चला गया संतोष का 'आनंद'

दिल दहला देने वाली एक घटना में बुधवार को मशहूर गीतकार संतोष आनंद के बेटे और बहू ने आत्महत्या कर ली। रोटी-कपड़ा और मकान, प्रेमरोग, उपकार, प्यासा सावन जैसी फिल्मों में दिल को छू लेने वाले गीत लिखने वाले संतोष आनंद को दो बार फिल्मफेयर अवार्ड मिल चुका है। अब वो 75 साल के हैं, ठीक से चल भी नहीं पाते हैं। इस हाल में उन्हें वो दर्द मिला है, जिसे किसी भी पिता के लिए सहना आसान नहीं। उनके बेटे संकल्प आनंद ने अपने सुसाइड नोट में एक घोटाले को अपनी मौत की वजह बताया है। संतोष की जिंदगी से आनंद हमेशा के लिए जा चुका है, लेकिन बेटे को इंसाफ दिलाने की जंग भी उन्हें लड़नी है। मैं 75 साल का हो गया हूं, चल भी नहीं सकता हूं, मेरे बेटे की मौत हो गई है। जिंदगी की संध्याबेला में दर्द से डूबे हुए अल्फाज उस शख्स के हैं, जिसने ताउम्र होठों पर जिंदगी को गीत बना कर गाया है। बेटे संकल्प आनंद और बहू नरेश नंदिनी की मौत ने मशहूर गीतकार संतोष आनंद को भीतर तक तोड़ दिया है। बुजुर्ग कांधे पर जवान बेटे की लाश का बोझ-ये दुख सहना किसी भी पिता के लिए बदकिस्मत लम्हा होता है।
अपने संवेदनशील गीतों से कई पीढ़ियों को हंसाने-रुलाने वाले कविह्रदय गीतकार संतोष आनंद के लिए ये दुख सहना और भी मुश्किल है। संतोष आनंद के बहुत से गीत आज भी लोगों की जुबान पर हैं। मनोजकुमार की फिल्म रोटी कपड़ा और मकान और राजकपूर की फिल्म प्रेम रोग में लिखे गीतों के लिए उन्हें दो बार फिल्म फेयर अवार्ड भी मिल चुका है। लेकिन जब से उन्हें बेटे-बहू की खुदकुशी की दर्दनाक खबर मिली है उनके होठ गीत भूल चुके हैं। एक फरियाद बन कर बस यही शब्द लबों पर है कि मेरा लड़का चला गया है। संतोष आनंद को बड़े से बड़ा दर्द भी तोड़ नहीं सका था। उम्रदराज हो जाने के बावजूद संतोष कवि सम्मेलनों और मुशायरों में अपने लिखे गीत गाया करते थे। लेकिन गीतकार संतोष आनंद की कहानी में दो पल के जीवन से उम्र चुराने जैसी बातों की जगह अब बची ही कहां हैं। जीवन ने दो पल नहीं चुराया है, जवान बेटे को ही चुरा लिया है। संतोष आनंद के बेटे संकल्प आनंद और बहू नरेश नंदिनी ने बुधवार की सुबह मथुरा के कोसीकलां के पास ट्रेन के सामने आ कर खुदकुशी की थी। मथुरा पुलिस ने ये खबर दिल्ली पुलिस को दे दी थी, लेकिन संतोष को आनंद को दुख है कि दिल्ली-पुलिस ने उन्हें सूचना देना तक मुनासिब नहीं समझा। मीडिया और करीबियों के जरिए जब संतोष आनंद को बेटे और बहू की खबर मिली तब 75 साल की उम्र में पैरों से चलने-फिरने के काबिल न होने के बावजूद संतोष शाम को पोस्टमार्टम हाउस के पहुंचे। साथ में उनकी पत्नी भी थीं। दोनों बुरी तरह से टूटे नजर आ रहे थे। लड़खड़ाते कदमों से चलने की कोशिश करने के बाद वो बैठ गए। वहां पर जो भी शख्स दिखाई पड़ता था, उससे सिर्फ यही कहते थे कोई डीएम से कह दीजिए पोस्टमार्टम जल्दी से जल्दी कराएं। ये कहने के बाद वो रोने लगते थे।
अहोई अष्टमी के दिन हादसा
