स्वस्थ मन, स्वस्थ तन और स्वस्थ समाज का द्योतक है ‘नाग पंचमी’

पर्व, त्यौहार और उत्सव दो तरह के होते हैं। शाश्वत और सामयिक। शाश्वत पर्व वे हैं, जो किसी विषय वस्तु विशेष के कारण से नहीं बल्कि नैसर्गिक आवश्यकता के अनुक्रम में मनाए जाते हैं। यथा बसंत पंचमी, मकर संक्रान्ति। इसी क्रम में नाग पंचमी का भी पर्व आता है। सामयिक पर्व वे हैं जो किसी घटना विशेष के बाद से मनाए जाते हैं, यथा विजय दशमी, कृष्ण जन्माष्टमी। अब आप शाश्वत और सामयिक का तात्पर्य समझ गए होंगे। हम आपका ध्यान नाग पंचमी की ओर दिलाते हैं। इस त्यौहार के संबंध में समाज में अनेकानेक किंबदंतिया प्रचलित हैं। पौराणिक कथाएं भी हैं। पर मेरा उद्देश्य न तो उनका खंडन करने का है और न ही उन्हें गलत ठहराने का। पर हमारा चिंतन कुछ और है। मेरा तर्क है कि नाग पंचमी स्वस्थ मन, स्वस्थ तन और स्वस्थ समाज का द्योतक है। इस पर्व को उसी के अनुक्रम में अंगीकार कर हम मानवता का संदेश समाज को दे सकते हैं। ज्योतिष शस्त्र के अनुसार पंचमी, दशमी और पूर्णिमा तिथियों को पूर्णा की संज्ञा दी गई है। शास्त्रों के अनुसार पंचमी तिथि पर श्रीया अर्थात लक्ष्मी, नाग और ब्रह्म का अधिपत्य हैं। अत: पंचमी तिथि ब्रह्म, नाग और लक्ष्मी को समर्पित है। नागपंचमी का पर्व श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। इस दिन नागों की पूजा का विधान है। मान्यता के अनुसार नाग अर्थात सर्प धन की रक्षा हेतु तत्पर रहते हैं तथा इन्हें गुप्त और गड़े हुए धन का रक्षक माना जाता है। सरल भाषा में कहा जाए तो नाग देवी लक्ष्मी के रक्षक हैं। जो हमारे कमाए हुए मूल्यवान धन की रक्षा में तत्पर रहते हैं। ध्यान दे कि वे धन क्या है, कितने प्रकार के हैं। धन के नौ प्रकार वर्णित किए गए हैं। माया धन (संचित धन), काया धन (शरीर का सुख), स्त्री धन (जीवनसाथी का सुख), पुत्र धन (संतान का सुख), आयुर धन (लंबी आयु), भू धन (जमीन जायदाद का सुख), धान्य धन (खान पान का सुख), मान्य धन (सामाजिक प्रतिष्ठा), काम धन (प्रणय और काम सुख) तथा परलोक अथवा भक्ति धन। इस सभी प्रकार के धन पर पर मूलत: आठ लक्ष्मियों का अधिपत्य है तथा नवे धन पर परम लक्ष्मी जगदीश्वरी महालक्ष्मी का अधिपत्य है। सनातन धर्म में नाग को द्वारपाल की संज्ञा दी गई है अर्थात नौ प्रकार के नाग जीवन के नौ प्रकार के धन (नवधन) की रक्षा करते है। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो पर्यावरण की विषैली गैस जो मानव के लिए घातक और हानिकारक है, उनका ग्रहण जहरीले जंतु किया करते हैं। इन जहरीले जंतुओं में नाग यानि सर्प सर्वोपरि है। कहने का तात्पर्य है कि अगर हमें स्वच्छ पर्यावरण रखना है तो जहरीले जंतुओं की रक्षा करनी होगी। पर्यावरण स्वच्छ रहेगा तो हमारा मन और तन स्वस्थ रहेगा। मन और तन स्वस्थ रहेगा तो हम समृद्ध होंगे। समृद्ध होने पर हमे समाज में मान-सम्मान मिलेगा। तन के स्वस्थ रहने पर ही हम आयुर धन, पुत्र धन, धान्य धन, काम धन को प्राप्त कर सकेंगे। एक और सवाल उठता है कि आखिर सावन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही ऐसा क्यों? तो इसके पीछे का भी रहस्य है। 12 महीनो में सावन का ही महीना ऐसा है, तब वर्षा के कारण सबसे अधिक जहरीले जंतु अपना आवास छोड़कर लोगों के घरों या आसपास के वातावरण में आ जाते हैं। ऐसे में इन जहरीले जंतुओं का मानव द्वारा मार डालने का सबसे अधिक खतरा रहता है। इसीलिए शायद सावन के महीने को भगवान शिव की उपासना का माह निर्धारित किया गया है और जहरीले जंतुओं को भगवान शिव का गण माना गया है। ताकि इन जहरीले जंतुओं को सुरक्षित रखा जा सके। जहरीले जंतुओं के सुरक्षित रहने से पर्यावरण शुद्ध रहेगा। पर्यावरण शुद्ध रहेगा तो वे सारे धन मानव समाज को स्वत: प्राप्त हो जाएंगे। पौराणिक आख्यानों को देखें तो रावण संहिता शास्त्र के अनुसार व्यक्ति के वो पितृ जो देव योनी में आ जाते हैं वो सर्प बनकर अपने वंशजो के धन की रक्षा करते हैं। ज्योतिष शास्त्रों में राहु व केतु को सर्प माना जाता है। राहु को सर्प का सिर तथा केतु को पूंछ माना जाता है। वाराह संहिता के अनुसार सफेद रंग के नाग गुप्त खजाने के रक्षक होते हैं। नागपंचमी पर्व सावन के माह में आता है जब नागों के बिल में वर्षा होने के कारण पानी घुस जाता है तब सर्व रुपी हमारे पूर्वज हमसे पूजन और भोजन की अपेक्षा करते हैं ताके ये वर्ष उपरांत हमारे नवधन की रक्षा करें। इसी कारण यह भी कहा जाता है कि नाग पंचमी के दिन नागों का धन पर पहरा रहता है। निवेदन है कि नाग पंचमी के पर्व का रहस्य समझें और जहरीले जंतुओं की रक्षा करके पर्यावरण को शुद्ध बनाने में अपना महती योगदान प्रदान करें और सभी नौ प्रकार के धन का सुख प्राप्त करें।

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