सरकार के लिए चुनौती बाल विवाह के आंकडे

ऋग्वेद की ऋचाएं बताती हैं कि बालिकाओं को विवाह की उम्र तय करने की आजादी रही। बाल विवाह को सामाजिक अपराध सरीखा माना गया। 2011 की जनगणना के आंकड़े अपने साथ भारत की एक चौंका देने वाली छवि लेकर आए हैं। यह आंकड़े केन्द्र और राज्य सरकार के लिए एक चुनौती है। साथ ही चुनौती उन सामाजिक संगठनों के लिए भी है जो बच्चों और बालिकाओं के अधिकार के नाम पर काम कर रहे हैं और लाखों रुपए की बजटीय सहायता प्राप्त कर रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक उड़ीसा में 15 साल में कम उम्र की लड़कियां अपने स्कूल जाने की उम्र में बच्चे को जन्म दे रही हैं। 15 साल से कम उम्र में मां बन चुकी ऐसी लड़कियों की तादाद 11000 है। ये आंकड़े सामाजिक कल्याण योजनाओं के विफलता की दास्तान भी बयां करते हैं। बाल विवाह को रोकने और कच्ची उम्र में गर्भधारण के मुद्दे पर जागरूकता फैलाने के मकसद से कई सरकारी और गैर-सरकारी योजनाएं जमीन पर काम कर रही हैं। लेकिन इस रिर्पोट ने ऐसी योजनाओं की पूरी रूपरेखा और कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। 15 साल से कम उम्र की 59.09 लाख लड़कियों में से 41,729 लड़कियां विवाहित पाई गई हैं। इसी आयु वर्ग की तकरीबन एक-चौथाई, लगभग 10685 विवाहित लड़कियां 15 की उम्र पूरी होने से पहले ही मां बन चुकी थीं। इन लड़कियों में लगभग 9.34 प्रतिशत यानी 3896 लड़कियां एक बच्चे और 16.27 प्रतिशत यानी कुल 6789 लड़कियां दो बच्चों को जन्म दे चुकी थीं। महिला एवं बाल विकास मंत्री ऊषा देवी ने कहा कि सरकार को अभिभावकों के बीच जागरूकता पैदा करने की खास जरूरत है। उन्होंने कहा कि बाल विवाह रोकने और कच्ची उम्र में गर्भधारण पर लगाम लगाने का यही एक कारगर तरीका है। महिला अधिकार के लिए काम करने वाली संस्थाएं कम उम्र में गर्भधारण के लिए तीन प्रमुख कारणों को जिम्मेदार ठहराते हैं। ऐसी ही एक समाजसेविका नम्रता चढ्ढा ने कहा कि कबायली समुदायों में कम उम्र में ही अपने बच्चों की शादी कर देने की परंपरा रही है। साथ ही, आर्थिक रूप से कमजोर और वंचित समूह भी सामाजिक सुरक्षा के कारण अपनी बेटियों की शादी के लिए उनके 18 साल की उम्र तक पहुंचने का इंतजार नहीं करते। ओडिशा में मातृ मृत्यु दर प्रति 1000 की संख्या पर 235 है जबकि राष्ट्रीय आंकड़ा 178 है। राज्य में शिशु व नवजात मृत्यु दर का आंकड़ा 57 प्रतिशत है। विशेषज्ञ इसके लिए बाल विवाह व कम उम्र में गर्भधारण को जिम्मेदार ठहराते हैं। छत्तीसगढ से मिले आंकड़ों के मुताबिक यहां भी तकरीबन 6400 लड़कियां 15 साल की उम्र से पहले ही मां बन गईं। झारखंड में यह संख्या 12000 है। राष्ट्रीय स्तर पर 17.80 करोड़ लड़कियों में से तकरीबन 18.2 लाख लड़कियां 15 साल की उम्र से पहले ही विवाहित हो चुकी थीं। इस संख्या में से करीब 4.5 लाख लड़कियां मां भी बन चुकी थीं। ओडिशा में जनगणना के दौरान महिलाओं की कुल संख्या दो करोड़ पाई गई। इनमें