बृहस्पतिवार की सुबह दिल्ली के सुखदेव विहार में संतोष आनंद के घर में उनके दुख में हिस्सेदार बनने वालों का तांता लगा हुआ था। दोपहर को संतोष आनंद के बेटे और बहू का अंतिम संस्कार कर दिया गया। आमतौर पर देखा जाता है कि एक दूसरे से जुड़े मध्यमवर्गीय परिवारों के सदस्य अपनी परेशानी दूसरों से छुपा ले जाते हैं। संतोष आनंद का बेटा संकल्प भी शायद माता-पिता को परेशान नहीं करना चाहता था। मंगलवार की रात भी उसने अपनी मां से फोन पर बात की थी, लेकिन अपने इरादे छुपा ले गया था। इस नादानी का दर्द अब माता-पिता का ताउम्र झेलना है। मां का कहना है कि अहोई अष्टमी के दिन देवी ने उसके जिगर के टुकड़े को छीन लिया। फिक्र उस मासूम बच्ची के भविष्य की भी है, जिसका इस घटना में बच जाना चमत्कार से कम नहीं। पांच साल की मासूम रिद्धिमा उस दर्दनाक हादसे में बचने वाली इकलौती जान है, जिसने गीतकार संतोष आनंद से उनके बेटे संकल्प आनंद और बहू नरेश नंदिनी को छीन लिया है। बुधवार की सुबह आनंद परिवार अपनी पोलो कार से कोसीकलां के हाईवे के किनारे रेलवे लाइन के पास पहुंचा था। परिवार जब कार से उतरा तो रिद्धिमा मां-पिता की गोद में थी। घटना से कुछ देर पहले आनंद परिवार को सही-सलामत देखने वालों के मुताबिक उन्हें देख कर कतई नहीं लग रहा था कि वो लोग खुदकुशी के इरादे से वहां पहुंचे हैं।
चश्मदीदों के मुताबिक ट्रेन गुजरने के बाद रिद्धिमा उठ कर खड़ी हो गई थी। बुरी तरह से जख्मी रिद्धिमा का मथुरा के एक अस्पताल में इलाज चल रहा है। माता पिता की मौत के बाद अब रिद्धिमा का सहारा उसके बूढ़े दादा -दादी ही हैं। 75 साल की उम्र में जब बेटे की मौत के गम ने गीतकार संतोष आनंद और उनकी पत्नी को तोड़ दिया है तब उनके बूढ़े कंधे पर पोती रिद्धिमा की भी जिम्मेदारी आ गई है। बदकिस्मती देखिए कि अहोई अष्टमी के जिस पवित्र दिन संकल्प की मां राजदुलारी ने बेटे की लंबी उम्र के लिए व्रत रखा था-उसी दिन उन्हें बेटे की मौत की खबर मिली। पोस्टमार्टम के वक्त राजदुलारी सबसे यही कह रहीं थी कि अहोई अष्टमी के दिन इस बुजुर्ग दंपत्ति के जीवन से बहुत कुछ छिन गया है। राजदुलारी ने बताया कि उनके बेटे और बहू ने प्रेम विवाह किया था। शादी के सात साल बाद उनके घर में रिद्धिमा के रूप में खुशी आई थी। सच ये भी है कि संतोष आनंद और राजदुलारी की जिंदगी में भी बड़ी मुश्किलों के बाद संकल्प के रूप में खुशी आई थी। दुनिया भर को अपने गीतों से हंसाने-रुलाने वाले संतोष आनंद की जिंदगी में शादी के 10 साल बाद भी कोई बच्चा नहीं था। पति-पत्नी ने नंगे पैर नागरकोट वाली देवी का दर्शन किया था तब जा कर उनकी जिंदगी में संकल्प आए थे।
चार अप्रैल 1975 को जब संकल्प का जन्म हुआ था, उसी दौरान संतोष आनंद को रोटी-कपड़ा और मकान फिल्म के लिए अवार्ड मिला था। संतोष आनंद को जानने वाले लोग उनके बेटे के कदम को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं, लेकिन रिश्तेदारों का कहना है कि संकल्प अपने माता-पिता की बहुत फिक्र करता था। वो अपने दुख में उन्हें हिस्सेदार नहीं बनाना चाहता था। बेशक संकल्प अपने बूढ़े पिता को दुखी नहीं करना चाहता था, इसीलिए वो अकेले ही सबकुछ झेल रहा था। संकल्प दिल्ली के लोकनायक जयप्रकाश नारायण नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ क्रिमिनलॉजी एंड फोरंसिक साइंस में लेक्चरर थे। अपने 11 पेज लंबे सुसाइड नोट में उन्होंने लिखा है कि कैसे उन्हें रुपयों के गबन और फर्जीवाड़े के मामले में फंसा दिया गया। 75 साल की उम्र में गीतकार संतोष आनंद अब इंसाफ की जंग के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं। लेकिन सच ये भी है कि संकल्प की खुदकुशी के बाद अब उसके माता-पिता जितना दुखी हैं, उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। शायद, संतोष आनंद के लिखे तमाम गीतों का मरहम भी इस जख्म को अब कभी नहीं भर सकेगा।

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