‘ब्लैक मनी’ पर अंकुश की दिशा में कदम

बीती फरवरी में केंद्रीय वित्तमंत्री ने अर्थव्यवस्था में कालेधन के प्रवाह पर अंकुश के लिए नया कानून बनाने की बात कही थी। अप्रकट विदेशी आय और आस्ति (कर अधिरोपण) विधेयक, 2015 के राज्यसभा में पारित होने के साथ केंद्र सरकार ने यह वादा एक सीमा तक पूरा कर लिया है। यह भ्रष्टाचार से जूझ रहे देश में समस्या की पहचान कर सही दिशा में उठाया गया कदम है। विधेयक पारित होने पर प्रधानमंत्री ने सही ही ट्वीट किया कि यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। विदेश में काला धन रखनेवालों के लिए इस विधेयक में कठोर प्रावधान हैं। ऐसे धन पर मौजूदा आयकर कानून लागू न होकर, विधेयक के प्रावधानों के अंतर्गत कार्रवाई होगी और दोषी को 10 साल तक कैद की सजा दी जा सकती है, साथ ही उससे अघोषित विदेशी धन पर 120 प्रतिशत तक टैक्स वसूला जा सकता है। विदेश में कालाधन रखनेवालों को राहत इतनी भर दी गयी है कि वे जल्द अपनी संपत्ति की घोषणा करें और उस पर 30 प्रतिशत कर तथा 30 प्रतिशत जुर्माना भरें। पारित विधेयक देश से बाहर रखे गये कालेधन पर लागू होगा। देश में अवैध रूप से अर्जित जायदाद और अघोषित आय पर अंकुश के लिए नये कानून का बनाया जाना शेष है। बहरहाल भारतीय नागरिकों द्वारा विदेशों में छुपा कर रखे गये काले धन का आकार बहुत बड़ा है। ग्लोबल फाइनेंशियल इंटीग्रिटी नामक संस्था का आकलन है कि 1948 से 2008 के बीच भारतीयों ने टैक्स-चोरी की मंशा से जो धन विदेशी धरती पर स्थित बैंकों में जमा किया है, वह मौजूदा विनिमय-दर के हिसाब से 28 लाख करोड़ रुपये के बराबर है। कुछ अन्य आकलनों में विदेश में जमा कालेधन का आकार 35 लाख करोड़ रुपये का बताया गया है। अगर यह संख्या ठीक है, तो फिर विदेशों में मौजूद कालेधन की मात्र देश की जीडीपी के करीब 30 फीसदी के बराबर बैठती है। कोई सरकार अगर इतनी बड़ी धनराशि को उजागर कर लेती है और उस पर पारित विधेयक के मुताबिक टैक्स तथा जुर्माना वसूलती है, तो यह देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक चमत्कार सरीखा होगा। अब देश के सामान्य नागरिकों को उम्मीद यही रहेगी कि यह काला धन विधेयक अपने उद्देश्यों में सफल हो, लेकिन किसी कानून की सफलता का आकलन उसके प्रभाव और परिणाम से होता है और पारित विधेयक को अभी इस कसौटी पर कसा जाना शेष है।

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