। इधर आर के धवन ने इंदिरा को उठाने की कोशिश की। तभी बुरी तरह घबराई हुईं सोनिया गांधी भी वहां पहुंच गईं। तब तक कई दूसरे सुरक्षाकर्मी भी उस गेट के पास पहुंच चुके थे। धवन और सोनिया ने मिलकर इंदिरा को उठाया। आर के धवन बताते हैं कि उस वक्त तो यही दिमाग काम किया कि उनको एकदम से हॉस्पिटल ले जाया जाए। मैंने उस वक्त एक एंबुलेंस जो वहां रहती थी उसे बुलाया लेकिन एंबुलेंस नहीं आई। पता चला उसका ड्राइवर चाय पीने गया हुआ था। एंबुलेंस के पहुंचने की कोई संभावना नहीं थी इसलिए सोनिया-आर के धवन और बाकी सुरक्षाकर्मी इंदिरा गांधी को लेकर एक सफेद एंबेसेडर कार तक पहुंच गए। तय हुआ कि कार से ही इंदिरा को एम्स लेकर जाया जाए। इंदिरा गांधी का सिर सोनिया ने अपनी गोद में रखा। उनके शरीर से लगातार खून बह रहा था। इस बीच उस कमरे से एक बार फिर फायरिंग की आवाज आई जिसमें सुरक्षाकर्मी बेअंत और सतवंत को लेकर गए थे। यहां बेअंत ने एक बार फिर हमला करने की कोशिश की थी। उसने अपनी पगड़ी में छिपाए चाकू को बाहर निकाल लिया। बेअंत और सतवंत दोनों ने इस कमरे से भागने की कोशिश की लेकिन जवाबी कार्रवाई में सुरक्षाकर्मियों ने बेअंत को वहीं ढेर कर दिया। सतवंत को भी 12 गोलियां लगीं लेकिन उसकी सांसें चल रही थीं। गोलियों का शोर थमा तो एक और शोर शुरू हुआ। उस सफेद एंबेसेडर के स्टार्ट होने की आवाज जिसमें इंदिरा गांधी को लिटाया गया था। सोनिया एक टक इंदिरा की तरफ देख रही थीं। दूर खड़े आयरिश फिल्म मेकर पीटर उस्तीनोव को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या हुआ। सुरक्षाकर्मी तेजी के साथ एक तरफ से दूसरी तरफ भाग रहे थे। लॉन में हड़कंप मचा हुआ था। पीटर उस्तीनोव ने एक इंटरव्यू में कहा है-उस वक्त एक अकबर रोड की चिड़ियां और गिलहरियां भी अजीब बर्ताव कर रही थीं। सात मिनट के अंतर पर दो बार फायरिंग की जोरदार आवाज के बावजूद उन पर कोई असर नहीं था। उन परिंदों को जैसे पता था कि गोलियां उन्हें निशाना बनाकर नहीं मारी गईं।

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