किसानों की खुदकुशी का असली अपराधी कृषि की उपेक्षा है

किसानों की खुदकुशी पिछले कुछ समय से आम बात हो चली है। वर्ष 1995 के बाद से करीब तीन लाख किसानों ने खुदकुशी की है। ऐसे आंकड़े लगातार चिंताजनक बने हुए हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, 2010 में 15,963; 2011 में 14,201; 2012 में 13,754; और 2013 में 11,772 किसानों ने खुदकुशी की थी। आज 46 किसान हर रोज अपनी जान दे रहे हैं यानी हर आधे घंटे में एक किसान आत्महत्या के लिए मजबूर है। आमतौर पर विकसित राज्य माने जानेवाले महाराष्ट्र का रिकॉर्ड सबसे खराब है। कुल आत्महत्याओं में करीब 25 फीसदी घटनाएं यहां घटती हैं, और यह विगत 15 वर्षों से निरंतर होता चला आ रहा है। इस साल जनवरी से मार्च के बीच राज्य में 257 किसानों ने खुदकुशी की है। इस त्रासद स्थिति का असली अपराधी कृषि की दशकों से चली आ रही सांस्थानिक उपेक्षा है। कृषि क्षेत्र में देश की कामकाजी आबादी का 60 फीसदी हिस्सा संलग्न है, जिसमें सर्वाधिक गरीबों की अधिकांश संख्या भी शामिल है। हालांकि यह सकल घरेलू उत्पादन में 15 फीसदी से कम योगदान करता है। दरअसल, हमारी अर्थव्यवस्था की पूरी संरचना ही आड़ी-तिरछी हो गयी है। सबसे कम रोजगार प्रदान करनेवाला ...