से कुल 1.19 करोड़ महिलाएं विवाहित थीं। इस कुल तादाद में से केवल 14.27 प्रतिशत महिलाएं ऐसी हैं, जिन्होंने एक भी बच्चे को जन्म नहीं दिया था। निदेशालय, महिला अधिकारिता, महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा बाल विवाह की रोकथाम व उसके विरूद्ध जनमानस में वातावरण बनाने के उद्देश्य से विशेष प्रयास किये जाने की बात कही जाती है। वे जातियां एवं क्षेत्र जिनमें बाल विवाह विशेष रूप से किये जाते है, उन पर विशेष ध्याान देकर वर्ष पर्यन्त आयोजित बैठकों, जाजमों, शिविरों तथा प्रशिक्षण में सामिल, प्रचेता एवं अधिकारियों के माध्य्म से बाल विवाह से होने वाली सामाजिक, आर्थिक, स्वाणस्य संबंधी हानि पर चर्चा की जाती है, कानूनी प्रावधानों से अवगत कराया जाता है। प्रत्येक उपखण्ड अधिकारी को उनके क्षेत्र के लिए बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी नियुक्त किया गया है। बाल विवाह आयोजन की सूचना मिलने पर बाल विवाह निषेध अधिकारी को सूचित किया जाता है। बाल विवाह निषेध अधिकारी द्वारा बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के अनुसार आयोजकों एवं बाल विवाह में भाग लेने वाले व्यक्तियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही के तहत जुर्माना एवं सजा हेतु कार्यवाही की जाती है। जो 1.00 लाख रुपए जुर्माना अथवा 2 वर्ष का कठोर कारावास अथवा दोनो दिये जाने का प्रावधान है। अक्षय तृतीया पर अबूझ सावा होने के कारण बाल विवाह अधिक होने की संभावनाओं के मद्देनजर माह मार्च व अप्रेल में इस दिशा में विशेष प्रयास किय जाते है। इस अबूझ सावे के अवसर पर अधिनियम 2006 के तहत जिला कलेक्ट र को जिले के बाल विवाहों को रोकने के लिए निषेध अधिकारी की शक्तियां प्रदान की गई है। इसके बावजूद भी ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़ राज्य के आंकड़े राज्य और केन्द्र सरकारों के लिए चुनौती है। अगर अव्यस्क का बाल विवाह  होता है, तो जो भी व्यक्ति अवयस्क की जिम्मेदारी उठा रहा होगा, चाहे मां-बाप या अभिभावक, जो बाल विवाह को संपन्न कराते हैं या बढ़ावा देते हैं तथा उसको नहीं रोकते हैं, उनके लिए सजा का प्रावधान है। बाल विवाह को इजाजत देने, न रोकने या बढ़ावा देने पर 3 माह की साधारण कैद तथा जुर्माना हो  सकता है। हालांकि इस धारा के तहत किसी महिला को कैद नहीं हो सकती है। बाल विवाह (निरोधक) अधिनियम,1929 के तहत 18 वर्ष से कम आयु के हिंदू पुरुष , 15 वर्ष से कम आयु की लड़की के साथ हुए विवाह को अमान्य घोषित नहीं कर सकता है। बशर्ते वह हिंदू धर्म के अनुसार किया गया हो। यह अधिनियम बाल विवाह को रोकता है परंतु उसे गैर कानूनी या अमान्य घोषित नहीं करता है। यह उन लोगों को सजा देता है जो बाल विवाह करते हैं या उसमें सक्रिय भूमिका निभाते हैं । इस अधिनियम के तहत अवयस्क दंपति जिनका विवाह होता है , उन्हें सजा नहीं दी जाती है।

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