जिनके गीत पर भारत रोया, उनकी बेटियों को किया दरकिनार

 अमर गीतकार राष्ट्रकवि व हिंदी फिल्मों के महान गीतकार कवि प्रदीप गुलाम हिंदुस्तान में अपनी आखें खोलीं, लेकिन इस कवि ने जब अपनी आंखे बंद की तो उसके सिर पर आजाद भारत के राष्ट्रकवि का ताज था। आज इन्हीं के नाम पर पहला कवि प्रदीप सम्मान 24 मार्च 2015 को मशहूर गीतकार गोपालदास नीरज को दिया गया। स्वर्गीय प्रदीप की दो बेटियां है, जो मुंबई में रहती हैं। ताज्जुब वाली बात यह है कि इस समारोह की सूचना इनकी दोनों बेटियों को बाहर से मिली हैं। मध्य प्रदेश की संस्कृति विभाग ने उन्हें बुलाना तो दूर, इस बात की जानकारी देना भी उचित नहीं समझा। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार स्वर्गीय प्रदीप की बेटी मितुल प्रदीप ने कहा है कि मध्य प्रदेश की संस्कृति विभाग द्वारा यह कोई मामूली भूल नहीं है। यह एक साजिश है। यह पहला मौका भी नहीं है जब सरकार का ऐसा रवैया सामने आया हो। इससे पहले भी पिताजी के बारे में मंत्री कैलाश विजयवर्गीय अपमानजनक टिप्पणी कर चुके हैं। उन्होंने कहा था- ह्यदे दी हमें आजादी... गीत लिखने वाले गीतकार को घूंसा मारना चाहिए। उनके इस आचरण पर मैंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा था। मोदी जी ने दुख जताते हुए मेरी शिकायत से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को अवगत कराया था। मुझे उनका पत्र तुरंत मिला था। हालांकि यह बात और है कि मुख्यमंत्री की तरफ से कोई जवाब तक नहीं आया। कवि प्रदीप की बड़ी बेटी सरगम ने कहा कि हमारे पिताजी के नाम पर अलंकरण समारोह हो रहा है। भारतीय कवि एवं गीतकार थे। जो देशभक्ति गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ की रचना के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान शहीद हुए सैनिकों की श्रद्धांजलि में ये गीत लिखा था। लता मंगेशकर द्वारा गाए इस गीत का तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की उपस्थिति में 26 जनवरी 1963 को दिल्ली के रामलीला मैदान में सीधा प्रसारण किया गया। गीत सुनकर जवाहरलाल नेहरू के आंख भर आएं थे। कवि प्रदीप ने इस गीत का राजस्व युद्ध विधवा कोष में जमा करने की अपील की। मुंबई उच्च न्यायालय ने 25 अगस्त 2005 को संगीत कंपनी एचएमवी को इस कोष में अग्रिम रूप से भारतीय रुपया 10 लाख जमा करने का आदेश दिया। कवि प्रदीप का मूल नाम रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी था। उनका जन्म मध्य प्रदेश को बड़नगर (उज्जैन) में हुआ था। कवि प्रदीप की पहचान 1940 में रिलीज हुई फिल्म बंधन से बनी, हालांकि 1943 की स्वर्ण जयंती हिट फिल्म किस्मत के गीत ‘दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है’ ने उन्हें देश भक्ति गीत के रचनाकारों में अमर कर दिया। गीत के अर्थ से क्रोधित तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने उनकी गिरफ्तारी के आदेश दिए। इससे बचने के लिए कवि प्रदीप को भूमिगत होना पड़ा। पांच दशक के अपने पेशे में कवि प्रदीप ने 71 फिल्मों के लिए 1700 गीत लिखे। उनके देशभक्ति गीतों में, फिल्म बंधन (1940) में ‘चल चल रे नौजवान’ फिल्म जागृति (1954) में ‘आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं’, ‘दे दी हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल’ और फिल्म जय संतोषी मां (1975) में ‘यहां वहां जहां तहां मत पूछो कहां-कहां’ है। इस गीत को उन्होंने फिल्म के लिए स्वयं गाया भी था। इन्होंने हिंदी फिल्मों के लिए कई यादगार गीत लिखे। भारत सरकार ने उन्हें सन 1997-98 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया।

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