प्रकृति की चेतावनी का समझें

पड़ोसी देश नेपाल में शनिवार को आए भूकंप ने भीषण तबाही मचाई है। उत्तर भारत में भी इसका असर देखने को मिला। हलांकि यहां भूकंप ज्यादा प्रभावी नहीं रहा। पर प्रकृति की इस चेतावनी को समझना होगा। पहली बार यह देखने को मिला कि भूकंप के झटके आने की घटना इतने बड़े क्षेत्र में आने की खबर मिली। सोचें कि अगर भूकंप का झटका और तेज होता तो स्थिति कितनी प्रलयंकारी होती। ऊपरवाले को धन्यवाद है कि भारत भूकंप के इस झटके से हताहत नहीं हुआ। पिछले कई वर्षों से देश में अंधाधुध पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। नदियों के पानी के प्रवाह को रोका जा रहा है। पहाड़ों की छाती को चीरा जा रहा है। ऊंची अट्टालिकाएं बनाई जा रही हैं। एअर कंडीशन का प्रयोग किया जा रहा है। मानव के इन हरकतों से ग्लोबल वार्मिंग की समस्या बढ़ रही है। जलवायु परिवर्तन के खतरों के संकेत मिल रहे हैं। बावजूद इसके भी हम हैं कि सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं। प्रकृति की इस चेतावनी को हमें समझना होगा। अगर समय रहते हम इस चेतावनी को नहीं समझ सके तो आने वाला दिन भयावह हो सकता है। पड़ोसी देश नेपाल में भूकंप से अब तक 2500 लोगों के मरने की खबर मिल चुकी है। नेपाल के गृह मंत्रालय ने इसकी पुष्टि कर दी है। भूकंप से कई इमारतें जमींदोज हो गईं है, जिनमें कई और लोगों के फंसे होने की आशंका है। नेपाल का कुतुबमीनार कहा जाने वाला भीमसेन टावर भी भूकंप की चपेट में आ गया और धराशाई हो गया। भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 7.9 मापी गई है। एवरेस्ट की चोटियों पर भी एवलांच की खबर है।

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